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देश के इस हिस्से में एक महीने बाद मनाई जाती है बूढ़ी दिवाली, बड़ी दिलचस्प है इसकी वजह

By मेघना वर्मा | Updated: November 24, 2019 12:16 IST

देश में मनाई जाने वाली दिवाली के ठीक एक महीने बाद मनाई जाने वाली बूढ़ी दिवाली पर लोग बड़े पारंपरिक ढंग से मनाते हैं। लोगों के बीच खूब उत्साह देखा जा सकता है।

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ठळक मुद्देलोग इस दिन गीत, विहर गीत भयूरी, नाटियां, स्वांग के साथ नृत्य करते हैं। कुछ गांव में बढ़ेचू नृत्य करने की परंपरा भी है।

क्या आप जानते हैं भारत में एक गांव ऐसा भी हैं जहां एक महीने बाद मनाई जाती है। इस दिवाली को लोग बूढ़ी दिवाली भी कहा जाता है। हिमाचल के कुछ इलाकों में इसका जश्न मनाया जाता है। इस साल दिवाली का जश्न 28 अक्टूबर को मनाया गया था। मगर सिरमौर के गिरिपार इलाके, शिमला के कुछ गांवों और कुल्लू के निरमंड में दिवाली मेला 26 से लेकर 29 नवंबर तक धूमधाम से मनाया जाएगा।

ये है बूढ़ी दिवाली मनाने की वजह

बताया जाता है कि इस जगह पर भगवान राम के अयोध्या लौटने की खबर एक महीने देरी से लौटी थी। पहाड़ी लोगों ने समाचार सुनने के बाद लकड़ियों की मशालें जलाकर रोशनी की थी और खूब जश्न मनाया जाता है। तभी से इस इलाके में बूढ़ी दिवाली मनाने की परंपरा चली आ रही है। लोग दिवाली की अगली अमावस्या को इस त्योहार को मनाते हैं। गिरिपार में बूढ़ी दिवाली को मशराली के नाम से मनाते हैं।

ईष्ट देवताओं की करते हैं पूजा

देश में मनाई जाने वाली दिवाली के ठीक एक महीने बाद मनाई जाने वाली बूढ़ी दिवाली पर लोग बड़े पारंपरिक ढंग से मनाते हैं। लोगों के बीच खूब उत्साह देखा जा सकता है। इस दिन लोग अपने ईष्ट देवी-देवताओं की मंदिरों में पूजा-अर्चना करते हैं। इसके बाद बच्चे और बड़े सभी मिलकर लकड़ियां जलाते हैं। 

लोग इस दिन गीत, विहर गीत भयूरी, नाटियां, स्वांग के साथ नृत्य करते हैं। कुछ गांव में बढ़ेचू नृत्य करने की परंपरा भी है। कई जगहों पर आधी रात को बुड़ियात नृत्य भी किया जाता है। लोग एक-दूसरे को सूखे व्यंजन जैसे मूड़ा, चिवड़ा, शाकुली, अखरोड बांटकर एक दूसरे को बधाई देते हैं। 

टॅग्स :दिवालीपूजा पाठहिंदू त्योहार
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