चैत्र नवरात्रि 2018: नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी को इस तरह करें प्रसन्न, खुलेंगे सफलता के मार्ग
By गुलनीत कौर | Updated: March 18, 2018 22:58 IST2018-03-18T22:48:53+5:302018-03-18T22:58:11+5:30
मां ब्रह्मचारिणी का व्रत करने वाले साधक की इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास में बढ़ोत्तरी होती है।

चैत्र नवरात्रि 2018: नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी को इस तरह करें प्रसन्न, खुलेंगे सफलता के मार्ग
चैत्र नवरात्रि की द्वितीया तिथि पर देवी के दूसरे रूप 'मां ब्रह्मचारिणी' की पूजा की जाती है। हिन्दू धर्म के नवरात्रि पर्व में आदि शक्ति के नौ रूपों की पूजा-अर्चना और व्रत करने की मान्यता है। कहते हैं कि सभी दिन व्रत करने से भक्त की विभिन्न इच्छाओं की पूर्ति होती है लेकिन विशेष दिन पर किसी एक देवी का व्रत करने से खास लाभ मिलता है। इस बार चैत्र नवरात्रि 18 मार्च से प्रारंभ हुए हैं और इसके दूसरे दिन यानी 19 मार्च को मां ब्रह्मचारिणी के नाम का व्रत किया जाएगा।
एक पौराणिक कथा के अनुसार वर्षों तक तपस्या करने के कारण मां ब्रह्मचारिणी को 'तपश्चारिणी' के नाम से भी जाना जाता है। देवी ब्रह्मचारिणी हिमालय की पुत्री हैं और इनका विवाह भगवान शिव से हुआ था। शिव से विवाह करने के लिए इन्हों वर्षों तक तपस्या की थी। एक हजार वर्ष तक देवी केवल फल-फूल ग्रहण करके ही जीवन व्यतीत कर रही थीं। तपस्या के दौरान वे जमीन पर सोती थीं। खुले आकाश में रहती थी और वर्षा और धूप सभी सहती थीं।
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करीब तीन हजार वर्षों तक देवी ने बिल्व पत्र ग्रहण किया और भगवान शंकर के नाम की घोर तपस्या की। उनकी इसी तपस्या से अभिभूत होकर समस्त देवतागन और ऋषि-मुनियों ने देवी को दर्शन दिए और कहा कि ' हे देवी, तुमने घोर तपस्या कर हमें चकित कर दिया है, इतनी कठोर तपस्या आप ही कर सकती थीं। आपकी तपस्या पूर्ण हुई, अब घर जाएं। आपकी तपस्या के फल के रूप में भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें वर रूप में प्राप्त होंगे।'
मान्यता अनुसार मां ब्रह्मचारिणी का व्रत करने वाले साधक की इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास में बढ़ोत्तरी होती है। उसे जीवन में संघर्ष करने का साहस प्राप्त होता है। आचार-विचार में संयम की वृद्धि होती है। जीवन में सफलता के मार्ग खुलते हैं।
नवरात्रि के द्वितीय दिन देवी का संकल्प करते हुए व्रत करें और इस मंत्र का 108 बार जप करें -
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥