लखनऊः उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने अब लगातार ड्यूटी के गायब डॉक्टरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का फैसला कर लिया है. जिसके तहत उन्होंने बिना सूचना के लगातार गैरहाजिर चल रहे चार डॉक्टरों को बर्खास्त करने पर अपनी मोहर लगा दी. इसके साथ ही उन्होंने प्रांतीय चिकित्सा सेवा (पीएमएस) कोटे का लाभ लेकर पीजी करने गायब हो गए 65 डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश प्रमुख सचिव चिकित्सा को दिया है. इन डाक्टरों ने पीजी करने के लिए एक करोड़ रुपए का बांड भरा था, लेकिन पढ़ाई करने के बाद इन डॉक्टरों ने दोबारा ड्यूटी ज्वाइन नहीं की. अब इन 65 डाक्टरों से बांड की 65 करोड़ की रकम वसूल की जाएगी. इसके साथ ही इन डाक्टरों से पीजी की पढ़ाई के दौरान लिए गए शैक्षिक अवकाश के दौरान मिले वेतन की भी वसूली की जाएगी.
ऐसे वसूली जाएगी बांड की रकम
स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के अनुसार, सरकारी अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी को दूर करने के लिए वर्ष 2017 में पीजी पाठ्यक्रमों में उन डॉक्टरों को मेरिट में 30 पर्सेंटाइल तक लाभ देने का फैसला किया गया था. इसका फायदा लेकर पीजी में दाखिला लेने वाले 65 डाक्टरों ने पढ़ाई पूरी करने के बाद सरकारी अस्पताल में ज्वाइन नहीं किया.
बताया जा रहा है कि यह डॉक्टर निजी अस्पतालों में कार्य कर रहे हैं. जबकि इन्होने पीजी करने और पढ़ाई पूरी होने के बाद सरकारी अस्पताल में नौकरी करने के लिए एक करोड़ रुपए का बांड भरा था. अब यह 65 डॉक्टर सरकार की योजना का लाभ लेने के बाद गायब है.
ऐसे में अब तय फैसला लिया गया है कि इन लापता 65 डाक्टरों को नोटिस भेजने के साथ ही जिलाधिकारियों को लिखा जा रहा है कि इनसे एक करोड़ रुपए की बांड राशि वसूली जाए. राज्य के उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक जो प्रदेश के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री भी हैं,
वह कहते हैं कि पीएमएस कोटे से पीजी करने के बाद सरकारी अस्पताल ज्वाइन ना करने वाले 65 डॉक्टरों से बांड की रकम की रिकवरी की जाएगी और उन्हे बर्खास्त भी किया जाएगा क्योकि इन डॉक्टरों ने अभी तक इस्तीफा नहीं दिया है.
इसलिए गायब हुए डॉक्टर
अब सवाल यह है कि पीएमएस कोटे से पीजी करने के बाद यह 65 डॉक्टर बांड भरने के बाद भी सरकारी अस्पताल में ज्वाइन क्यों नहीं कर रहे हैं? जबकि इन 65 डॉक्टरों ने यूपी के ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों (पीएचसी) में एक से तीन वर्षों तक कार्य किया था. इसके बाद इन लोगों ने सरकार की नीति का लाभ लेते हुए पीजी में दाखिला लिया था.
सरकारी की पीएचसी में काम करने के चलते ही इन डॉक्टरों का पीजी में दाखिला आसानी से हो गया. यहीं नहीं इन्हे फीस में भी रियायत मिली और पढ़ाई पूरी होने के बाद इन डॉक्टरों ने सरकारी अस्पताल में ज्वाइन नहीं किया. आखिर इन डॉक्टरों ने ऐसा क्यों किया?
इस बारे में पता किया तो यह बताया गया कि यह सभी डॉक्टर निजी अस्पतालों में पांच से छह लाख रुपए प्रति माह के वेतन पर कार्य कर रहे हैं. पीजी करने वाले डाक्टरों को आसानी से निजी अस्पतालों में इतना वेतन मिल जाता है, जबकि सरकारी अस्पताल में इन्हे एक से डेढ़ लाख रुपए ही प्रतिमाह मिलते.
जाहिर है कि ज्यादा वेतन पाने के चलते ही इन 65 डॉक्टरों से सरकारी अस्पतालों में काम करने से दूरी बनाने का फैसला किया और गायब हो गए. अब इन डॉक्टरों को खोज कर सरकार उनके बांड की रकम वसूलेगी. ताकि फिर कभी को पीएमएस के कोटे से पीजी कर गायब होने की हिम्मत ना करे.