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रिहायशी इलाकों पर गोलों की बरसात और खेतों में अनफूटे बमों के बीच क्या सीमाओं पर सीजफायर और चल पाएगा?

By सुरेश एस डुग्गर | Updated: December 5, 2019 03:07 IST

दरअसल सीजफायर उल्लंघन की घटनाएं दिनों दिन बढ़ती जा रही हैं। सीजफायर के 16 सालों के अरसे में होने वाली 9000 से अधिक उल्ल्ंघन की घटनाएं अक्सर सीजफायर के जारी रहने पर सवालिया निशान लगा देती हैं।

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ठळक मुद्दे क्या सच में सीजफायर ऐसा होता है? नागरिकों को निशाना बना मोर्टार तथा छोटे तोपखानों से गोलों की बरसात करनादागे गए कई गोले फूटते हैं तो मासूमों की जानें ले ले लेतें हैं।

क्या सच में सीजफायर ऐसा होता है? नागरिकों को निशाना बना मोर्टार तथा छोटे तोपखानों से गोलों की बरसात करना। दागे गए कई गोले फूटते हैं तो मासूमों की जानें ले ले लेतें हैं। कई अपंग और कई लाचार हो जाते हैं। जो गोले फूटते नहीं हैं वे गलियों और खेतों में जिन्दा मौत बन कर रहते हैं। ऐसे में आस यह लगाने को कहा जाता है कि सीमाओं पर जारी सीजफायर हमेशा के लिए बना रहे।

एलओसी से सटे इलाकों में रहने वाले लाखें लोगों ने 50 सालों तक ऐसे हालात के साथ जीना सीख लिया था पर 264 किमी लंबे इंटरनेशनल बार्डर के लोगों के लिए यह किसी अचम्भे से कम नहीं है। ‘एक तो जम्मू सीमा इटरनेशनल बार्डर है जहां इंटरनेशनल कानून लागू होते हैं और दूसरा कहते हैं कि सीजफायर भी जारी है,’ अरनिया का नरेश कहता था जो कुछ दिन पहले हुई गोलाबारी में अपने परिवार के एक सदस्य को गंवा चुका था। नरेश कहता था: ‘अगर इसे सीजफायर कहते हैं तो हमें इसकी जरूरत नहीं है। इससे भली जंग ही है जिसमें एक बार आर-पार हो जाए ताकि हमें भी पता चल जाए कि हमें जिन्दा रहना है या मर जाना है। हम रोज-रोज तिल-तिल कर मरने से तंग आ चुके हैं।’

दरअसल सीजफायर उल्लंघन की घटनाएं दिनों दिन बढ़ती जा रही हैं। सीजफायर के 16 सालों के अरसे में होने वाली 9000 से अधिक उल्ल्ंघन की घटनाएं अक्सर सीजफायर के जारी रहने पर सवालिया निशान लगा देती हैं। साथ ही सीमांत इलाकों के किसानों व अन्य नागरिकों के माथे पर चिंता की लकीरें।

198 किमी लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा और 814 किमी लंबी एलओसी से सटे इलाकों में बसने वाले 42 लाख के करीब सीमावासी दिन-रात बस एक ही दुआ करते हैं कि सीजफायर न टूटे। ‘हमने मुश्किल से अपना घर आबाद किया है और पाक सेना उसे मटियामेट करने पर उतारू है,’पल्लांवाला के डिग्वार का मुहम्मद अकरम कहता था जिसके दो बेटों को पहले ही सीमा पर होने वाली गोलीबारी लील चुकी है तथा सीजफायर से पहले उसके घर को कई बार पाक गोलाबारी नेस्तनाबूद कर चुकी है।

हालांकि पिछले महीने 26 तारीख को सीजफायर के 16 साल पूरे कर कर चुके सीजफायर के बने रहने पर सवाल अभी भी कायम है। ऐसे हालात के लिए पूरी तरह से पाक सेना को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है जो आतंकियों को इस ओर धकेलने के लिए अपनी कवरिंग फायर की नीति का इस्तेमाल एक बार फिर से करने लगी है और इस पर टिप्पणी करते हुए सेनाधिकारी कहते हैं कि अगर पाक सेना ने इस रवैये को नहीं त्यागा तो भारतीय पक्ष भी करारा जवाब देने से हिचकिचाएगा नहीं। और यही सीमावासियों के लिए चिंता की लकीरें पैदा करने वाला है जो पिछले 15 सालों के अरसे में 50 साल के गोलियों के जख्मों का दर्द भुला चुके हैं तथा अब फिर घरों से बेघर होने की स्थिति में नहीं हैं।

कोई नहीं जानता है कि सीजफायर का क्या भविष्य होगा पर सीमावासियों का भविष्य जरूर खतरे में है। वे रोजाना तिल-तिल कर मर रहे हैं। सिरों पर पाक सेना के गोलों की बरसात का खतरा मंडरा रहा है तो साथ ही भूखे मरने की नौबत भी आने लगी है। परेशानी यह है कि राज्य सरकार उनकी मदद उसी स्थिति में करती है जब युद्ध घोषित हो और इन लोगों की बदकिस्मती यह है कि प्रतिदिन होने वाला सीजफायर का उल्लंघन उनके लिए किसी युद्ध से कम नहीं है।

टॅग्स :जम्मू कश्मीर
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