Dussehra 2025: रावण दहन के दिन क्यों खाई जाती है जलेबी? भगवान राम से है कनेक्शन, जानिए इसकी वजह
By अंजली चौहान | Updated: October 1, 2025 12:14 IST2025-10-01T12:13:51+5:302025-10-01T12:14:58+5:30
Dussehra 2025: कई जगहों पर रावण के पुतले जलाए जाते हैं और लोग बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक बनकर एक-दूसरे को मिठाइयाँ खिलाते और बाँटते हैं और रामायण में घटित घटनाओं का अनुकरण करते हैं।

Dussehra 2025: रावण दहन के दिन क्यों खाई जाती है जलेबी? भगवान राम से है कनेक्शन, जानिए इसकी वजह
Dussehra 2025: शारदीय नवरात्रि के समापन के साथ ही सत्य और विजय का पर्व शुरू होता है, जिस दिन भगवान राम ने रावण को परास्त कर उसका वध किया था और अंततः अपनी पत्नी देवी सीता को छुड़ाकर अपने निवास अयोध्या की यात्रा शुरू की थी। यही कारण है कि लोग दशहरा को बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व कहते हैं। यह हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है और इसे बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।
दशहरा के दिन रावण का पुतला दहन किया जाता है और लोग यह दृश्य देखने के लिए बड़े-बड़े आयोजनों, मेलों में जाते हैं। मगर दशहरा के दिन सबसे दिलचस्प बात ये है कि इस दिन लोग जलेबी खाते हैं।
दरअसल, दशहरा या विजयादशमी के दिन जलेबी खाने की परंपरा के पीछे कई ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व जुड़े हुए हैं। यह सिर्फ एक मिठाई नहीं, बल्कि विजय और उल्लास का प्रतीक है।
विजयादशमी पर जलेबी खाने का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्री राम को एक मिठाई बहुत पसंद थी, जिसे उस युग में 'शश्कुली' कहा जाता था। आज इसी मिठाई को जलेबी के नाम से जाना जाता है।
जब भगवान राम ने लंकापति रावण पर विजय प्राप्त की थी, तो उन्होंने और उनके भक्तों ने अपनी इस जीत का जश्न अपनी प्रिय मिठाई शश्कुली (जलेबी) खाकर मनाया था। तभी से बुराई पर अच्छाई की जीत यानी दशहरे पर जलेबी खाने की परंपरा शुरू हो गई।
जलेबी का गोल आकार इसे जीवन चक्र (Cycle of Life), अनंतता और शुभता का प्रतीक बनाता है। इसे खाने का अर्थ है कि जीत के बाद जीवन में मिठास और समृद्धि बनी रहे। विजयादशमी के दिन मीठा खाकर शुभ शुरुआत करने और जीवन में मिठास बनाए रखने का संदेश दिया जाता है।
वैज्ञानिक और स्वास्थ्य कारण
मौसम परिवर्तन: दशहरे का त्योहार उस समय आता है जब मौसम में बदलाव होता है और सर्दियों की शुरुआत होने लगती है।
ऊर्जा और गर्मी: जलेबी एक गर्म और तली हुई मिठाई है, जिसे खाने से शरीर को ऊर्जा और गर्माहट मिलती है। कुछ मान्यताओं के अनुसार, यह इस बदलते मौसम में स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी माना जाता है। खासकर, दूध-जलेबी का सेवन कुछ जगहों पर माइग्रेन में भी फायदेमंद माना जाता है।
विजयादशमी त्योहार के अन्य पारंपरिक व्यंजन
जलेबी के अलावा, विजयादशमी के अवसर पर कई अन्य पकवान बनाए और खाए जाते हैं, जो इस त्योहार के उल्लास को बढ़ाते हैं:
फाफड़ा-जलेबी: खासकर गुजरात में दशहरे के दिन फाफड़ा (बेसन से बना नमकीन पकवान) के साथ गरमा-गरम जलेबी खाने का विशेष महत्व है। इसे भी भगवान राम की जीत के जश्न से जोड़कर देखा जाता है।
पान का बीड़ा: दशहरे पर पान खाना भी एक महत्वपूर्ण परंपरा है। पान को विजय का सूचक और मान-सम्मान का प्रतीक माना जाता है। रावण दहन के बाद पान का बीड़ा खाकर लोग असत्य पर सत्य की जीत की खुशी मनाते हैं और साथ ही यह पाचन क्रिया को भी दुरुस्त रखने में मदद करता है।
अन्य पकवान: नवरात्रि के नौ दिन के उपवास के बाद, दशमी के दिन कई घरों में तरह-तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं, जिनमें पूरी-हलवा, खीर, दही वड़ा, गुलाब जामुन, नारियल बर्फी और विभिन्न प्रकार के पकौड़े शामिल हैं। यह पकवान उत्सव और तपस्या के सफल समापन का प्रतीक होते हैं।