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एशियाई चैम्पियन बनने के बाद संजीत ने कहा, मेरे करियर का सबसे बड़ा पल

By भाषा | Updated: June 1, 2021 17:47 IST

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नयी दिल्ली, एक जून ‘पढ़ाई-लिखाई’ से दूर रहने के लिए मुक्केबाजी में हाथ आजमाने वाले एशियाई चैम्पियन संजीत को इस बात की खुशी है कि खेल को अपनाने के फैसले पर कायम रहने का उन्हें फायदा हुआ और ओलंपिक पदक विजेता को हराना उनके 10 साल के करियर का सर्वश्रेष्ठ क्षण रहा।

हरियाणा के रोहतक के 26 साल के इस खिलाड़ी ने दुबई में सोमवार को ओलंपिक रजत पदक विजेता और विश्व चैम्पियनशिप के दो बार के कांस्य पदक विजेता कजाखस्तान के वैसिली लेविट को 4 - 1 से शिकस्त दी।

संजीत (91 किग्रा) ने एक तरह से अपना बदला चुकता किया क्योंकि उन्हें 2018 में प्रेसिडेंट्स कप के दौरान लेविट ने नॉकआउट किया था।

संजीत ने दुबई से भारत के लिए रवाना होने से पहले पीटीआई-भाषा से कहा, ‘‘ यह मेरे करियर का सबसे बड़ा क्षण है, हालांकि मैं विश्व चैंपियनशिप का क्वार्टर फाइनलिस्ट भी हूं। ओलंपिक पदक विजेता को हराना बहुत बड़ी बात है।’’

लेविट के दमखम का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह इस प्रतियोगिता में अपने चौथे स्वर्ण पदक के लिए उतरे थे। वह तोक्यो ओलंपिक के लिए भी क्वालीफाई कर चुके हैं।

संजीत ने कहा कि उन्होंने पढ़ाई से बचने के लिए अपने बड़े भाई से प्रभावित होकर मुक्केबाजी में हाथ आजमाने का फैसला किया था।

उन्होंने कहा, ‘‘ मैंने अपने भाई को देखकर मुक्केबाजी में कदम रखा था, वह मेरे कोच भी हैं। यह बात 2010 की है। दरअसल, मेरे लिए यह पढ़ाई लिखाई से बचने का तरीका था। मुझे पढने में कोई दिलचस्पी नहीं थी और मेरे माता-पिता वास्तव में चाहते थे कि मैं पढ़ाई पर ध्यान दूं।’’

उन्होंने बताया,‘‘ शुरू में परिवार के लोगों ने खेल में जाने से माना किया लेकिन जब मैं पदक जीतने लगा तब वह मान गये। जब मैं राज्यस्तरीय चैम्पियन बना था तब वे काफी गर्व महसूस कर रहे थे।’’

सेना के इस जवान के खेल में सुधार से कोच सीए कुट्टप्पा भी काफी प्रभावित है।

उन्होंने बताया, ‘‘ वह कुछ साल पहले तक सिर्फ दमदार लगने पर विश्वास करता था और अब उसने 2018 में लेविट से मिली हार को काफी पीछे छोड़ दिया है। हमने रिंग में उसकी गति और मुक्कों पर भी काम किया है।

संजीत ने 2019 में रूस में हुए विश्व चैम्पियनशिप के क्वार्टर फाइनल में पहुंच कर अपनी प्रतिभा का लोहा मनावाया था।

कंघे की चोट के कारण वह ओलंपिक क्वालीफायर के लिए नहीं जा सके। कुट्टप्पा ने कहा, ‘‘ यह उसका दुर्भाग्य है। वह उस टूर्नामेंट में जाता तो अच्छा होता। अगर वह सीधे क्वालीफाई नहीं करता, तो भी उसके पास रैंकिंग के जरिये ऐसा करने का मौका होता।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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