लखनऊ: अगर किसी राज्य सरकार को चिट्ठी लिखकर अपने अफसरों को यह याद दिलाना पड़े कि संसदीय लोकतंत्र प्रणाली में जनप्रतिनिधियों का विशेष महत्व है तो आप उस राज्य के अफसरों की मानसिकता का अंदाज खुद-ब-खुद लगा सकते हैं. जी हाँ, यहां बात हो रही है, उत्तर प्रदेश जिले में तैनात पुलिस कप्तान, जिलाधिकारी और सरकारी विभागों के बड़े अफसरों की.
प्रदेश सरकार के ये अफसर विधायकों के ना तो फोन उठा रहे हैं और ना विधायक के दिए गए प्रार्थना पत्र पर त्वरित कार्रवाई कर रहे हैं. अफसरों के इस आचरण को प्रदेश सरकार ने गंभीरता से लिया है. जिसके चलते सूबे के मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह ने पत्र लिखकर जिलों और विभागों में तैनात बड़े अफसरों को अपने व्यवहार में परिवर्तन लाकर विधायकों के फोन और पत्रों को गंभीरता से लेने का निर्देश दिया है. यह भी कहा है कि जो अधिकारी विधायकों के फोन संज्ञान नहीं लिया तो ऐसे अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनिक कार्यवाही की जाएगी.
इसलिए जारी हुआ आदेश :
राज्य के मुख्य सचिव द्वारा लिखे गए इस पत्र के आधार पर अब प्रमुख सचिव संसदीय कार्य जेपी सिंह ने सभी अपर मुख्य सचिव, डीजीपी, मंडलायुक्त एवं डीएम एक शासनादेश भेजा है. इस शासनादेश में कहा गया है कि सांसदों एवं विधायकों के प्रति शिष्टाचार, प्रोटोकॉल एवं सौजन्य प्रदर्शन को लेकर विगत वर्षों में कई शासनादेश जारी किए जा चुके हैं. जिनके अनुपालन के लिए मुख्य सचिव द्वारा बीते दिनों वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए निर्देशित किया गया है.
इसके बावजूद शासन के संज्ञान में आया है कि कुछ जिलों में विभिन्न अधिकारियों द्वारा विधानमंडल के सदस्यों के फोन नहीं उठाए जा रहे हैं और ना ही कॉल बैक की जाती है. अफसरों के इस आचरण को बीते दिनों विधायकों ने सदन और संसदीय अनुश्रवण समिति की बैठकों में उठाया. तो शासन के सामने असहज स्थिति उत्पन्न हुई, जो खेदजनक है. ऐसा दोबारा ना हो इसले लिए सांसदों और विधायकों के फोन नंबर को अधिकारी अपने फोन पर सेव करें. इनका कॉल आने पर उसे रिसीव करेंगे.
बैठक में होने पर अधिकारी सांसद और विधायक का कॉल आने पर प्राथमिकता के आधार पर अनुपलब्ध होने का मैसेज उन्हे भेजेंगे और यथाशीघ्र कॉल बैक करेंगे. इसके साथ ही सांसद और विधायक द्वारा बताए प्रकरणों को हर अधिकारी प्राथमिकता के आधार पर निस्तारित करेंगे. इसमें शिथिलता बरतने वाले अधिकारियों एवं कर्मचारियों के खिलाफ अनुशासनिक कार्यवाही की जाएगी. इसलिए इन निर्देशों का कड़ाई से अनुपालन कराया जाए.
अफसरों ने शासनादेश की भी अनदेखी की :
बताया जा रहा है कि राज्य के प्रमुख सचिव संसदीय कार्य जेपी सिंह यह आदेश इस लिए जारी करना भी जरूरी हो गया था क्योंकि विधानमंडल के बीते सत्र में सदन में जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा का मुद्दा उठा. सत्ता पक्ष और विपक्ष के भी कई विधायकों ने कहा सूबे की नौकरशाही के व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आ रहा है. जबकि हर बार विधायक अधिकारियों के फोन ना उठाने और उनके कॉलबैक ना करने की शिकायत करते हैं, लेकिन अफसर अपने व्यवहार कोई परिवर्तन नहीं ला रहे है.
कुछ विधायकों ने तो लिखित में यह शिकायत दर्ज कराई है कि वह जनता से जुड़े मुद्दों पर लिखा-पढ़ी करते हैं, लेकिन जिलों और विभागों के बड़े अफसर उसका संज्ञान ही नहीं रहे. यहीं नहीं यह अधिकारी सरकार के उन शासनादेश को भी ठेंगे पर रख रहे हैं, जिसमें कहा गया है कि किसी सांसद, विधायक या अन्य जनप्रतिनिधि का कोई पत्र जैसे ही किसी अधिकारी को प्राप्त हो, उसकी पावती भेजी जाए.
जिन पत्रों पर शीघ्र कार्रवाई संभव हो और मांगी गई सूचनाएं कार्यालय में उपलब्ध हों, उन पर पूर्ण उत्तर तत्काल प्रेषित किया जाए. और जिन मामलों में जांच करने या सूचना एकत्र करने में समय लगने की सम्भावना हो, उन मामलों में पत्रों की प्राप्ति स्वीकार करते हुए उसकी पावती की सूचना इस उल्लेख के साथ दी जाए कि आवश्यक कार्रवाई की जा रही है.
कार्रवाई पूर्ण होने पर जनप्रतिनिधि को इसकी पूर्ण सूचना से अवगत कराया जाए, लेकिन अफसरान हैं कि शासनादेश पर अमल भी जरूरी नहीं समझते. अफसरों द्वारा इस शासनादेश की हुई अनदेखी को शर्मनाक मानते हुए ही जेपी सिंह को जिलों और विभागों में तैनात बड़े अफसरों को पत्र लिखकर यह याद दिलाना पड़ा है कि लोकतंत्र में जन प्रतिनिधियों का विशेष महत्व है.
अगर अफसरों को इतनी जानकारी नहीं है तो उन्हें पदों पर रहने का अधिकार नहीं है. और अब सांसद और विधायक की अनदेखी करने वाले अफसर के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी, इसलिए अधिकारी अपने आचरण में बदलाव लाए.