भीष्म पितामह जयंती: जानें शांतनु पुत्र देवव्रत की 7 अनजानी बातें
By गुलनीत कौर | Updated: January 29, 2019 08:00 IST2019-01-29T08:00:45+5:302019-01-29T08:00:45+5:30
Bhishma Pitamah Jayanti (भीष्म पितामह जयंती): भीष्म पितामह अपने पूर्वजन्म में वसु देवता थे। एक पौराणिक कथा के अनुसार अनुसार ऋषि वशिष्ठ की गाय का हरण किया था इसलिए उन्हें मनुष्य रूप में जन्म लेने का शाप मिला था।

भीष्म पितामह जयंती | Bhishma Pitamah Jayanti | Bhishma Pitamah Birth Anniversary | भीष्म पितामह बर्थ एनिवर्सरी
महाभारत काल के प्रमुख पात्रों में से एक हैं भीष्म पितामह। यह कहना गलत नहीं होगा कि वे इस युग के सबसे प्रमुख पात्रों में से एक रहे। 29 जनवरी, दिन मंगलवार को भीष्म पितामह जयंती है। आइए इस खास अवसर पर उनके बारे में 7 अहम बातें जानते हैं:
1) भीष्म पितामह महाराज शांतनु एवं पवित्र नदी गंगा के पुत्र थे। जन्म उपरान्त ही गंगा देवी ने शांतनु के पुत्र को उनसे दूर कर दिया था परंतु बड़े होने परा पिता और पुत्र का स्वयं ही मिलना हुआ था।
2) राजा शांतनु ने देवव्रत (भीष्म पितामह) को केवल बाणों के सहारे ही गंगा का प्रवाह रोकते हुए देखा था। इस अद्भुत दृश्य को देख वे अचंभित हो गए और देवव्रत को अपने साम्राज्य का युवराज घोषित कर दिया।
3) भीष्म पितामह अपने पूर्वजन्म में वसु देवता थे। एक पौराणिक कथा के अनुसार अनुसार ऋषि वशिष्ठ की गाय का हरण किया था इसलिए उन्हें मनुष्य रूप में जन्म लेने का शाप मिला था। जिसके बाद ही उन्होंने गंगा पुत्र के रूप में जन्म लिया।
4) देवव्रत के पिता शांतनु को एक मछुआरे की पुत्री से प्रेम हुआ। उस कन्या ने देवव्रत के युवराज होने पर प्रश्न उठाया। अपने पिता के रिश्ते को बचाने के लिए ही देवव्रत ने युवराज का पड़ ठुकरा दिया और आजीवन इतने बड़े साम्राज्य का सेवक बनने का वचना लिया।
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5) देवव्रत ने कहा कि वे आजीवन ब्रह्मचारी रहेंगे, कभी विवाह नहीं करेंगे ताकि उनकी संतान इस साम्राज्य में हिस्सा ना मांगे। यह देख राजा शांतनु ने देवव्रत को 'इच्छामृत्यु' का वरदान दिया था।
6) इस इच्छामृत्यु के वरदान की वजह से ही भीष्म पितामह 58 दिनों तक बानों की शैय्या पर रहे फिर भी उनकी सांसें चलती रहीं। उनकी इच्छा से ही उन्हें मृत्यु की प्राप्ति हुई।
7) भीष्म पितामह एक ऐसे योद्धा थे जिन्होनें अपने ही गुरु, गुरु परशुराम से भी युद्ध किया था। यह युद्ध 23 दिनों तक लगातार चला, जिसमें दोनों बलपूर्वक संघर्ष करते रहे। 23वें दिन पितरों के आदेश से इस युद्ध को रोका गया। किन्तु कोई भी विजयी घोषित ना हो सका।

