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Bihar News: नीतीश सरकार के घोषणा के बावजूद लाखों लोग भूखे रहने को विवश, राशन कार्ड का खेल बना चुनौती

By एस पी सिन्हा | Updated: April 16, 2020 19:09 IST

कोरोना के माहामारी से पहले वे लोग दैनिक मजदूरी कर अपना पेट पाल लेते थे और घर परिवार का लालन-पालन कर लेते थे.

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ठळक मुद्देबेगूसराय जिले के बछवाडा प्रखंड के एक गांव में रहने वाले नयनसुख राय भी इसी पीड़ा से गुजर रहे हैं. जो मजदूर प्रतिदिन मजदूरी कर के अपना पेट पालते हैं, वे आज भूखमरी का शिकार हो रहे हैं.

पटना:कोरोना वायरस को लेकर जारी संकट के बीच मजदूर वर्ग के लोगों में खाने को लाले पड गए हैं. हालांकि बिहार में सरकार ने यह घोषणा कर रखी है कि हर गरीब परिवार को प्रत्येक परिवार के हिसाब से दस किलो अनाज, एक किलो दाल और एक हजार रूपये दिये जा रहे हैं. 

लेकिन इसकी सच्चाई गांवों में जाने से पता चलता है कि आखिर क्या इसका सही-सही अनुपालन किया जा रहा है? बिहार में लॉकडाउन की स्थिति में गरीबों को राशन मिलना मुश्किल हो गया है. कारण कि अभी तक लाखों गरीबों का राशन कार्ड ही नहीं बना है. जिससे उन्हें इस महमारी में कोई लाभ नही मिल पा रहा है.

ऐसे में अब यह प्रश्न उठने लगा है कि जिन गरीब परिवारों के पास राशन कार्ड नही है, उनके लिए भोजन का इंतजाम कैसे होगा? कोरोना के माहामारी से पहले वे लोग दैनिक मजदूरी कर अपना पेट पाल लेते थे और घर परिवार का लालन-पालन कर लेते थे. लेकिन लॉकडाउन के बाद से उनका रोजी-रोजगार बन्द होने से उनके सामने भूखमरी की स्थिती उत्पन्न हो गई है. 

इसी का दंश झेल रहे साधू शर्मा ने आज बताया कि उनके घर में खाने के लिए एक दाना तक नही है और राशन कार्ड के बगैर उन्हें राशन नही मिल रहा है. ऐसे में वे लोग क्या करें? उनके सामने भूखे मरने के सिवा कोई चारा नहे बचा है. वे लोग राजधानी पटना से सटे नेऊरा के सिवाला मोड़ के पास रहते हैं. उसी तरह से बेगूसराय जिले के बछवाडा प्रखंड के एक गांव में रहने वाले नयनसुख राय भी इसी पीड़ा से गुजर रहे हैं. राशन कार्ड होते हुए भी डिलर उन्हें उचित सामान नही दे रहा है. ऐसे में वे लोग जायें तो जायें कहां? 

जबकि बांका जिले के रजौन प्रखंड के अंतर्गत रूपसा गांव के रहने वाले पिंटू मंडल बताते हैं कि राशन दुकानदार निर्धारित मूल्य के अलावे अधिक पैसे लेता है और उसमें भी सामान पुरा नही देता है. यहां तक कि वह सडा हुआ अनाज देने लगता है, जिसे जानवर भी नही खा सकतीं. दाल की बात तो दूर ही है.

इस तरह से बिहार में सरकरी घोषणा महज मजाक बनकर रह गया है. हालात ऐसे हैं कि जो मजदूर प्रतिदिन मजदूरी कर के अपना पेट पालते हैं, वे आज भूखमरी का शिकार हो रहे हैं. उनके बच्चे भूखे रहने को मजबूर हैं. एक तरफ सरकार कहती है कि सभी को राशन दिया जाएगा. लेकिन दूरी तरफ हकीकत यह है कि अभी तक बिहार सरकार ने लाखों गरीबों का राशन कार्ड तक नहीं बनाया है. बिहार में सरकार ने सभी गरीबों तक दस किलो चावल-गेहूं और 1 किलो दाल मुफ्त में देने का फैसला किया है. 

अप्रैल माह में सभी को मुहैया भी करा देने का दावा किया जा रहा है. लेकिन जमीनी हकिकत इससे कोसों दूर नजर आता है. बिहार की जनसंख्या आज लगभग 12 करोड़ के आसपास है. सरकार का दावा है कि अब तक 1.68 करोड़ परिवारों का राशन कार्ड बन चुका है. जबकि पिछले विधानसभा सत्र के दौरान ये बातें निकल कर आई थीं कि कई ऐसे राशन कार्ड हैं जो फर्जी हैं जिसे हटाने की बात चल रही है. दूसरी तरफ राज्य के खाद्य आपूर्ति मंत्री मदन सहनी खुद मानते हैं कि अब तक 47 लाख नये आवेदन आये हैं. जिनमें से सिर्फ 11 लाख परिवार तक ही कार्ड पहुंच पाया है. ऐसे में यह साफ है कि अब भी 36 लाख लोगों तक कार्ड नहीं पहुंच पाया है.

ऐसे में अगर बिहार में अभी तक 36 लाख लोगों के पास राशन कार्ड नही है, तो फिर उन्हें इस महमारी में सरकार के द्वारा घोषित योजनाओं का लाभ कैसे मिल पायेगा? इससे यह स्पष्ट है कि जिनके पास राशन कार्ड नही है, उन्हें राशन नही मिल पा रहा है. हालांकि सरकार यह भी दावा कर रही है कि जल्द इन सबका राशन कार्ड बन जाएगा. लेकिन वह कैसे जब सरकारी कार्यालय बन्द हैं? इस संबंध में जब भोजपुर के डीएसओ संजीव कुमार से जब यह पूछा गया कि जिनके पास राशन कार्ड नही उन्हें इसका लाभ कैसे मिलेगा?

इसपर उन्होंने कह कि यह संभाव नही है और अभी कार्ड भी बनना संभाव नही है. जब लॉकडाउन खत्म होगा तो ये लोग फार्म क भरकर जमा करेंगे तो कार्ड बनाने की प्रक्रिया शुरू की जायेगी. अभी किसी भी हाल में यह संभव नही है. लेकिन दूसरी तरफ सूबे के खाद्य आपूर्ति मंत्री मदन साहनी ने यह कहते हैं कि जिसका राशन कार्ड नही है उन लोगों का राशन कार्ड तीन दिनों के अंदर बनवा दिया जायेगा. ऐसे में अब यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि बिहार की सच्चाई क्या है?

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