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भू-माफियाओं ने किया गजब गोरखधंधा, जिंदा शख्स की झूठी डेथ सर्टिफिकेट बनाकर बेच दी उसकी जमीन, ऐसे हुआ पूरा खेल

By विनीत कुमार | Updated: August 4, 2022 15:20 IST

उत्तराखंड के नैनीताल में भू -माफियाओं ने एक जिंदा शख्स की फर्जी डेथ सर्टिफिकेट बनाकर उसकी जमीन बेच दी। चार साल पहले मामले का खुलासा हुआ था, अब जाकर इसमें विभागीय जांच के आदेश दिए गए हैं।

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ठळक मुद्देउत्तराखंड के नैनीताल जिले के कुमोला गांव के 67 साल के हरिकृष्ण बुद्धलाकोटी की जमीन बेची गई। हरिकृष्णा बुद्धलाकोटी की मृत्यु 1980 में दिखाकर जमीन के कुछ फर्जी सह-साझेदारों को भूमि अधिकार हस्तांतरित कर दिए गए। इसके बाद जमीन को बेच दिया गया, चार साल से न्याय के लिए भटक रहे हरिकृष्ण बुद्धलाकोटी को अब मिली सफलता।

देहरादून: उत्तराखंड के नैनीताल में एक ऐसा मामला सामने आया है जहां जमीन माफिया ने जिंदा शख्स का मृत्यु प्रमाणपत्र बनवाकर उसकी जमीन किसी और को बेच दी। चार साल कोशिशों और खुद के जिंदा होने का सबूत एक अधिकारी से दूसरे अधिकारी तक पहुंचाने के बाद अब जाकर पूरे गोरखधंधे की जांच के आदेश दे दिए गए हैं।

जिंदा शख्स का डेथ सर्टिफिकेट बनाकर कैसे बेची गई जमीन?

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार नैनीताल जिले के कुमोला गांव के 67 साल के हरिकृष्ण बुद्धलाकोटी के साथ हुई इस धोखाधड़ी के बारे में उन्हें चार साल पहले पता चला। दरअसल बुद्धलाकोटी ने पंगोट में स्थित अपनी तीन नाली (1 नाली = 200.67 वर्गमीटर) पैतृक भूमि को गिरवी रखकर एक लोन के लिए आवेदन किया। तब उन्हें बताया गया कि यह उनकी नहीं बल्कि एक वन अधिकारी की जमीन है।

बाद में उन्होंने पाया कि कुछ भू-माफियाओं ने कथित तौर पर संबंधित अधिकारियों की मिलीभगत से उनका फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र जारी किया था, और फिर जमीन के कुछ सह-साझेदारों (जिनके नाम भी धोखे से शामिल किए गए थे) को भूमि अधिकार हस्तांतरित कर दिए गए, जिन्होंने बाद में इसे बेच दिया। 2018 में मामले का खुलासा होने के बाद से बुधलाकोटि यह साबित करने की कोशिश में जुट गए कि वह जीवित हैं।

आखिरकार जब कुमाऊं संभागीय आयुक्त दीपक रावत शनिवार को हल्द्वानी में एक जनसुनवाई में पहुंचे तो बुधलाकोटि ने उनसे संपर्क किया। इसके बाद मामले में विभागीय जांच के आदेश दिए गए।

डेथ सर्टिफिकेट में मौत का साल 1980 लिखा गया

जारी किए गए फर्जी मृत्यु प्रमाण पत्र में बुद्धलाकोटी की मौत का साल 1980 लिखा गया है और इसे 20 मार्च, 2010 को बुधलाकोट ग्राम पंचायत कार्यालय द्वारा जारी किया गया। यहां तक ​​कि अगर वास्तव में उनकी मृत्यु होती तो भी जमीन उनके परिवार के पास जानी चाहिए थी न कि सह-हिस्सेदार के पास। 

अपनी आपबीती सुनाते हुए बुद्धलाकोटी ने कहा, 'कमिश्नर रावत के पास जाने से पहले मैंने दो साल पहले कुश्या कुटोली तहसील कार्यालय में मामला दर्ज कराया था, जिसके तहत मेरी संपत्ति आती है, लेकिन इस मामले में कुछ नहीं हुआ। 2018 में मैंने पुलिस में दो फर्जी सह-साझेदारों के खिलाफ मामला दर्ज कराया। दो आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया और मामला अब तक विचाराधीन है।' 

उन्होंने आगे कहा, 'प्रमाण पत्र में उल्लेख है कि 15 मई, 1980 को बुद्धलाकोटी गांव में मेरी मृत्यु हो गई। सर्टिफिकेट जारी होने के बाद, मेरे संपत्ति के स्वामित्व का अधिकार 2011 में फर्जी 'सह-साझेदारों' को स्थानांतरित कर दिया गया था। उसके तीन महीने बाद, उन्होंने जमीन डीएफओ उमेश तिवारी को बेच दी।'

ग्राम पंचायत अधिकारी से पूछताछ

कुमाऊं आयुक्त रावत ने मामले को गंभीर बताते हुए कहा, 'बुद्धलाकोटी की शिकायत मिलने के बाद, मैंने मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करने वाले ग्राम पंचायत अधिकारी के बारे में पूछताछ की है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्रमाण पत्र धोखाधड़ी से जारी किया गया था। मैंने जांच का आदेश दिया है। पुलिस पहले से ही अपनी जांच कर रही है। एक विभागीय जांच होगी। जल्द ही। मामले में दोषी पाए जाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।' 

वहीं, जमीन खरीदने वाले डीएफओ तिवारी ने धोखाधड़ी से संपत्ति खरीदने के आरोपों से इनकार किया है। तिवारी ने कहा, 'मैंने करीब 10 साल पहले संपत्ति उन लोगों से खरीदी थी, जिनके नाम राजस्व विभाग के रिकॉर्ड में मालिकों के रूप में दर्ज हैं।'

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