अदालत मुकदमे से असम्बद्ध व्यक्ति की अर्जी पर तेजी से सुनवाई का आदेश नहीं दे सकती : न्यायालय

By भाषा | Updated: December 17, 2020 15:56 IST2020-12-17T15:56:18+5:302020-12-17T15:56:18+5:30

The court cannot order a speedy hearing on the application of a person unaffiliated with the case: Court | अदालत मुकदमे से असम्बद्ध व्यक्ति की अर्जी पर तेजी से सुनवाई का आदेश नहीं दे सकती : न्यायालय

अदालत मुकदमे से असम्बद्ध व्यक्ति की अर्जी पर तेजी से सुनवाई का आदेश नहीं दे सकती : न्यायालय

नयी दिल्ली, 17 दिसंबर उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि उच्च न्यायालय किसी ऐसे व्यक्ति के आवेदन पर मुकदमे की सुनवाई तेजी से करने का आदेश निचली अदालत को नहीं दे सकता जिसका आपराधिक मामले से कोई संबंध नहीं है।

शीर्ष अदालत ने कहा कि यह स्थापित व्यवस्था है कि आपराधिक मुकदमें, जो भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत अपराध से संबंधित हैं, की सुनवाई जल्द से जल्द पूरी की जानी चाहिए क्योंकि यह आरोपियों को ही नहीं बल्कि पूरे समाज और प्रशासन को प्रभावित करता है।

न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने कहा कि उचित मामलों में उच्च न्यायालय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत या किसी अन्य कार्यवाही में, जैसी आवश्यकता हो, निचली अदालत को मुकदमे की सुनवाई तेजी से करने और ऐसे आदेश दे सकता है।

पीठ ने कहा, ‘‘उच्च न्यायालय दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत आपराधिक कार्यवाही या मुकदमे की सुनवाई के बारे में किसी ऐसे व्यक्ति के आवेदन पर विचार नहीं कर सकता जो किसी भी तरह से संबंधित मामले से जुड़ा नहीं हो।

शीर्ष अदालत ने कहा कि किसी आरोपी के आपराधिक मुकदमे की सुनवाई दंड प्रक्रिया संहिता में निर्धारित प्रकिया के अनुसार ही होती है। यह सुनिश्चित करना शासन और अभियोजन की जिम्मेदारी है कि सारे आपराधिक मुकदमों की सुनवाई तेजी से हो ताकि दोषी पाये जाने की स्थिति में आरोपी को न्याय दिया जा सके।’’

शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक फैसले के खिलाफ दायर अपील पर सुनाये गये निर्णय में यह टिप्पणी की ।

उच्च न्यायालय ने सामाजिक कार्यकर्ता त्रिपुरेश त्रिपाठी की याचिका पर निचली अदालत को यह निर्देश दिया था। इस प्रकरण में संजय तिवारी नामक व्यक्ति के खिलाफ उप्र पुलिस द्वारा 2006 में दर्ज मामले में 14 साल बाद आरोप पत्र दाखिल किया गया था।

शीर्ष अदालत ने कहा कि यह ऐसा मामला नहीं था जिसमे अभियोजन या आरोपी के नियोक्ता ने निचली अदालत या किसी अन्य अदालत में आवेदन दाखिल किया था।

शीर्ष अदालत ने कहा कि उसने पहले भी अपने फैसलों में कहा है कि आपराधिक मामलों में संबद्ध पक्ष ही उचित मंच पर कार्यवाही पर सवाल उठा सकते हैं या उसे चुनौती दे सकते हैं।

न्यायालय ने कहा कि आपराधिक मामलों में बाहरी व्यक्ति की कोई कानूनी भूमिका नहीं है।

न्यायालय ने कहा कि मौजूदा मामले में त्रिपाठी द्वारा शुरू की गयी कार्यवाही उचित नहीं लगती है क्योंकि उसका अपीलकर्ता के खिलाफ शुरू हुयी आपराधिक कार्यवाही से किसी प्रकार का संबंध नहीं है।

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