Bakrid 2019: जम्मू-कश्मीर में कैसी होगी इस बार बकरीद? हो रही हैं ये विशेष तैयारियां
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: August 8, 2019 11:26 AM2019-08-08T11:26:28+5:302019-08-08T11:29:08+5:30
Bakrid 2019: जम्मू-कश्मीर में प्रशासन के सामने ये चुनौती है कि बकरीद के त्योहार के दौरान शांति बनी रहे और अप्रिय घटना या हिंसा न हो।
जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल-370 हटाने और यहां कई इलाकों में जारी कर्फ्यू के बीच प्रशासन के सबसे सबसे बड़ी चुनौती आम जन-जीवन को वापस पटरी पर लाना है। इस बीच बकरीद का त्योहार भी 12 अगस्त को है। प्रशासन के सामने ये चुनौती है कि बकरीद के त्योहार के दौरान शांति बनी रहे और अप्रिय घटना या हिंसा न हो। बकरीद के त्योहार से पहले शुक्रवार को जुमे की नमाज है। ऐसे में प्रशासन इसे लेकर तैयारियों में जुटा हुआ है।
Bakrid 2019: जम्मू-कश्मीर में बकरीद की तैयारी, राज्यपाल ने की कई घोषणाएं
गवर्नर सत्यपाल मलिक ने निर्देश दिये हैं कि दूसरे राज्यों में पढ़ाई करने वाले जम्मू-कश्मीर के जो छात्र बकरीद के मौके पर घर नहीं आ पा रहे हैं, उनके लिए विशेष कार्यक्रम आयोजन किए जाएं। साथ ही गवर्नर ने संपर्क अधिकारियों को इसके आयोजन के लिए एक-एक लाख रुपये भी जारी करने को मंजूरी दे दी।
अधिकारियों के साथ जम्मू-कश्मीर के हालात की समीक्षा के दौरान गवर्नर मलिक ने ये निर्देश दिये। श्रीनगर में राजभवन में अधिकारियों के साथ बैठक में गवर्नर मलिक ने कहा कि दूसरे राज्यों में पढ़ रहे जम्मू-कश्मीर के छात्रों के लिए डिप्टी कमिश्नर के दफ्तर में टेलीफोन बूथ लगाए जाएं ताकि वे अपने परिवार से बात कर सकें।
इस मीटिंग के दौरान अधिकारियों ने गवर्नर सत्यपाल मलिक को बताया कि बकरीद के अवसर पर जानवरों को खरीदने के लिए घाटी में विभिन्न स्थानों पर 'मंडियां' लगाई जाएंगी। यही नहीं, बकरीद के मौके पर राशन की दुकानों, किराने और दवा की दुकानों को भी खुला रखने के लिए कहा गया है।
Bakrid 2019: बकरीद का है इस्लाम में बहुत महत्व
इस्लाम धर्म में बकरीद के त्योहार का बहुत महत्व है। इस त्योहार को ईद-उल-अजहा के नाम से भी जाता है। यह त्योहार हर साल इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार जु अल-हज्जा महीने के 10वें दिन मनाया जाता है। बकरीद के दिन जानवरों की कुर्बानी की परंपरा है। मुसलमान इस दिन अल सुबह की नमाज पढ़ते हैं और फिर खुदा की इबादत में चौपाया जानवरों की कुर्बानी देते हैं।
बकरे की कुर्बानी के बाद उसके गोस्त को तीन भागों में बाटने की परंपरा है। गोस्त का एक भाग गरीबों को दिया जाता है। दूसरा भाग रिश्तेदारों में बांटा जाता है जबकि तीसरे भाग को अपने परिवार के लिए रखा जाता है।