संसद में उचित प्रतिनिधित्व के लिए महिलाओं का संघर्ष अब भी जारी : कार्यकर्ता

By भाषा | Updated: August 12, 2021 19:31 IST2021-08-12T19:31:40+5:302021-08-12T19:31:40+5:30

Women's struggle for proper representation in Parliament continues: Activists | संसद में उचित प्रतिनिधित्व के लिए महिलाओं का संघर्ष अब भी जारी : कार्यकर्ता

संसद में उचित प्रतिनिधित्व के लिए महिलाओं का संघर्ष अब भी जारी : कार्यकर्ता

नयी दिल्ली, 12 अगस्त महिला अधिकार कार्यकर्ताओं और सांसदों ने लोकसभा में महिला आरक्षण विधेयक को पारित कराने के लिए बृहस्पतिवार को विचार-विमर्श किया, जिसमें कहा गया कि आजादी के 75 साल बाद भी महिलाएं संसद में उचित प्रतिनिधित्व पाने के लिए संघर्ष कर रही हैं।

तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की सांसद महुआ मोइत्रा ने महिला आरक्षण विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि महिलाओं को चुनावी राजनीति और संगठनात्मक राजनीतिक स्तर पर प्रतिनिधित्व दिया जाना चाहिए।

लंबित विधेयक में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में सभी सीटों का एक तिहाई हिस्सा महिलाओं के लिए आरक्षित करने का प्रावधान है। राज्यसभा ने 2010 में विधेयक पारित किया लेकिन लोकसभा में विधेयक पर कभी मतदान नहीं हुआ और यह अभी भी लंबित है।

महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने विधेयक को पारित कराने के वास्ते 'टूलकिट' तैयार करने के लिए लोक विमर्श किया, और कहा कि आजादी के 75 साल बाद भी महिलाएं लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में उचित प्रतिनिधित्व पाने के लिए संघर्ष कर रही हैं। टीएमसी सांसद मोइत्रा ने कहा कि ऐसा लगता है कि इसके लिए कोई राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं है।

मोइत्रा ने कहा, ‘‘पार्टियों को भारी बहुमत मिल चुके हैं, लेकिन कांग्रेस हो या भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), इस विधेयक पर कोई आम सहमति नहीं बन पाई है, जैसा कि हाल में संसद में ओबीसी विधेयक के दौरान हुआ था। वास्तव में हमें सही काम करने के लिए किसी विधेयक की जरूरत नहीं है। टीएमसी और बीजू जनता दल (बीजद) ने ऐसा करने के लिए किसी विधेयक का इंतजार नहीं किया। महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने के लिए हमें किसी विधेयक की जरूरत नहीं है।’’

मजदूर किसान शक्ति संगठन की संस्थापक सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय ने कहा कि यह ‘‘हास्यास्पद’’ है कि देश की आबादी का 50 प्रतिशत होने के बावजूद, संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व इतना कम है। रॉय ने कहा, ‘‘हमारी यात्रा अस्थिर रही है और हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि 75वीं वर्षगांठ पर हमें आरक्षण अवश्य मिले। हमें यह सोचने की जरूरत है कि हम विधेयक से क्या चाहते हैं और इसलिए इस ‘टूलकिट’ को बनाने की जरूरत है। हमें इस बात की बहुत चिंता है कि यह विधेयक पास क्यों नहीं हुआ। हमारा इतना योगदान है फिर हमें मान्यता क्यों नहीं दी जा रही है।’’

‘गिल्ड ऑफ सर्विस’ और राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष रह चुकीं मोहिनी गिरी ने कहा कि महिलाओं की आवाज को सुनना होगा। उन्होंने कहा, ‘‘जब तक हमें समान अधिकार नहीं दिए जाते, तब तक हमारी आवाज कौन सुनेगा। मेरा मानना है कि अब समय आ गया है कि इसे आरक्षण न कहा जाए, बल्कि हमें कहना चाहिए कि 75 साल में हम संसद में 75 फीसदी भी क्यों नहीं हैं और इतनी ऊंची भागीदारी के बावजूद पुरुषों ने क्या हासिल किया?’’

ऑल इंडिया दलित महिला अधिकार मंच की राष्ट्रीय संयोजक विमल थोराट ने कहा कि महिलाएं वर्षों से संघर्ष कर रही हैं और इस संघर्ष को किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए। सामाजिक और महिला अधिकार कार्यकर्ता सैयदा हमीद ने कहा कि विधेयक का नाम बदला जाना चाहिए ताकि इसका प्रभाव बढ़े।

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Web Title: Women's struggle for proper representation in Parliament continues: Activists

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