जयपुरः एमपी के दिग्गज युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया वर्ष 2019-20 में सितारों के चक्रव्यूह में ऐस उलझे कि कांग्रेस छोड़कर ही उन्हें राजनीतिक राहत मिल पाई है, लेकिन अभी भी समय संपूर्ण रूप से सहयोगी नहीं बना है. उनकी प्रचलित कुंडली के वर्षफल पर भरोसा करें तो इस वर्ष नवंबर के पहले सप्ताह के बाद उनका बेहतर समय शुरू होगा और वर्ष 2021, 2022 अच्छे परिणाम देंगे.
अलबत्ता, विधानसभा चुनाव वर्ष 2023 एक बार फिर नई सियासी चुनौतियां लेकर आएगा, तो वर्ष के अंत में 14 नवम्बर 2023 से बुध की महादशा राजनीतिक उलझने बढ़ाएगी. प्रचलित कुण्डली में बुध धनु राशि में है, जो की बुध की सम-राशि है, बुध छठे, नौवें भाव का स्वामी होकर बारहवें भाव में है जिस पर केतु की पूर्ण पंचम दृष्टि है.
बुध महादशा की अवधि ज्यादा बेहतर नहीं है, इसलिए सियासी उलझनों के कारण उनका अध्यात्म की ओर झुकाव संभव है. देश की राजनीति में सिंधिया परिवार की एक विशेष पहचान रही है. इस परिवार के नेता कांग्रेस और बीजेपी, दोनों ही राष्ट्रीय दलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते रहे हैं.
ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता और कांग्रेस के प्रमुख नेता रहे माधवराव सिंधिया का 30 सितम्बर 2001 को एक हवाई जहाज हादसे में निधन हो गया था, इसके बाद 18 दिसम्बर को ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस से जुड़ गये. उन्होंने अपने पिता की सीट गुना से चुनाव लड़ा और शानदार जीत हासिल करके सांसद बने. वे मई 2004 में फिर से चुने गए और वर्ष 2007 में केंद्रीय संचार और सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री के रूप में केंद्रीय मंत्री परिषद में उन्हें शामिल किया गया.
वर्ष 2009 में लगातार तीसरी बार फिर से वे चुनाव जीत गए और उन्हें वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री बनाया गया. वर्ष 2014 में भी वे चुनाव जीत गए, परन्तु वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में कृष्णपाल सिंह यादव से चुनाव हार गए. हालांकि, वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत में ज्योतिरादित्य सिंधिया का महत्वपूर्ण योगदान था, किन्तु कांग्रेस के प्रमुख नेता कमलनाथ मुख्यमंत्री बने.
इसके बाद कांग्रेस की राजनीति कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के त्रिकोण में उलझ कर रह गई. लोकसभा चुनाव 2019 में हार के बाद ज्योतिरादित्य को राजनीतिक तौर पर किनारे किया जाने लगा, तो वे बीजेपी के करीब पहुंच गए.
इधर, 10 मार्च 2020 को उन्होंने कांग्रेस अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को कांग्रेस से अपना इस्तीफा दिया और 11 मार्च 2020 को भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गये. उनके समर्थक बीस से ज्यादा कांग्रेस विधायकों ने भी कमलनाथ सरकार से बगावत कर दी और इस सियासी जोड़तोड़ के नतीजे में कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई.
करीब पन्द्रह माह बाद शिवराज सिंह चौहान फिर से मुख्यमंत्री बन गए. हालांकि, इसके बाद भी लंबे समय तक उन्हें इंतजार करना पड़ा. एमपी राज्यसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें उम्मीदवार बनाया और वे चुनाव जीत गए. सियासत के सितारों पर भरोसा करें तो इस वर्ष के उतरार्ध से उनका समय बदल रहा है, जो इस ओर इशारा कर रहा है कि वे केन्द्रीय मंत्री जैसा महत्वपूर्ण पद प्राप्त कर सकते हैं!