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शहीद दिवस: क्यों की गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या, भारतीय इतिहास के लिए बना काला दिन

By रामदीप मिश्रा | Updated: January 30, 2018 09:55 IST

महात्मा गांधी ने हर परिस्थिति में अहिंसा और सत्य का पालन किया और लोगों से भी इनका पालन करने के लिए कहा करते थे। यही नहीं उन्होंने अपना पूरा जीवन सदाचार और लोगों के न्याय के लिए समर्पित कर दिया था।

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महात्मा गांधी की हत्या 30 जनवरी 1948 को कर दी गई थी। यह एक ऐसी घटना थी, जिसका प्रभाव सिर्फ देश में ही नहीं विदेशों पर भी पड़ा था। यह दिन हमारे भारतीय इतिहास का काला दिन था, जिसे आज भी याद कर देशवासियों की आंखें नम हो जाती हैं। पूरा देश आज (मंगलवार, 30 जनवरी) बापू की 70वीं पुण्यतिथि मना रहा है। बापू की हत्या खुद को हिंदू कट्टरवाद की विचारधारा से प्रेरित मानने वाले नाथूराम गोडसे ने की थी।

बापू ने अहिंसा के पथ पर चलना सिखाया 

महात्मा गांधी ने हर परिस्थिति में अहिंसा और सत्य का पालन किया और लोगों से भी इनका पालन करने के लिए कहा करते थे। यही नहीं उन्होंने अपना पूरा जीवन सदाचार और लोगों के न्याय के लिए समर्पित कर दिया था। शायद यही वजह है कि बापू का दिया हुआ हर सिद्धांत का अनुसरण देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लोग आज भी करते हैं।

बापू के मौत के पीछे यह थी वजह

महात्मा गांधी की हत्या करने का प्रयास नाथूराम गोडसे कई बार चुका था, मगर वो सफल नहीं हो पा रहा था, लेकिन 30 जनवरी को उसने बापू की हत्या कर दी थी। वह खुद को हिंदू कट्टरवाद की विचारधारा से प्रेरित मानता था। ऐसा करने के पीछे उसकी सोच थी कि भारत के विभाजन और उस समय हुई साम्प्रदायिक हिंसा में लाखों हिन्दुओं की हत्या के लिए महात्मा गांधी ही जिम्मेदार थे। हालांकि इस हत्या के पीछे कुछ राजनीतिक दलों के होने की भी बात कही गई थी, लेकिन बहुत छानबीन करने के बाद भी इस हत्या में किसी भी दल के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला।

प्रार्थना सभा में की थी हत्या

बापू की हत्या 30 जनवरी 1948 की शाम को नई दिल्ली स्थित बिड़ला भवन में गोली मारकर की गयी थी। वे यहां रोज शाम को प्रार्थना किया करते थे। 30 जनवरी 1948 की शाम को जब वे संध्याकालीन प्रार्थना के लिए जा रहे थे तभी नाथूराम गोडसे ने पहले उनके पैर छूने के बहाने से नीचे झुका और फिर सामने से उन पर बैरेटा पिस्तौल से तीन गोलियां दाग दी थीं। उस समय गान्धी अपने अनुचरों से घिरे हुए थे। गोडसे ने बापू की हत्या प्रार्थना सभा में शामिल होने से पहले ही कर दी थी। 

गोडसे को दी गई फांसी

हत्या के बाद गोडसे को गिरफ्तार कर मुकदमा चलाया गया जिसमें 8 नवंबर 1949 को उनका परीक्षण पंजाब उच्च न्यायालय, शिमला में किया गया था और फिर 15 नवंबर 1949 को नाथूराम गोडसे को अंबाला जेल में फांसी दे दी गई थी। 

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