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UP Elections 2022: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में नहीं दिखेंगे ये दिग्गज नेता, भाजपा, सपा और आरएलडी सहित मतदाताओं को जरूर कमी खलेगी

By भाषा | Updated: January 17, 2022 19:46 IST

UP Elections 2022: भारतीय जनता पार्टी के हिंदुत्व का चेहरा माने जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह (जिनका निधन 21 अगस्त 2021 को हो गया) ने राज्‍य में अपनी पार्टी के लिए गैर यादव पिछड़ी जातियों को एकजुट किया।

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ठळक मुद्देकल्‍याण सिंह के पुत्र राजवीर सिंह एटा से भाजपा के सांसद हैं। पश्चिम उप्र के लोग अजीत सिंह जी का सम्मान करते हैं।उप्र सरकार के पूर्व मंत्री लालजी टंडन की भी कमी महसूस की जायेगी ।

UP Elections 2022: उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में इस बार प्रदेश के दिवंगत पूर्व मुख्‍यमंत्री कल्‍याण सिंह, राष्ट्रीय लोकदल के संस्थापक चौधरी अजित सिंह, भारतीय जनता पार्टी के नेता लालजी टंडन, समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्यों में शामिल पूर्व मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा और अमर सिंह जैसे दिग्गज नेताओं की कमी खलेगी।

ये सभी दिग्गज चुनावी लड़ाई में अपनी पार्टी और उम्मीदवारों के पक्ष में मतदाताओं के बीच लहर पैदा करने के लिए जाने जाते थे और इनके बयानों और राजनीतिक प्रभावों के भी हमेशा निहितार्थ निकाले जाते रहे हैं और इनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी भी इनकी हर गतिविधि पर बारीक नजर रखते थे। इस बार के चुनावों में इनके न होने की कमी उत्‍तर प्रदेश के मतदाताओं को जरूर खलेगी हालांकि इन नेताओं की अगली पीढ़ी उनकी अनुपस्थिति में खुद को साबित करने के लिए सक्रिय दिख रही है।

राजनीतिक विश्लेषक जेपी शुक्ला ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी के हिंदुत्व का चेहरा माने जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह (जिनका निधन 21 अगस्त 2021 को हो गया) ने राज्‍य में अपनी पार्टी के लिए गैर यादव पिछड़ी जातियों को एकजुट किया। पश्चिमी उप्र में उनकी मजबूत पकड़ और स्‍वीकारोक्ति रही और उनके 'आशीर्वाद' से 2017 में अलीगढ़ जिले की उनकी परंपरागत अतरौली सीट से उनके पौत्र संदीप सिंह ने जीत सुनिश्चित की और योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व की सरकार में मंत्री बने।

कल्‍याण सिंह के पुत्र राजवीर सिंह एटा से भाजपा के सांसद हैं। कल्याण सिंह 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद राजनीतिक क्षितिज पर उभरे थे और उन्‍होंने राज्‍य के मुख्‍यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। उनके निधन को भाजपा के लिए एक बड़ी क्षति बतायी जा रही है।

राष्‍ट्रीय लोकदल के लिए यह पहला चुनाव होगा जब इसके अध्यक्ष जयंत चौधरी अपने पिता पूर्व केंद्रीय मंत्री अजीत सिंह (छह मई 2020 को दिवंगत) की अनुपस्थिति में अपनी पार्टी का नेतृत्व करेंगे। हालांकि चौधरी अजित सिंह ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में हार का स्वाद चखा, लेकिन जाट वोट बैंक और पश्चिमी उत्तर प्रदेश पर उनकी पकड़ को राजनीति में याद किया जाता है। रालोद के राष्ट्रीय सचिव अनिल दुबे ने कहा, ‘‘पश्चिम उप्र के लोग अजीत सिंह जी का सम्मान करते हैं।

इस बार वे जयंत चौधरी का नेतृत्व स्थापित करके उन्हें श्रद्धांजलि देंगे और सुनिश्चित करेंगे कि अगली सरकार सपा के साथ बने। ’’ इस बार रालोद प्रमुख जयंत ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया है और राज्य में अपनी पार्टी की उपस्थिति को फिर से महसूस कराने की कोशिश कर रहे हैं।’’

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के करीबी और लखनऊ में भाजपा का एक प्रमुख चेहरा माने जाने वाले बिहार और मध्य प्रदेश के पूर्व राज्यपाल और उप्र सरकार के पूर्व मंत्री लालजी टंडन की भी कमी महसूस की जायेगी । 21 जुलाई, 2020 को उनका निधन हो गया। लालजी टंडन के जीवित रहते उनके पुत्र आशुतोष टंडन राजनीति में सक्रिय हुए और 2017 में योगी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार में मंत्री भी बने लेकिन इस बार पिता की अनुपस्थित में उन्हें अपना चुनाव संभालना है।

लालजी टंडन लखनऊ में कई सीटों पर अपनी पकड़ के लिए जाने जाते थे और अटल के उत्तराधिकारी के रूप में वह लखनऊ लोकसभा संसदीय क्षेत्र का भी प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। समाजवादी पार्टी के प्रमुख नेता रहे पूर्व सांसद अमर सिंह का एक अगस्त, 2020 को निधन हो गया जबकि 27 मार्च, 2020 में मुलायम सिंह यादव के करीबी विश्वासपात्र बेनी प्रसाद वर्मा का निधन हो गया।

अति पिछड़ी कुर्मी बिरादरी के सबसे मजबूत नेता माने जाने वाले बेनी वर्मा और अपने चुटीले बयानों और चुनावी प्रबंधन से राजनीति में हलचल पैदा करने वाले अमर सिंह भी इस बार चुनावी परिदृश्य में नहीं दिखेंगे। 2017 के चुनावों से पहले जब समाजवादी पार्टी एक कड़वे सत्ता संघर्ष से गुज़री तो अमर सिंह ने अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव का साथ दिया और लड़ाई चुनाव आयोग में चली गई और अंततः अखिलेश ने लड़ाई और पार्टी का चुनाव चिन्ह जीत लिया। सिंह पर पार्टी नेतृत्व के एक वर्ग द्वारा मुलायम और अखिलेश के बीच दरार पैदा करने का आरोप लगाया गया था।

हालांकि बाद में अमर ने भाजपा के प्रति नरमी बरती और कई मौकों पर इसकी तारीफ की। समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य बेनी प्रसाद वर्मा ने 2009 में सपा छोड़ दी, 2016 में फिर से शामिल हुए और उन्हें सपा ने राज्यसभा भेजा। उनके बेटे राकेश वर्मा सक्रिय राजनीति में हैं और बाराबंकी से सपा के संभावित उम्मीदवार हैं। वह राज्‍य सरकार में एक बार मंत्री भी रह चुके हैं। रायबरेली का जाना माना चेहरा दिग्गज नेता अखिलेश सिंह का 20 अगस्त, 2019 को निधन हो गया ।

उनकी अनुपस्थिति में रायबरेली सदर सीट जीतने के लिए उनकी बेटी अदिति सिंह के लिए संघर्ष कड़ा होने की उम्मीद है जो कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो गई हैं। अखिलेश के जीवित रहते ही अदिति रायबरेली में 2017 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत गई थीं। पांच बार के विधायक अखिलेश सिंह को रायबरेली का राबिनहुड माना जाता था और वह कांग्रेस के अलावा निर्दलीय के तौर पर अपने दम पर तथा पीस पार्टी से भी रायबरेली की सीट जीते थे। 

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