साल में दो बार नवरात्रि पर्व आता है, एक चैत्र और दूसरा शारदीय नवरात्रि। इस साल शारदीय नवरात्रि 10 अक्टूबर 2018 से प्रारंभ होकर 18 अक्टूबर तक चलेंगे। इसके बाद 19 अक्टूबर को दशमी यानी 'विजयदशमी' का पर्व है। नवरात्रि के प्रथम दिन आदि शक्ति के प्रथम स्वरूप 'मां शैलपुत्री' की पूजा की जाती है।
प्रथम देवी शैलपुत्री
नवरात्रि में आदि शक्ति के 9 रूपों की पूजा की जाती है जिनमें से सबसे पहले आती हैं देवी शैलपुत्री। नवरात्रि के पहले दिन यानी प्रतिपदा तिथि पर भक्त अपने घर कलश की स्थापना करते हैं, जौ लगाते हैं और देवी शैलपुत्री की अराधना करते हुए नौ दिनों के व्रत को प्रारंभ करते हैं।
पुराणों के अनुसार देवी शैलपुत्री का यह नाम हिमालय की पुत्री होने के कारण पड़ा। शक्ति के पहले रूप शैलपुत्री का वाहन वृषभ है, इसलिए इन्हें वृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता है। इनके एक हाथ में त्रिशूल है और दूसरे हाथ में कमल का पुष्प सुशोभित है। देवी के इस रूप से एक मार्मिक कथा जुड़ी है।
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कहते हैं कि एक बार राजा प्रजापति ने यज्ञ आयोजित किया, सभी देवी-देवताओं को उसमें आमंत्रित किया लेकिन भगवान शिव को बुलावा नहीं भेजा। भगवान शिव की पत्नी सती इस यग्य में जानें के लिए व्याकुल हो रही थीं लेकिन शिवजी ने उन्हें समझाया कि उन्हें यज्ञ के लिए आमन्त्रित नहीं किया गया है, ऐसे में उनका वहां जाना सही नहीं है। किन्तु सती के बहुत आग्रह करने पर भगवान शिव ने उन्हें अकेले ही वहां जाने के लिए कह दिया।
वहां पहुंचने पर सती को माहौल कुछ ठीक नहीं लगा। ना माता-पिता ने सही से बात की और बहनों की बातों में भी व्यंग्य और उपहास के भाव थे। दक्ष ने भगवान शिव के बारे में कटु वचन भी कहे जिससे क्रोधित होकर यज्ञ की अग्नि से ही सती ने खुद को जलाकर भस्म कर लिया। कहा जाता है कि देवी शैलपुत्री के रूप में ही सती को अगले जन्म की प्राप्ती हुई थी। शैलपुत्री भी भगवान शिव की पत्नी थीं। पुराणों में इनका महत्व और शक्ति अनंत है।
कहते हैं कि नवरात्रि के पहले दिन व्रत करने वाली कुवारी कन्याओं को योग्य वर की प्राप्ती होती है। कुवारी कन्याओं के अलावा विवाहित महिला-पुरुष यदि नवरात्रि की प्रतिपदा को देवी शैलपुत्री का व्रत-पूजन आदि करते हैं तो उनका वैवाहिक जीवन सुखों से भर जाता है। देवी शैलपुत्री की अराधना से साधक को मूलाधार चक्र को जागृत करने और सिद्धियां प्राप्त करने में भी मदद मिलती है।
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नवरात्रि के पहले दिन पीले रंग के वस्त्र धारण करें, आदि शक्ति, मां दुर्गा या भगवती की मूर्ति या तस्वीर के सामने बैठकर निम्नलिखित मंत्र का 108 बार जप कर उनकी अराधना करें:
वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम् । वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ॥