बच्चों के संरक्षण मामले को लेकर सुप्रीम केर्ट हिंदू, मुस्लिम कानूनों की करेगा पड़ताल
By भाषा | Published: October 26, 2019 06:06 AM2019-10-26T06:06:33+5:302019-10-26T06:06:33+5:30
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने लंदन में रहने वाली एक प्रवासी भारतीय कार्यकर्ता सुलोचना रानी द्वारा दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर संज्ञान लिया और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया।
उच्चतम न्यायालय हिंदू और मुस्लिम पर्सनल लॉ के कुछ खास कानूनी प्रावधानों की संवैधानिक वैधता की पड़ताल करने के लिये शुक्रवार को सहमत हो गया। दरअसल, ये प्रावधान बच्चों का संरक्षण अलग-अलग रह रहे पति-पत्नी में सिर्फ एक को देने का समर्थन करते हैं और इस तरह दोनों (माता-पिता) से देखभाल और प्यार पाने के बच्चों के मूल अधिकारों तथा कल्याण की अनदेखी होती है।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने लंदन में रहने वाली एक प्रवासी भारतीय कार्यकर्ता सुलोचना रानी द्वारा दायर एक जनहित याचिका (पीआईएल) पर संज्ञान लिया और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया।
केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा, ‘‘इस विषय की निश्चित तौर पर पड़ताल की जरूरत है। ’’ पीठ में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति एस ए नजीर भी शामिल हैं।
यह याचिका अधिवक्ता कालीस्वरम राज के मार्फत दायर की गई। याचिका में हिंदू और मुस्लिम पर्सनल लॉ में शामिल विभिन्न परंपराओं का जिक्र करते हुए कहा गया है कि लैंगिक आधार पर संरक्षण और अभिभावक होना निर्धारित करना भेदभावपूर्ण है। यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार)और 21 (स्वतंत्रता का अधिकार) का उल्लंघन करता है। भाषा सुभाष माधव माधव