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वाराणसी से वाडिप्पट्टि तक पवित्र गायें हैं, कोई उनका मजाक उड़ाने की हिम्मत नहीं कर सकता : अदालत

By भाषा | Updated: December 21, 2021 15:03 IST

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मदुरै (तमिलनाडु), 21 दिसंबर मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा है कि भारत में उत्तर प्रदेश के वाराणसी से लेकर तमिलनाडु के वाडिप्पट्टि तक ‘‘पवित्र गायें’’ चरती हैं और कोई उनका मजाक उड़ाने की हिम्मत नहीं कर सकता। अदालत ने तंज कसते हुए कहा कि संविधान में ‘‘हंसने के कर्तव्य’’ के लिए शायद एक संशोधन करना होगा।

उच्च न्यायालय ने कहा कि देशभर में राष्ट्रीय सुरक्षा ‘‘परम पवित्र गाय’’ है। अदालत ने एक व्यक्ति के खिलाफ दर्ज पुलिस की प्राथमिकी रद्द करते हुए यह टिप्पणी की। इस व्यक्ति ने फेसबुक पर एक पोस्ट में कई तस्वीरों के साथ कैप्शन में हल्के फुल्के अंदाज में लिखा था, ‘‘निशानेबाजी के लिए सिरुमलई की यात्रा’’।

न्यायमूर्ति जी आर स्वामीनाथन ने जाने माने व्यंग्यकारों, कार्टूनिस्टों तथा पत्रकारों से कहा कि अगर उन्होंने फैसला लिखा होगा तो ‘‘वे भारत के संविधान के अनुच्छेद 51-ए में एक उपखंड जोड़ने के लिए महत्वपूर्ण संशोधन का प्रस्ताव देते’’।

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि मजाक करना एक बात है और दूसरे का मजाक उड़ाना बिल्कुल अलग बात है। उन्होंने कहा, ‘‘किस पर हंसे? यह एक गंभीर सवाल है। क्योंकि वाराणसी से वाडिप्पट्टि तक पवित्र गायें चरती हैं। कोई उनका मजाक उड़ाने की हिम्मत नहीं कर सकता।’’

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) के एक पदाधिकारी याचिकाकर्ता मथिवानन ने मदुरै में वाडिप्पट्टि पुलिस द्वारा दर्ज एक प्राथमिकी को रद्द करने का अनुरोध किया था। पुलिस ने उनके फेसबुक पोस्ट को लेकर यह प्राथमिकी दर्ज की थी जिसमें उन्होंने सिरुमलई की तस्वीरों के साथ तमिल में एक कैप्शन लिखा था जिसका मतलब था, ‘‘निशानेबाजी के लिए सिरुमलई की यात्रा’’

न्यायमूर्ति ने कहा, ‘‘क्रांतिकारियों को चाहे वे वास्तविक हो या फर्जी, उन्हें आम तौर पर हास्य की किसी भी समझ का श्रेय नहीं दिया जाता है (या कम से कम यह एक भ्रांति है)। कुछ अलग करने के लिए याचिकाकर्ता ने थोड़ा मजाकिया होने की कोशिश की। शायद यह हास्य विधा में उनकी पहली कोशिश थी।’’

उन्होंने कहा कि लेकिन पुलिस को ‘‘इसमें कोई मजाक नहीं दिखा’’ और उनपर भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज कर दिया जिसमें भारत सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने की मंशा से हथियारों को एकत्रित करना और आपराधिक धमकी देना (आईपीएस 507) शामिल है। उन्होंने कहा कि आईपीसी की धारा 507 लगाने से ‘‘मुझे हंसी आ गयी।’’

उन्होंने कहा, ‘‘धारा 507 तभी लगायी जा सकती है कि जब धमकी देने वाले व्यक्ति ने अपनी पहचान छुपाई है। इस मामले में याचिकाकर्ता ने अपने फेसबुक पेज पर कैप्शन के साथ तस्वीरें पोस्ट की। उन्होंने अपनी पहचान नहीं छुपायी। इसमें कुछ भी गुप्त नहीं है।’’

अदालत ने कहा, ‘‘प्राथमिकी दर्ज करना ही बेतुका और कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है। इसे रद्द किया जाता है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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