'बुलाती है मगर जाने का नहीं' राहत इंदौरी की जयंती पर पढ़ें उनके मशहूर शेर

By हर्ष वर्धन मिश्रा | Published: January 1, 2023 01:49 PM2023-01-01T13:49:26+5:302023-01-01T13:52:15+5:30

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जाने-माने शायर और कवि राहत इंदौर की आज जयंती है। उनका जन्म 1 जनवरी 1950 को इंदौर में हुआ था। अपनी शायरी के लिए राहत साहब युवाओं में काफी लोकप्रिय रहे। उनके शेर 'बुलाती है मगर जाने का नहीं' सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ।

अड़े थे जिद पे के सूरज बनाके छोड़ेंगे, पसीने छूट गए एक दीया बनाने में, मेरी निगाह में वो शख्स आदमी भी नहीं, जिसे लगा है जमाना खुदा बनाने में

इससे पहले की हवा शोर मचाने लग जाए, मेरे अल्लाह मेरी खाक ठिकाने लग जाए, घेरे रहते हैं कई ख्वाब मेरी आंखों को, काश कुछ देर मुझे नींद भी आने लग जाए

विश्वास बन के लोग ज़िन्दगी में आते है, ख्वाब बन के आँखों में समा जाते है, पहले यकीन दिलाते है की वो हमारे है, फिर न जाने क्यों बदल जाते है

लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के सँभलते क्यूँ हैं, इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यूँ हैं

अपना आवारा सर पटकने को, तेरी देहली देख लेता हूं, और फिर कुछ दिखाए दे या न दे, काम की चीज देख लेता हूं

प्यार के उजाले में गम का अँधेरा क्यों है, जिसको हम चाहे वही रुलाता क्यों है, मेरे रब्बा अगर वो मेरा नसीब नहीं तो, ऐसे लोगो से हमे मिलता क्यों है

बुलाती है मगर जाने का नहीं, ये दुनिया है इधर जाने का नहीं, मेरे बेटे किसी से इश्क़ कर, मगर हद से गुज़र जाने का नहीं, ज़मीं भी सर पे रखनी हो तो रखो, चले हो तो ठहर जाने का नहीं, सितारे नोच कर ले जाऊंगा, मैं खाली हाथ घर जाने का नहीं, वबा फैली हुई है हर तरफ, अभी माहौल मर जाने का नहीं, वो गर्दन नापता है नाप ले, मगर जालिम से डर जाने का नहीं