लखनऊ: इसी 11 अक्टूबर को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पराली जलाने की घटनाओं को शत प्रतिशत रोकने के निर्देश दिए थे. तब उन्होंने सूबे के सभी जिलाधिकारियों को निर्देश दिया था कि इसे रोकने में किसी तरह की लापरवाही मिली तो संबंधित के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. परंतु सीएम योगी के निर्देश के बाद भी राज्य में पराली की घटनाएं रुकने के बजाए बढ़ गई. गत 15 सितंबर से 26 नवंबर के बीच राज्य में पराली जलाने की 6284 घटनाएं रिपोर्ट की गई.
बीते साल इसी समयावधि में पराली जलाने की करीब 5,000 घटनाएं रिपोर्ट की गई थी. सीएम योगी के दिए गए निर्देश के बाद भी राज्य में पराली जाने की बढ़ गई घटनाओं को सरकार के लिए मुसीबत बताया जा रहा है, यह इसलिए भी कहा जा रहा है क्योंकि पराली जलाने की सबसे अधिक 661 मामले महराजगंज और 192 मामले गोरखपुर में दर्ज किए गए हैं.
सेटेलाइट से निगरानी से पराली के पकड़े गए मामले :
कृषि विभाग के अफसरों के अनुसार, महराजगंज और गोरखपुर में ही नहीं झांसी, जालौन और कानपुर देहात में पराली जलाने के मामले बढ़े हैं. पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए सरकार की सख्त हिदायतों, किसानों पर जुर्माना लगाने और वैकल्पिक उपायों की योजनाओं को लागू करने के बाद भी किसान ने पराली जलाना बंद नहीं किया. सेटेलाइट से निगरानी से यह पता चला है कि राज्य के करीब 60 जिले ऐसे हैं, जहां फसल अवशेष को आग लगाने के मामले में कम होने के बजाय पिछले वर्ष के मुकाबले बढ़े हैं. जबकि सूबे के आठ जिलों में तीन जिलों में पराली जलाने की सिर्फ आठ घटनाएं ही हुई हैं. भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) के सेटेलाइट के जरिए पराली जलाने के पकड़े गए मामलों से यह सच्चाई उजागर हुई है. इस आंकड़ों के सामने आने से कृषि विभाग के अधिकारी भी भौचक्क हैं.
आइएआरआई के आंकड़ों में याह भी बताया गया है कि पराली जलाने की कम घटनाओं के मामले में वाराणसी में तीन मामले सामने आए हैं. जबकि संत रविदासनगर में चार, चंदौली, सोनभद्र, फर्रुखाबाद, ललितपुर तथा आगरा में पांच-पांच और कासगंज में आठ मामले सामने आए हैं. इसके अलावा आगरा, प्रयागराज, अमरोहा, बदायूं, बलिया, बाराबंकी, गौतमबुद्धनगर, गाजियाबाद, मुजफ्फरनगर और सहारनपुर में पिछले वर्ष के मुकाबले फसल अवशेष जलाने की घटनाओं की संख्या कम रही है. परन्तु महराजगंज, गोरखपुर, झांसी, जालौन, कानपुर देहात, लखनऊ, उन्नाव जैसे तमाम जिलों में किसानों ने पराली जलाने में मामले में सरकार के आदेश को खुलकर अनदेखा किया है.
हमारे प्रबंध नाकाफी साबित हुए :
राज्य के कृषि निदेशक पंकज त्रिपाठी के अनुसार, आईएआरआई के आंकड़ों के हिसाब से पिछले वर्ष प्रदेश में 5248 मामले सामने आए थे, जो इस बार बढ़ गए हैं. इन मामलों के बढ़ने की वजह बार वर्षा के कारण किसानों द्वारा खेत सुखाने के लिए पराली जलाना भी है. ये संभावना जताते हुए पंकज त्रिपाठी कहते हैं कि राज्य में पराली जलाने की घटनाओं को रोकने के लिए इस बार हर जिले में प्रत्येक 50 से 100 किसानों पर एक नोडल अधिकारी की नियुक्ति की गई थी.
इसके अलावा किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन मशीनों, कंपोस्टिंग तकनीक और बायो-डी कंपोजर के उपयोग के लिए प्रेरित और प्रशिक्षित भी किया गया था. इस व्यवस्था के तहत ही इस वर्ष पराली जलाने के 1304 मामलों में किसानों से जुर्माने के रूप में 27,85,500 वसूले गए. इसके बाद भी पराली जलाने के मामले बढ़े हैं.जाहिर है कि हमारे प्रबंध नाकाफी साबित हुए.
अब ऐसे मामलों पर अंकुश लगाने के लिए किसानों के बीच फिर से जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करने पर ज़ोर दिया जाएगा. उन्हे समझाया जाएगा कि पराली जलाने छोड़कर उसे खाद के रूप में उपयोग करने पर ज़ोर दिया जाए. इससे सबका भला होगा.
यूपी में पांच वर्ष में कितनी घटनाएं
वर्ष घटनाएं2020 40062021 36172022 26632023 37372024 5248 2025 6284 (26 नवंबर तक)
पराली जलाने के ज्यादा मामले इन जिलों में हुए
महाराजगंज : 661झांसी : 448जालौन : 359कानपुर देहात : 275गोरखपुर : 192