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श्यामा प्रसाद मुखर्जीः भारत की सबसे बड़ी पार्टी के जनक, जिन्होंने कश्मीर मुद्दे पर कुर्बान किए प्राण

By आदित्य द्विवेदी | Updated: July 6, 2018 07:29 IST

जन्मदिन विशेषः श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने एक देश, एक विधान, एक प्रधान, एक निशान का नारा दिया।

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श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भारतीय जनसंघ की स्थापना की थी। 1977 में जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया। 1979 में जनता पार्टी की सरकार गिरने के बाद भारतीय जनता पार्टी का उदय हुआ। श्यामा प्रसाद मुखर्जी का लगाया एक छोटा राजनीतिक पौधा आज भारत का सबसे बड़ा राजनीतिक वृक्ष बन चुका है। देश के 20 राज्यों में भाजपा या सहयोगी दलों की सरकार है। देश की सबसे बड़ी पार्टी के जनक श्यामा प्रसाद मुखर्जी का आज जन्मदिन है।

श्याम प्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई 1901 ई. को एक संपन्न बंगाली परिवार में हुआ था। उनके बाबा गंगा प्रसाद मुखर्जी की ख्याति भी एक चिकित्सक के रूप में दूर-दूर तक फैली हुई थी। श्यामा प्रसाद के पिता आशुतोष न्यायाधीश और कुलपति जैसे बड़े पदों पर रहे। इसके बावजूद उनकी जीवन शैली बेहद सात्विक रही और धार्मिक संस्कारों का पालन करने में अडिग रहे। श्यामा पर भी अपने माता-पिता के व्यक्तित्व की छाप पड़ी।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1923 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से ग्रेजुएशन की पढ़ाई की। 1924 में कलकत्ता हाई कोर्ट में वकालत करने लगे और 1926 में आगे की पढ़ाई के लिए लंदन रवाना हो गए। 33 साल की उम्र में उन्हें कलकत्ता विश्वविद्यालय का वाइस चांसलर बना दिया गया। 33 वर्ष की उम्र में वाइस चांसलर बनने वाले संभवतः दुनिया के पहले शख्स रहे होंगे। श्यामा प्रसाद 1938 तक इसी पद पर बने रहे। उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर एमएलसी का चुनाव जीता लेकिन अगले ही साल इस्तीफा दे दिया। 1944 में हिंदू महासभा में शामिल हुए और अध्यक्ष बनाए गए।

आजादी के बाद पंडित नेहरू ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी को उद्योग मंत्रालय का प्रभार दिया। लेकिन लियाकत अली खान से दिल्ली पैक्ट पर विवाद के बाद उन्होंने 6 अप्रैल 1950 को इस्तीफा दे दिया। आरएसएस के गोलवलकर से परामर्श के बाद 21 अक्टूबर 1951 को भारतीय जनसंघ की स्थापना की। श्यामा प्रसाद मुखर्जी इसके पहले अध्यक्ष बनाए गए। 1952 के चुनाव में जनसंघ ने तीन सीटें जीती।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कश्मीर मुद्दे को जोर-शोर से उठाया। उनका नारा था एक देश, एक विधान, एक प्रधान, एक निशान। अनुच्छेद 370 के तहत कश्मीर को विशेष दर्जा था जो 'थ्री नेशन थ्योरी' को बढ़ावा देता था। मुखर्जी ने हिंदू महासभा और राम राज्य परिषद के साथ मिलकर एक बड़ा आंदोलन चलाने का फैसला किया। 11 मई 1953 को कश्मीर बॉर्डर से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। 23 जून 1953 को पुलिस हिरासत में ही उनकी तबियत खराब हुई और इलाज के दौरान अस्पताल में मौत हो गई। 

डॉ मुखर्जी की मृत्यु का समाचार सुनने के बाद उनकी मां जोगमाया देवी के शब्द थे, 'मैं गर्व के साथ महसूस कर रही हूं कि मेरे बेटे की क्षति भारत माता की क्षति है।'

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