नई दिल्ली, 24 मार्च: भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने तेलुगु देसम पार्टी के एनडीए का साथ छोड़ने के फैसले को 'एकतरफा और दुर्भाग्यपूर्ण' करार दिया है। शाह ने ये बातें शुक्रवार को टीडीपी मुखिया को लिखे एक खत में कही। उन्होंने लिखा, 'यह फैसला पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित है। इसमें विकास की कोई चिंता नहीं है।' इससे पहले टीडीपी मुखिया ने कहा था कि उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने को लेकर बीजेपी इतना सख्त रवैया क्यों अपना रही है। गौरतलब है कि पिछले हफ्ते टीडीपी के दो मंत्रियों ने सरकार से इस्तीफा दे दिया था और पार्टी ने एनडीए का साथ छोड़ दिया था।
यह भी पढ़ेंः- मोदी सरकार के खिलाफ टीडीपी ने दिया अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस, विपक्ष ने जताया समर्थन
अमित शाह ने चिट्ठी में लिखी ये प्रमुख बातेंः-
- सबसे पहले आपको और आंध्र प्रदेश की पांच करोड़ जनता को उगड़ी की बधाई। मैं यह चिट्ठी टीडीपी के एनडीए से बाहर जाने के बाद लिख रहा हूं। यह फैसला एकतरफा और दुर्भाग्यपूर्ण है। यह फैसला पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित लगता है ना कि विकास से प्रेरित।
- बीजेपी सबका साथ-सबका विकास के सिद्धांत पर चलती है। हमारे विकास के एजेंडे में आंध्र प्रदेश प्रमुखता से है। यह सभी जानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आंध्र प्रदेश के विकास में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है।
- आंध्र प्रदेश के बंटवारे से लेकर अभी तक बीजेपी ने ही तमिल लोगों के हितों की रक्षा की है।
- अगर आपको याद हो तो पिछले लोकसभा और राज्यसभा चुनाव में जब आपकी पार्टी को जरूरत थी जो बीजेपी ने साथ दिया था। ताकि राज्य के लोगों की मेहनत के साथ न्याय हो सके।
- केंद्र में एनडीए की सरकार का आप अंग थे जो आंध्र प्रदेश के विकास के लिए काम कर रही है। प्रदेश इस वक्त विभाजन के दौर से गुजर रहा है। यह बेहद संवेदनशील समय है।
तेलुगू देसम पार्टी (टीडीपी) और वाईएसआर-कांग्रेस ने केंद्र की मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया है। ये पहला मौका है जब मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के दो नोटिस दिए गए हैं। विपक्ष ने इस अविश्वास प्रस्ताव पर अपना समर्थन जताया है।
इससे पहले टीडीपी अध्यक्ष एन चंद्रबाबू नायडू ने आज बीजेपी अध्यक्ष को पत्र लिखकर कहा था कि उन्हें लगा कि एनडीए के साथ आगे बढ़ना निरर्थक है क्योंकि केंद्र सरकार आंध्र प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 को अक्षरश: लागू करने की अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी निभाने में असफल हो गई। उन्होंने जिक्र किया कि राज्यसभा में दिए गए आश्वासन और अधिनियम के ज्यादातर महत्वपूर्ण प्रावधानों पर प्रक्रिया बहुत सुस्त, असंतोषजनक और निराशाजनक ढंग से चल रही थी।