पटना: बिहार विधानसभा चुनाव में पहले चरण के मतदान से ठीक चार दिन पहले जदयू प्रत्याशी अनंत सिंह की हुई गिरफ्तारी के बाद अब सभी की निगाहें मोकामा विधानसभा सीट पर टिक गई हैं। पटना जिले की चर्चित मोकामा सीट पर ‘छोटे सरकार’ के नाम से मशहूर पूर्व विधायक अनंत सिंह का लंबे समय से दबदबा रहा है, लेकिन इस बार उनकी सीधी टक्कर सूरजभान सिंह की पत्नी वीणा देवी से है। जदयू से अनंत सिंह और राजद से वीणा देवी के बीच यह मुकाबला न सिर्फ दो बाहुबलियों की विरासत की जंग है, बल्कि बिहार की राजनीति की दिशा तय करने वाली घड़ी भी साबित हो सकता है।
दरअसल, मोकामा सीट की राजनीति बिहार की उन चुनिंदा विधानसभा सीटों में गिनी जाती है, जहां बाहुबल, जातीय समीकरण और स्थानीय वफादारी, सब कुछ मिलकर चुनावी नतीजा तय करते हैं। यहां विकास के मुद्दे से ज्यादा असर व्यक्ति विशेष की पकड़ का होता है। तीन दशक से ज्यादा समय से मोकामा में चुनावी मुकाबले का मतलब रहा है। वहीं, 1990 के दशक में दिलीप सिंह ने इस परंपरा की नींव रखी थी। इसके बाद सूरजभान सिंह और फिर अनंत सिंह ने इस सीट को अपनी ताकत से परिभाषित किया।
दिलचस्प बात यह है कि हर दौर में मोकामा की राजनीति सत्ता में बैठे मुख्यमंत्री से ज्यादा इन बाहुबलियों के इर्द-गिर्द घूमती रही। मोकामा जहां बाहुबली, जातीय समीकरण और पुरानी दुश्मनी मिलकर सत्ता का संतुलन तय करने जा रही है। 2020 में राजद के टिकट पर जीते अनंत सिंह (‘छोटे सरकार’) इस बार जदयू के उम्मीदवार हैं, जबकि उनके पुराने प्रतिद्वंद्वी सूरजभान सिंह (‘डाडा’) की पत्नी वीणा देवी राजद के टिकट पर मैदान में हैं। नाम वीणा देवी का है, लेकिन असली जंग अनंत सिंह बनाम सूरजभान सिंह की है।
2000 का चुनाव मोकामा के इतिहास का टर्निंग पॉइंट माना जाता है, जब सूरजभान सिंह ने दिलीप सिंह को हराकर यह साबित कर दिया कि यहां जनता वोट विचारधारा से नहीं, बल्कि स्थानीय ताकत से तय करती है। इसके बाद जब 2005 में अनंत सिंह मैदान में उतरे, तो उन्होंने पूरे इलाके में “छोटे सरकार” की छवि बना ली। सूरजभान के जेल जाने के बाद उनकी पत्नी वीणा देवी राजनीति में उतरीं और मुंगेर से सांसद बनीं। अब 2025 के विधानसभा चुनाव में फिर वही पुराना मुकाबला लौट आया है,जहां अनंत सिंह और सूरजभान परिवार आमने-सामने हैं।
नीतीश कुमार हों या तेजस्वी यादव, सरकारें बदलती रहीं लेकिन मोकामा की राजनीतिक सच्चाई वही रही कि यहां पावर हमेशा बाहुबलियों के पास रही। साथ ही मोकामा का यह इतिहास न केवल बिहार की राजनीति की जटिलता को दिखाता है, बल्कि यह भी बताता है कि लोकतंत्र में कई बार “लोकप्रियता” का चेहरा भी ताकत और प्रभाव से तय होता है, न कि सिर्फ वोट से। मोकामा की सियासत हमेशा से ताकत, पहचान और वफादारी के मेल की कहानी रही है। हर दौर में चेहरा बदलता है, लेकिन सत्ता की चाबी उसी के पास रहती है जिसके पास जमीन से जुड़ाव और दबदबा दोनों हों। इतना तय है कि नतीजा चाहे जो भी हो, मोकामा की राजनीति में बाहुबल की परंपरा अभी खत्म नहीं हुई है।
उधर, अनंत सिंह की गिरफ्तारी के बाद सारे भूमिहार गोलबंद नजर आ रहे हैं। बता दें कि अनंत सिंह भूमिहारों के बड़े नेता हैं। अनंत सिंह को उनके क्षेत्र के लोग छोटे सरकार के नाम से पुकारते हैं। अनंत सिंह का क्षेत्र में काफी प्रभाव भी है। वहीं अनंत सिंह की गिरफ्तारी के बाद मोकामा में गोलबंद देखा जा रहा है। अनंत सिंह की गिरफ्तारी के बाद उनके समर्थकों में आक्रोश तो देखा जा ही रहा है। साथ ही समर्थक विश्वास भी जता रहे हैं कि उनके साथ न्याय होगा। अनंत सिंह के समर्थकों ने कहा कि विधायक जी सब दिन कानून का सम्मान किए हैं।
कानून के तहत विधायक जी ने अपनी गिरफ्तारी दे दी। समर्थकों ने कहा कि कानून की रक्षा करते हुए अनंत सिंह ने खुद अपनी गिरफ्तारी दी। पुलिस आई तो वो उनके साथ चले गए। जब समर्थकों से सवाल किया गया कि अनंत सिंह की गिरफ्तारी का चुनाव पर क्या प्रभाव पड़ेगा तो उन्होंने कहा कि जय अनंत तय अनंत..विधायक जी कहते हैं हम अनंत नहीं है जनता अनंत है। जनता बाहुबली होती है और जनता अनंत सिंह है। समर्थकों ने कहा कि कानून के सम्मान में सम्मानपूर्ण गिरफ्तारी हुई है। उन्होंने कहा कि सांच को आंच नहीं होगा। न्याय जनता देगी। विधायक जी निर्दोष हैं और जनता का एक एक मत विधायक जी को न्याय देगा। मोकामा में अनंत सिंह की गिरफ्तारी के बाद सियासी सरगर्मी बढ़ गई है।
6 नवंबर को पहले चरण का मतदान होना है। उल्लेखनीय है कि बिहार की राजनीति में जातिगत समीकरण बहुत महत्वपूर्ण हैं। कई राजनीतिक दल अक्सर भूमिहार मतदाताओं को संगठित करने के लिए अनंत सिंह जैसे प्रभावशाली नेताओं का उपयोग करते थे। अनंत सिंह की छवि एक स्थानीय संरक्षक (गॉडफादर या दादा) की रही है, जो अपने समर्थकों के लिए खड़े होते थे। इस छवि ने उन्हें अपने समुदाय के बीच लोकप्रियता हासिल करने में मदद की। अनंत सिंह की छवि एक 'दबंग' और 'बाहुबली' नेता की रही है, जिन्हें उनके समर्थक 'छोटे सरकार' के नाम से जानते हैं।
अनंत सिंह के बड़े भाई, दिलीप सिंह, 1980 के दशक के मध्य में क्षेत्र के एक प्रभावशाली भूमिहार गिरोह के नेता के रूप में उभरे थे और बाद में राजनीति में आए। अनंत सिंह ने इसी पारिवारिक राजनीतिक विरासत और बाहुबल को आगे बढ़ाया, जिससे समुदाय का समर्थन उन्हें स्वतः ही मिलना शुरू हो गया। इस छवि ने उनके समर्थकों के बीच, जिनमें भूमिहार समुदाय भी शामिल है, एक भरोसे का भाव पैदा किया कि वह उनके हितों की रक्षा कर सकते हैं और क्षेत्र में उनका मान-सम्मान बनाए रख सकते हैं उन्होंने स्थानीय स्तर पर अपनी पकड़ मजबूत की और लोगों से सीधे जुड़ाव बनाए रखा।