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छोटी दिवाली 2018: जानिए क्यों मनाई जाती है नरक चतुर्दशी और क्या है इसकी पौराणिक कथा

By मेघना वर्मा | Updated: November 6, 2018 08:13 IST

Choti Diwali Narak Chaturdashi muhurat, Timing, Puja vidhi, Significance importance in Hindi: छोटी दिवाली(नरक चतुर्दशी ) के दिन रात में घर के बुजुर्ग पूरे घर में दिया जलाते हैं इसे पूरे घर में घुमाते हैं। इसके बाद इस दीये को घर से कहीं दूर छोड़ आते हैं।

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दिवाली का त्योहार इस बार 7 नवंबर को मनाया जाएगा। दिवाली के आस-पास के सभी त्योहारों में चौदस का पर्व काफी महत्वपूर्ण होता है। दिवाली से एक दिन पहले मनाए जाने वाले इस पर्व को नरक चतुर्दशी या रूप चौदस या काली चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। इस त्योहार को हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष को मनाया जाता है। इस बार चौदस और नरक चतुर्दशी का ये त्योहार 6 नवंबर को मनाया जाना है। आइए आपको बनाते हैं क्या है इसकी मान्यता और क्या है इसकी पौराणिक कथा। 

सौन्दर्य की होती है प्राप्ती

मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से भगवान श्रीकृष्ण व्यक्ति को सौंदर्य प्रदान करते हैं। रूप चतुर्दशी के दिन सुबह सूरज उगने से पहले उठकर तिल के तेल की मालिश और पानी में चिरचिरी के पत्ते डालकर उस पानी से नहाना चाहिए। इससे बहुत लाभ मिलता है। मान्यता ये है कि इस दिन भगवान विष्णु और भगवान कृष्ण की पूजा करना उत्तम होता है। पूजा करने का शुभ मुहूर्त 5 बजकर 3 मिनट से 6 बजकर 38 मिनट तक का है।  

रात में जलाये दीया

छोटी दिवाली के दिन रात में घर के बुजुर्ग पूरे घर में दिया जलाते हैं इसे पूरे घर में घुमाते हैं। इसके बाद इस दीये को घर से कहीं दूर छोड़ आते हैं। ऐसा करने से घर की सभी बुरी शक्तियां और नेगेटिव एनर्जी बाहर हो जाती है। 

क्या है पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार एक प्रतापी राजा थे। जिनका नाम रन्ति देव था। उन्होंने कभी किसी तरह का पाप नहीं किया था। उनकी आत्मा और उनका दिल एक दम शुद्ध था। जब उनकी मौत का समय आया तो उन्हें पता चला कि उन्हें नरक में जगह दी गई है। राजा ने जब इसका कारण पूछा तो यम ने कहा कि आपके द्वारा एक बार एक ब्राह्मण भूखा सो गया था। इस पर राजा ने यम से कुछ समय मांगा। यम ने राजा को थोड़ा समय दिया और अपने गुरू से राय लेकर राजा ने हजार ब्राह्मणों को खाना खिलाया। 

इस प्रक्रिया से सभी ब्राह्मण खुश हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया। इसी के प्रकोप से राजा को मोक्ष की प्राप्ति हुई। बताया जाता है कि भोजन कराने का ये दिन कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चौदस का दिन था। तब से आज तक नरक निवारण चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है।  

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