Voter Adhikar Yatra: कांग्रेस नेता राहुल गांधी की 16 दिवसीय ‘मतदाता अधिकार यात्रा’ सोमवार(1 सितंबर) को समाप्त होने वाली है। यात्रा की शुरुआत 17 अगस्त को सासाराम से हुई थी और करीब 1300 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए 24 जिलों और 50 विधानसभा क्षेत्रों से होकर गुजरी। इस दौरान राहुल गांधी ने भाजपा और चुनाव आयोग पर लगातार निशाना साधा और जनता को वोट चोरी के खिलाफ सजग रहने की अपील की। लेकिन अब महागठबंधन की मतदाता अधिकार यात्रा अब अपनी समापन पर है। लेकिन इस यात्रा के मायने निकाले जाने लगे हैं। इस दौरान राहुल गांधी ने तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में प्रस्तुत करने से बचते रहे।
ऐसे में अब सवाल यह उठने लगा है कि क्या राहुल गांधी की यह यात्रा कांग्रेस को बिहार में नया जीवन दे पाएगी और 35 साल का वनवास खत्म कर पाएगी? कारण कि इस अभियान ने बिहार की राजनीति में नई हलचल जरूर पैदा कर दी है। सियासत के जानकारों का मानना है कि राहुल गांधी अपने मतदाता अधिकार यात्रा के माध्यम से राजद पर बराबरी का दर्जा देने का दबाव बना दिया है। दरअसल, विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 70 सीट की मांग कर रही है। लेकिन राजद 50-55 में ही निपटाना चाहती है। ऐसे में इस पदयात्रा में राहुल ने कांग्रेस का शक्ति प्रदर्शन किया है। जानकारों के अनुसार राहुल गांधी का मूल मकसद बिहार में कांग्रेस को स्थापित और मजबूत करना का है। यह बस कहने के लिए महागठबंधन की यात्रा थी, मगर हकीकत में यह यात्रा का आइडिया कांग्रेस के दबाव की राजनीति के तहत माना जा रहा है। जबकि महागठबंधन के अन्य दलों की भूमिका सिर्फ इसमें गेस्ट आर्टिस्ट की तरह रही। जबकि मूल कार्यक्रम कांग्रेस तय करती रही और उसके हिसाब से ही अन्य दल एक्ट करते रहे। सियासत के जानकारों का मानना है कि राहुल गांधी सड़क की सियासत को सत्ता तक ले जाना चाहते हैं।
वह बिहार में अपनी खोई हुई जमीन वापस लाना चाहते हैं। शायद यही कारण है कि राहुल गांधी ने अपनी यात्रा के दौरान तेजस्वी यादव का साथ तो लिया, लेकिन मुख्यमंत्री के तौर पर उनको पेश नही किया। जबकि तेजस्वी यादव ने उन्हें बतौर प्रधानमंत्री के रूप में पेश कर उन्हें अपने पक्ष में करने का प्रयास किया। इस यात्रा के माध्यम से कांग्रेस ने दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक मतदाताओं को साधने की कोशिश की है। हालांकि, कांग्रेस की हालिया स्थिति कमजोर रही है। पिछले तीन विधानसभा चुनावों में उसका वोट शेयर 10 फीसदी तक नहीं पहुंचा और लोकसभा में भी प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा। लेकिन, राहुल गांधी ने प्रदेश नेतृत्व में बदलाव कर दलित और पिछड़े वर्ग को प्रतिनिधित्व देकर नई ऊर्जा पैदा की है। जानकारों की मानें तो इस पूरी यात्रा में भले ही महागठबंधन साथ दिखी हो, मगर यह राजद के लिए बड़ी चुनौती है। सबसे बड़ा मामला सीट शेयरिंग का है। कांग्रेस ने पिछले चुनाव में अच्छा परफॉर्मेंस नहीं दिया था। इसके चलते राजद यह आरोप लगाती है की उनकी सरकार नहीं बन पाई। बता दें कि इस यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने देसी अंदाज अपनाया।
कभी बुलेट चलाते, कभी खेतों में उतर कर किसानों से बातचीत करते और गमछा लहराकर लोगों से जुड़ते नजर आए। तेजस्वी यादव के साथ मिलकर उन्होंने मतदाता सूची से नाम काटने और वोट चोरी के मुद्दे को बड़े पैमाने पर उठाया। प्रियंका गांधी ने भी यात्रा में शामिल होकर महिलाओं और ब्राह्मण बहुल मिथिला क्षेत्र में कांग्रेस को मजबूत करने का प्रयास किया। इस यात्रा के दौरान कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं ने अपनी उपस्थिती दर्ज कराई, जबकि महागठबंधन के इक्के-दुक्के मतदाताओं ने ही इसमें भाग लेना मुनासिब समझा। इससे महागठबंधन के भीतर भी सब कुछ अच्छा होने के संकेत नहीं मिले। हालांकि इस यात्रा के दौरान तेजस्वी यादव खुद को मुख्यमंत्री के रूप में पेश करते रहे, लेकिन कांग्रेस के नेता चुप्पी साधे रहे।
उल्लेखनीय है कि 1 सितंबर को राहुल गांधी सहित अन्य नेता गांधी मैदान के गांधी मूर्ति से शुरू होकर हाई कोर्ट के अंबेडकर स्मारक तक 4 किलोमीटर की पदयात्रा करेंगे। इस मतदाता अधिकार यात्रा के समापन कार्यक्रम का नाम 'गांधी से अंबेडकर' रखा गया है। इस पदयात्रा के जरिए राहुल गांधी सड़क की सियासत को सत्ता तक ले जाना चाहते हैं। हालांकि, इस पदयात्रा से पहले रैली का कार्यक्रम था, जिसे बाद में बदल दिया गया। कांग्रेस की ओर से रैली के दिन 1 सितंबर को गांधी मैदान नहीं उपलब्ध हो पाने के कारण यह फैसला लेने की बात कही गई है। वह समय रहते गांधी मैदान को आवंटित नहीं करा पाए। इसके बाद उन्होंने पटना के अन्य मैदान जैसे वेटनरी कॉलेज ग्राउंड या मिलर ग्राउंड को आवंटित न करके सीधे पदयात्रा का ऐलान कर दिया। लेकिन बाद में तय हुआ कि इस दौरान रैली नही कर पदयात्रा करने का निर्णय लिया गया। ऐसे में अब जब पटना में रैली होगी तो उन्हीं जिलों से भीड़ को फिर से जुटा पाना संभव नहीं हो पाएगा। इससे रैली में भीड़ कम होने का डर है और अगर ऐसा हुआ तो नेगेटिव मैसेज जाता। अगर उतनी भीड़ नहीं जुटती तो राहुल गांधी पिछड़ जाते।
इस बीच भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं पूर्व मंत्री शाहनवाज हुसैन ने राहुल गांधी की पदयात्रा पर निशाना साधते हुए कहा कि जहां तक राहुल गांधी के दौरे की बात है वे जानते हैं कि यहां भी उनका हाल दिल्ली जैसा ही होगा्। दिल्ली में वे जीरो पर आउट हुए और बिहार में भी जीरो पर आउट होंगे। कांग्रेस राजद पर पूरा दवाब भी बना रही है् क्योंकि पिछली बार कांग्रेस को 70 सीटें मिली थी। 19 सीटें जीती थीं। 50 से ज्यादा सीट कांग्रेस की झोली से निकल गई थी। इस बार राजद उन्हें पूरी तरह से सीट नहीं देने वाली है। राजद पर दबाव बनाने के लिए राहुल गांधी बिहार आए हैं। लेकिन जनता पर इसका कोई असर होने वाला है।
वहीं, जदयू के मुख्य प्रवक्ता एवं विधान पार्षद नीरज कुमार ने कहा कि जब तेजस्वी यादव को लगा कांग्रेस उनको भाव नहीं दे रही है तो खुद को मुख्यमंत्री का चेहरा बताने लगे। लेकिन उसके बाद भी कांग्रेस उनको मुख्यमंत्री चेहरा मानने के लिए तैयार नहीं है। न ही कांग्रेस और न ही बिहार की जनता तेजस्वी को मुख्यमंत्री मानने के लिए तैयार है्। उन्होंने कहा कि तेजस्वी यादव के अरमान पर राहुल गांधी पानी फेर देते हैं, जब उनसे पूछा जाता है कि मुख्यमंत्री का उम्मीदवार कौन होगा तो राहुल गांधी टाल देते हैं।
जबकि राजद प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने कहा कि बिहार में इंडिया गठबंधन के मुख्यमंत्री का चेहरा तेजस्वी यादव ही हैं। बिहार की जनता की पुकार को राहुल जी भी सुन रहे है सब इस बात को मान रहे हैं। महागठबंधन का नेतृत्व तेजस्वी जी कर रहे है, इसमें कहा कोई सवाल खड़ा हो रहा है। वहीं, कांग्रेस प्रवक्ता आनंद माधव ने कहा कि ये तय है महागठबंधन की सरकार बनेगी। जो सबसे बड़ी पार्टी है वो मुख्यमंत्री बनेंगे इसमें नई बात नहीं है।