पटनाः बिहार विधानसभा चुनाव से पहले एनडीए के लिए राहत की खबर है। भोजपुरी अभिनेता से राजनेता बने पवन सिंह ने मंगलवार को आरएलपी प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा से मुलाकात की। पवन सिंह ने सांसद के पैर छूएकर आर्शीवाद लिए। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) बिहार के शाहाबाद-मगध क्षेत्र में अपनी स्थिति फिर से सुधारने की कोशिश कर रहा है। 2020 के विधानसभा चुनावों के साथ-साथ 2024 लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन देखने को मिला था। पवन ने बिहार भाजपा प्रभारी विनोद तावड़े के साथ दिल्ली में उपेंद्र कुशवाहा के राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) के अध्यक्ष से आवास पर मुलाकात की।
बिहार विधानसभा चुनाव से पहले सामाजिक गठबंधन में आई दरार को दूर करने के लिए राजग की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। पवन सिंह ने कुशवाहा से उनके आवास पर मुलाकात की। इस दौरान उनके साथ भाजपा महासचिव विनोद तावडे और पार्टी सचिव ऋतुराज सिन्हा भी थे। तावड़े बिहार में भाजपा के संगठन प्रभारी हैं।
पवन सिंह ने 2024 के लोकसभा चुनावों में कुशवाहा की हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जब उन्होंने काराकाट सीट से निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ा था। यह बैठक जाहिर तौर पर सिंह के आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने की संभावना के बीच राज्यसभा सदस्य कुशवाहा को शांत करने के उद्देश्य से हुई थी।
बाद में, तावड़े ने संवाददाताओं से कहा कि पवन सिंह भाजपा के साथ हैं और आगामी चुनावों में राजग के लिए सक्रिय रूप से काम करेंगे। तावडे ने कहा कि कुशवाहा ने उन्हें आशीर्वाद दिया है। लोकप्रिय भोजपुरी गायक को भाजपा ने पहली बार 2024 में पश्चिम बंगाल के आसनसोल से मैदान में उतारा था।
हालांकि बाद में पार्टी ने उन पर यह आरोप लगने के बाद उन्हें चुनाव मैदान से हटने के लिए दबाव डाला कि उनके संगीत वीडियो और गीतों में बंगाली महिलाओं को अभद्र तरीके से दिखाया गया है। पार्टी द्वारा उन्हें बिहार से टिकट देने से मना करने के बाद, राजपूत जाति से आने वाले पवन सिंह ने काराकाट सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा।
उच्च जातियों का एक वर्ग, खासकर राजपूत, उनके समर्थन में एकजुट हो गया, जिससे क्षेत्र के कुशवाह समुदाय में नाराजगी फैल गई और भाजपा के नेतृत्व वाले राजग को कुछ सीटों का नुकसान उठाना पड़ा। काराकाट लोकसभा चुनाव में कुशवाहा तीसरे स्थान पर रहे और यह सीट भाकपा (माले) ने जीती।
बिहार चुनाव में जातीय समीकरण एक बड़ा कारक हैं। भोजपुरी स्टारडम के प्रभाव से भी इनकार नहीं किया जा सकता। एनडीए और राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन दोनों के लिए सबसे बड़ी चुनौती और उनका ध्यान उन सीटों पर है, जहाँ उन्हें 2024 के लोकसभा चुनावों में हार का सामना करना पड़ा था। शाहाबाद क्षेत्र विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।
खासकर काराकाट जहाँ भोजपुरी सुपरस्टार पवन सिंह के आने से पूरा समीकरण बदल गया है। ताज़ा घटनाक्रम बताते हैं कि सिंह उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) में शामिल होने से बस कुछ ही कदम दूर हैं। आगामी बिहार चुनाव में दो सीटों का लालच दिया जा रहा है। सिंह की चुनावी उपस्थिति जातीय और स्टारडम संतुलन में एक महत्वपूर्ण कारक है।
पूर्व भाजपा नेता को पिछले साल पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था। अब, उन्हें और कुशवाहा को एक साथ लाना एक मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है, लेकिन विद्रोह और विश्वासघात से भरे उनके इतिहास को देखते हुए यह आसान काम नहीं था। कुशवाहा के साथ पवन सिंह की बहुप्रतीक्षित बैठक आयोजित करके, पार्टी कोइरी समुदाय के मतदाताओं को भी लुभाना चाहती है।
उन्होंने 2020 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनावों में एनडीए के खिलाफ मतदान किया था। लोकसभा चुनावों में कोइरी समुदाय के मतदाताओं के बंटवारे के बाद महागठबंधन के दो कुशवाहा उम्मीदवार राजा राम सिंह और अभय सिन्हा उर्फ अभय कुशवाहा काराकाट और औरंगाबाद सीटों से जीत गए थे।
इसलिए इस महत्वपूर्ण बैठक के साथ भाजपा अब कोइरी समुदाय के मतदाताओं को अपने पाले में लाने और इस बार अपने बिखराव को रोकने की योजना बना रही है। इस साल की शुरुआत में अगस्त महीने में बिहार की अपनी यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री ने गया का दौरा किया था और मगध और शाहाबाद क्षेत्र के लिए 13,000 करोड़ रुपये की परियोजनाओं की घोषणा की थी।
भाजपा सूत्रों ने यह भी संकेत दिया कि कुशवाहा से मिलने से पहले पवन सिंह ने आरा में आरके सिंह के साथ भी बैठक की थी और उन्हें आगामी विधानसभा चुनावों में उतारा जा सकता है। विधानसभा चुनावों में जातिगत समीकरणों को भी ठीक किया जा सके, जो राज्य में प्रमुख कारक है। भोजपुरी अभिनेता और गायक पवन सिंह आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमा सकते हैं।
मंगलवार को सिंह ने राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता विनोद तावड़े से राष्ट्रीय राजधानी में मुलाकात की, जिससे नई राजनीतिक चर्चाएँ शुरू हो गईं। मुलाकात के बाद मीडिया से बात करते हुए तावड़े ने पुष्टि की कि पवन सिंह हमेशा से भाजपा का हिस्सा रहे हैं और आगे भी भाजपा के साथ बने रहेंगे।
पिछले लोकसभा चुनाव में पवन सिंह के काराकाट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने के फैसले को उपेंद्र कुशवाहा की हार का मुख्य कारण माना गया था। राजपूत समुदाय ने कुशवाहा को समर्थन नहीं दिया, जिसका असर कई पड़ोसी निर्वाचन क्षेत्रों पर भी पड़ा। कुशवाहा मतदाताओं ने एनडीए उम्मीदवारों से दूरी बना ली। शाहाबाद और आसपास के इलाकों में भाजपा को काफी नुकसान हुआ।