बेटे राहुल का बोझ कम करने उतरीं सोनिया, अपने हाथ में लीं इस प्रदेश में चुनाव प्रचार का जिम्मा
By हरीश गुप्ता | Published: November 22, 2018 06:43 AM2018-11-22T06:43:58+5:302018-11-22T06:43:58+5:30
दो पेशेवर एजेंसियों के सव्रेक्षण और मैदानी रिपोर्ट के बाद सोनिया ने सहमति जताई है. राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष पद की कमान थामने के बाद सक्रिय राजनीति से दूरी बनाकर रखने वाली सोनिया को तेलंगाना में लाने के लिए स्थानीय कांग्रेसी नेता काफी अरसे से गुजारिश कर रहे थे.
यूपीए प्रमुख सोनिया गांधी की तेलंगाना में कम से कम दो बड़ी रैलियों को संबोधित करने पर सहमति ने प्रदेश कांग्रेस के खेमे में खुशी की लहर दौड़ा दी है. उल्लेखनीय है कि सोनिया ने खुद को मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों के प्रचार से दूर रखा है.
दो पेशेवर एजेंसियों के सव्रेक्षण और मैदानी रिपोर्ट के बाद सोनिया ने सहमति जताई है. राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष पद की कमान थामने के बाद सक्रिय राजनीति से दूरी बनाकर रखने वाली सोनिया को तेलंगाना में लाने के लिए स्थानीय कांग्रेसी नेता काफी अरसे से गुजारिश कर रहे थे. कांग्रेस के प्रत्याशियों के मुताबिक तेलंगाना का निर्माण यूपीए के शासनकाल में सोनिया गांधी के प्रयासों से किया गया और वह तेलंगाना में बेहद लोकप्रिय हैं.
बदल रहा है माहौल
कांग्रेस, केसीआर के पूर्व सहयोगी तेलंगाना जन समिति (टीजेएस) के साथ तेदेपा, भाकपा के ‘महागठबंधन’ बना लेने से तेलंगाना में माहौल बदल रहा है. मुख्यमंत्री केसीआर को हासिल स्पष्ट बढ़त अब धीरे-धीरे कमजोर हो रही है. 2014 के विधानसभा चुनावों में यह सभी दल अलग-अलग लड़े थे. तब केसीआर की टीआरएस ने 119 में से 63 सीटों पर कब्जा जमाया था. कांग्रेस को 21 और तेदेपा को 15 सीट से ही संतोष करना पड़ा था. एमआईएम को सात और 8 सीट अन्य को मिली थी. टीआरएस के सांसद विश्वेवर रेड्डी के पार्टी छोड़ने को पार्टी की स्थिति को लेकर एक बड़ा संकेत माना जा रहा है.
ज्यादा था वोट प्रतिशत
महागठबंधन इस बात को लेकर उत्साहित है कि पिछले चुनाव में जहां टीआरएस का वोट प्रतिशत 34.30 फीसदी था, वहीं कांग्रेस का 25.20 फीसदी, तेदेपा का 14.70 फीसदी था. ऐसे में तेदेपा और कांग्रेस के साथ भाकपा और टीजेएस के भी साथ आ जाने के कारण केसीआर को जीत के लिए काफी पसीना बहाना पड़ेगा.