देहरादून: उत्तराखंड के जोशीमठ और चमोली में भूधंसाव की समस्या को लेकर हाईकोर्ट में दायर याचिका पर अदालत ने बड़ा आदेश दिया है। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्यों सरकारों को भूधंसाव और पुनर्वास के मामले में अपना जवाब सौंपने का निर्देश दिया है। साथ ही साल 2021 के फरवरी महीने में चमोली में हिमनदों के फटने से लापता हुए लोगों के बारे में सवाल किया है।
गौरलब है कि दिल्ली के अजय गौतम जो कि एक सामाजिक कार्याकर्ता है उन्होंने ही हाईकोर्ट में ये याचिका दायर की है। याचिका में कहा गया है कि जोशीमठ संकट के लिए बड़े पैमाने पर निर्माण और नियोजित सीवर प्रणाली की कमी को जिम्मेदार ठहराया गया है। इसके साथ ही जो लोग इससे प्रभावित है उनके पुनर्वास की मांग भी की है। उन्होंने याचिका में चमोली त्रासदी में अब भी लापता 122 लोगों की तलाश की मांग की है।
मामले में सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने राज्य और केंद्र की सरकारों को छह महीने के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
जोशीमठ में भूधांसव के कारण कई लोग बेघर
बद्रीनाथ मंदिर के प्रवेश द्वार शहर जोशीमठ के घरों और इलाके की भूमि पर दरारें आने के बाज जनवरी में भूस्खलन-धरावट क्षेत्र घोषित कर दिया गया था। ऐसे से इलाके में रह रहे सैकड़ों परिवारों को सुरक्षित क्षेत्रों में ले जाना पड़ा था और कई लोग अपने घरों को छोड़कर विस्थापित होने के लिए मजबूर हुए हैं। भूधंसाव के कारण 868 से अधिक इमारतें क्षतिग्रस्त हो गई हैं और 296 प्रभावित परिवारों के 995 लोग जनवरी से राहत शिविरों या फिर कियारे के मकानों में रह रहे हैं।
याचिकाकर्ता ने याचिका में कहा है कि अधिकारियों ने जोशीमठ की अत्यधिक संवेदनशील पारिस्थितिकी को समझे बिना ही वहां निर्माण कार्य की अनुमति दे दी। याचिका में कहा गया कि विकास कार्यों के नाम पर सड़कों और सुरंगों का निर्माण करने के लिए विस्फोटकों का इस्तेमाल किया गया है।
याचिका में समिति गठन की मांग
उत्तराखंड हाईकोर्ट में दायर याचिका में जोशीमठ और कर्णप्रयाग को बचाने के लिए उचित उपचारात्मक उपाय सुझाने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति गठित करने की मांग की है। इसके साथ ही सभी प्रकार के निर्माणों और चल रही परियोजनाओं को तब तक रोकने की मांग की गई है कि जब तक विशेषज्ञों द्वारा ये राय नहीं दी जाती कि क्या उन्हें कार्य करना चाहिए या नहीं तब तक इसे रोका जाए।
गौतम द्वारा दायर दूसरी याचिका में आरोप लगाया गया है कि ऑल वेदर रोड प्रोजेक्ट, ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे प्रोजेक्ट और एनटीपीसी के तपोवन विष्णुगढ़ पावर प्लांट में चार यात्रा के दौरान बड़े पैमाने पर ब्लास्टिंग, सड़कों को काटने और सुरंगों का निर्माण करके लोगों की सुरक्षा से समझौता किया गया है। उन्होंने कहा, "इन परियोजनाओं के निर्माण के दौरान, धूल, बोल्डर और चट्टानें अलकनंदा नदी और अन्य नदियों में अपना रास्ता बना रही हैं, जिसके परिणामस्वरूप पवित्र गंगाम का साफ पानी गंदा हो रहा है।"
याचिका में पर्यटकों, तीर्थयात्रियों, निवासियों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए ब्लास्टिंग और रोड कटिंग के लिए सख्त दिशा-निर्देश तैयार करने और यह सुनिश्चित करने की मांग की गई है कि किसी भी प्रकार के निर्माण के दौरान नदियों में मलबा नहीं डाला जाए।
वहीं, एक अन्य तीसरी याचिका में चमोली त्रासदी में अभी भी लापता 122 लोगों की तलाश की मांग की गई थी, जब जोशीमठ शहर के नीचे बहने वाली अलकनंदा नदी के किनारों पर एक हिमनद का प्रकोप हुआ था, विशेषज्ञों का कहना था कि यह भूमि के धंसने के लिए योगदान करने वाले कारकों में से एक है। गौतम ने कहा कि चमोली त्रासदी में मारे गए 204 लोगों में से अब तक 84 शव और 37 मानव शरीर के अंग बरामद किए जा चुके हैं, जबकि 122 अभी भी लापता हैं।
उन्होंने कहा कि मैंने यह निर्देश भी मांगा है कि 2013 के केदारनाथ त्रासदी में अभी भी लापता लोगों की तलाश के लिए तरीके, साधन और तकनीक का सुझाव देने के लिए 2019 में एचसी द्वारा दिए गए आदेश की तरह विशेषज्ञों की एक समिति गठित की जानी चाहिए।