2019 Lok Sabha election results for West Bengal:लोकसभा चुनाव 2024 का बिगुल बज चुका है। भाजपा ने इस बार पार्टी के लिए 370 पार और एनडीए गठबंधन के लिए 400 पार का नारा दिया है। लेकिन इसके लिए जरूरी है कि भाजपा 2014 और 2019 से भी बड़ा करिश्मा दोहराए। भाजपा की इस महात्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए जरूरी है कि पार्टी को पश्चिम बंगाल में 2019 से भी बड़ी सफलता मिले।
पश्चिम बंगाल में 2019 में किसको कितनी सीट मिली
लोकसभा चुनाव 2019 में सबसे बड़ा उलटफेर पश्चिम बंगाल में हुआ था। इस राज्य में लंबे समय तक वामपंथी पार्टियों का शासन रहा। इसके बाद ममता बनर्जी ( Mamata Banerjee) के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस ने बंगाल की राजनीति पर एकतरफा पकड़ बना ली। 2014 में 42 में से 34 सीटें तृणमूल कांग्रेस ने जीती। लेकिन साल 2019 में पासा पलट गया। इस साल नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने राज्य में बड़ा उलटफेर करते हुए 42 में से 18 सीटें अपने नाम कीं। तृणमूल कांग्रेस को 22 सीटें मिलीं।
लोकसभा चुनाव 2019 में पश्चिम बंगाल में 78.6 प्रतिशत वोटिंग हुई थी। तृणमूल कांग्रेस को 43.7 फीसदी और बीजेपी को 40.6 फीसदी वोट मिले थे। बीजेपी को उम्मीद है कि 2024 के लोकसभा चुनावों में उसे 25 से ज्यादा सीटें मिलेंगी। पश्चिम बंगाल में इस बार भी तृणमूल कांग्रेस (Trinamool Congress) अकेले चुनाव लड़ रही है। बंगाल में तेजी से उभरी भारतीय जनता पार्टी के लिए ये अनुकूल मौका है।
चुनावों से पहले किए जाने वाले ओपिनियन पोल भी भाजपा को राज्य में बढ़त मिलते हुए दिखा रहे हैं। न्यूज 18 के मेगा ओपिनियन पोल के मुताबिक, आगामी लोकसभा चुनाव में बीजेपी के नेतृत्व वाला एनडीए पश्चिम बंगाल की 42 में से 25 सीटें जीत सकता है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी इस बात को समझती हैं कि बीजेपी उन्हें बंगाल में तगड़ी चुनौती देने वाली है। यही कारण है कि ममता ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के मुद्दे पर बीजेपी और केंद्र सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। ममता बनर्जी ने कहा है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) से जुड़ा हुआ है, इसलिए वह इसका विरोध कर रही हैं। तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ने कहा कि वह असम जैसे हिरासत केंद्र (डिटेंशन कैंप) पश्चिम बंगाल में नहीं चाहती हैं। बंगाल में मुस्लिम समुदाय के वोट बड़े पैमाने पर तृणमूल कांग्रेस को मिलते हैं और ममता की पूरी कोशिश है कि अल्पसंख्य वोट किसी भी कीमत पर कांग्रेस या वामदलों के पाले में न जाएं।