मुंबई: उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे का ऐलान कर दिया है। फेसबुल लाइव में बेहद भावुक देते हुए उद्धव ठाकरे ने सीएम पद छोड़ने के साथ विधान परिषद से भी इस्तीफा देने की बात कही है।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा विधानसभा में बहुमत परीक्षण के लिए समय न दिये जाने के बाद महाविकास अघाड़ी गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने आखिरकार शिंदे गुट की संख्याबल के आगे हार मान ली और सीएम पद से इस्तीफे का ऐलान कर दिया।
एकनाथ शिंदे की बगावत के कारण अल्पमत में चल रही ठाकरे सरकार को बचाने के लिए एनसीपी और कांग्रेस ने भरसक प्रयास किया और अपने दलों के विधायकों को पूरी तरह से बांधकर रखा लेकिन शिवसेना, जो इस सरकार की अगुवाई कर रही थी वो ही अपने विधायकों की बगावत को शांत नहीं कर सकी और अंत में उद्धव ठाकरे सरकार की विदाई हो गई।
एकनाथ शिंदे गुट ने बगावत का ऐलान करते हुए कहा था कि अगर ठाकरे एनसीपी और कांग्रेस को छोड़कर भाजपा के साथ सरकार बना लेते हैं तो वो उद्धव सरकार के साथ बने रहेंगे लेकिन अगर वो एनसीपी और कांग्रेस के साथ रहते हैं तो बागी गुट उन्हें समर्थन नहीं देगा।
इसी बात को लेकर मची भगदड़ में शिवेसना के करीब 39 विधायकों ने शिंदे की अगुवाई में ठाकरे सरकार को गिराने के लिए राज्यपाल से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक गुहार लगाई।
16 विधायकों के साथ शिंदे गुट की गोलबंदी के आगे करीब हफ्ते भर संघर्ष करने के बाद इस्तीफे की घोषणा करते हुए उद्धव ठाकरे ने फेसबुक लाइव में कहा कि आज मंत्रिमंडल की बैठक हुई, मुझे इसका संतोष है कि बालासाहेब ठाकरे ने जिन शहरों का जो नाम रखा था, औरंगाबाद का नाम संभाजीनगर और उस्मानाबाद का नाम धाराशिव आज हमने उनको वे नाम आधिकारिक तौर पर दिए हैं।
वहीं ताजा जानकारी के मुताबिक भाजपा नेता और पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस महाराष्ट्र भाजपा प्रमुख चंद्रकांत पाटिल के साथ पार्टी विधायकों और नेता को लेकर मुंबई के ताज प्रेसिडेंट होटल में विधायक दल की बैठक करेंगे।
वहीं जैसे ही उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे का ऐलान किया, भाजपा खेमे में मिठाईयां बंटनी शुरू हो गई। भाजपा कार्यकर्ता इस खबर से बेहद उत्साहित हैं।
ठाकरे के इस्तीफे पर प्रतिक्रिता देते हुए महाराष्ट्र के निर्दलीय विधायक रवि राणा ने कहा, "मुख्यमंत्री को इस्तीफा पहले ही देना चाहिए था, उनकी बंद मुट्ठी में भी जो ताकत थी वो खुल गई है। जहां हिन्दुत्व के विचार छोड़कर कांग्रेस के विचारों पर मुख्यमंत्री चल रहे थे। एकनाथ शिंदे गुट ने बालासाहेब के विचारों पर कायम रखने के लिए विद्रोह किया है।"