अयोध्या विवाद: सुप्रीम कोर्ट में इस्लाम में मस्जिद के अनिवार्य होने की सुनवाई पूरी, 24 जुलाई को रखी जाएंगी अगली दलीलें

By भाषा | Published: July 21, 2018 10:55 AM2018-07-21T10:55:13+5:302018-07-21T10:55:13+5:30

उच्चतम न्यायालय ने राम जन्म भूमि - बाबरी मस्जिद मालिकाना हक के विवाद में मुस्लिम समूह के इस अनुरोध पर सुनवाई पूरी हो चुकी है कि शीर्ष अदालत के 1994 के एक फैसले में की गयी टिप्पणी पुनर्विचार के लिये वृहद पीठ को सौंपी जाये या नहीं।

The Supreme Court hearing on Ayodhya dispute will be completed almost on July 24 | अयोध्या विवाद: सुप्रीम कोर्ट में इस्लाम में मस्जिद के अनिवार्य होने की सुनवाई पूरी, 24 जुलाई को रखी जाएंगी अगली दलीलें

अयोध्या विवाद: सुप्रीम कोर्ट में इस्लाम में मस्जिद के अनिवार्य होने की सुनवाई पूरी, 24 जुलाई को रखी जाएंगी अगली दलीलें

नई दिल्ली, 21 जुलाई। उच्चतम न्यायालय ने राम जन्म भूमि - बाबरी मस्जिद मालिकाना हक के विवाद में मुस्लिम समूह के इस अनुरोध पर सुनवाई पूरी कर ली कि शीर्ष अदालत के 1994 के एक फैसले में की गयी टिप्पणी पुनर्विचार के लिये वृहद पीठ को सौंपी जाये या नहीं। इस फैसले में कहा गया था कि मस्जिद इस्लाम में अनिवार्य नहीं है। 

अयोध्या प्रकरण में मूल वादकारी एम . सिद्दीक , जिनका निधन हो गया और उनके वारिस उनका प्रतिनिधत्व कर रहे हैं , ने एम इस्माईल फारूकी मामले में 1994 के फैसले की कुछ टिप्पणियों पर सवाल उठाये थे। इसमें कहा गया था कि मस्जिद इस्लाम को मानने वालों द्वारा की जाने वाली इबादत का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। 

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा , न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस ए नजीर की तीन सदस्यीय विशेष खंडपीठ के समक्ष मुस्लिम समूह ने दलील दी कि शीर्ष अदालत के फैसले में की गयी इस तरह की ‘ अतिरंजित ’ टिप्पणी पर पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा विचार करने की आवश्यकता है क्योंकि बाबरी मस्जिद - राम जन्म भूमि विवाद मामले पर इसका असर होगा। 

पीठ ने कहा कि इस पर आदेश बाद में सुनाया जायेगा लेकिन इस बीच 24 जुलाई तक संबंधित पक्षकारों को लिखित दलीलें पेश करनी होगी। सिद्दीक के कानूनी वारिस की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता डा राजीव धवन ने कहा कि शीर्ष अदालत ने धार्मिक ग्रंथों पर विचार किए बिना और किसी जांच के बगैर ही यह टिप्पणी की है कि इस्लाम का पालन करने के लिये मस्जिद अनिवार्य नहीं है। 

सुनवाई शुरू होने पर धवन की पहले की गयी टिप्पणियों पर एक वकील ने आपत्ति की जिसे लेकर तीखी नोंकझोंक हुयी। धवन ने कहा था कि 1992 में हिन्दू तालिबान ने बाबरी मस्जिद नष्ट की थी। 

वकील का कहना था , ‘‘ उन्हें पूरे हिन्दू समुदाय के बारे में इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। ’’ धवन ने कहा , ‘‘ बाबरी मस्जिद को ध्वस्त करना आतंकी कृत्य था। मैं अपने शब्द वापस नहीं लूंगा। मैं अपने शब्दों पर कायम हूं। ’’ 

पीठ ने कहा कि इस तरह के शब्द (हिन्दू तालिबान) अनुचित हैं और न्यायालय की गरिमा बनाये रखी जानी चाहिए। पीठ ने सुरक्षाकर्मियों से कहा कि धवन के साथ नोंक झोंक करने वाले वकील को न्यायालय कक्ष से बाहर ले जायें। 

धवन ने 13 जुलाई को कहा था कि अफगानिस्तान के बामियान में जिस तरह से तालिबान ने बुद्ध की प्रतिमा ढहाई थी , उसी तरह हिन्दू तालिबान ने बाबरी मस्जिद गिरा दी। उत्तर प्रदेश सरकार ने इससे पहले शीर्ष अदालत से कहा था कि कुछ मुस्लिम समूह 1994 के फैसले में की गयी टिप्पणी पर पुनर्विचार का अनुरोध करके लंबे समय से लंबित अयोध्या के मंदिर - मस्जिद विवाद की सुनवाई में विलंब करना चाहते हैं। 

उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि इस विवाद को लगभग शताब्दी से अंतिम निर्णय का इंतजार है। उन्होंने यह भी कहा था कि 1994 की टिप्पणी न तो किसी प्रकरण में उठाई गयीं और न ही उच्च न्यायालय के फैसले के बाद 2010 में दायर अपीलों में उठायी गयी हैं। इससे पहले , हिन्दू समूहों ने 1994 के फैसले की टिप्पणियों को मुस्लिम समूह द्वारा अब उठाये जाने का विरोध किया था। 

Web Title: The Supreme Court hearing on Ayodhya dispute will be completed almost on July 24

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