जेल में कैदियों को “पसंदीदा भोजन या महंगे खाना” न दिया जाना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- अनुच्छेद 21 के तहत जीवन का अधिकार सभी कैदियों को हासिल, लेकिन

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: July 15, 2025 21:26 IST2025-07-15T21:24:40+5:302025-07-15T21:26:02+5:30

पीठ ने कहा, “केवल पसंदीदा या महंगी खाद्य सामग्री की आपूर्ति न किए जाने को मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं माना जा सकता... राज्य का दायित्व यह सुनिश्चित करना है कि दिव्यांगों सहित सभी कैदियों को पर्याप्त, पौष्टिक और चिकित्सकीय रूप से उपयुक्त भोजन मिले, जो चिकित्सा प्रमाणीकरण के अधीन हो।”

Supreme Court said Not providing favourite food expensive food prisoners in jail not violation fundamental rights All prisoners right to life under Article 21 but | जेल में कैदियों को “पसंदीदा भोजन या महंगे खाना” न दिया जाना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- अनुच्छेद 21 के तहत जीवन का अधिकार सभी कैदियों को हासिल, लेकिन

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Highlightsशीर्ष अदालत ने जेल को सुधारात्मक संस्थान बताया, न कि नागरिक समाज की सुविधाओं का विस्तार। मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं है, जब तक कि इससे स्वास्थ्य या सम्मान को स्पष्ट नुकसान न पहुंचे।आधुनिक दंडशास्त्रीय सिद्धांत प्रतिशोध के बजाय पुनर्वास की वकालत करते हैं।

नई दिल्लीः उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि जेल में कैदियों को उनका “पसंदीदा भोजन या महंगे खाद्य पदार्थ” न दिया जाना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है। न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन का अधिकार सभी कैदियों को हासिल है, लेकिन यह पसंदीदा या शानदार भोजन की मांग करने का अधिकार नहीं देता। पीठ ने कहा, “केवल पसंदीदा या महंगी खाद्य सामग्री की आपूर्ति न किए जाने को मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं माना जा सकता... राज्य का दायित्व यह सुनिश्चित करना है कि दिव्यांगों सहित सभी कैदियों को पर्याप्त, पौष्टिक और चिकित्सकीय रूप से उपयुक्त भोजन मिले, जो चिकित्सा प्रमाणीकरण के अधीन हो।”

शीर्ष अदालत ने जेल को सुधारात्मक संस्थान बताया, न कि नागरिक समाज की सुविधाओं का विस्तार। उसने कहा कि गैर-जरूरी या महंगी वस्तुओं की आपूर्ति न करना संवैधानिक या मानवाधिकारों का उल्लंघन नहीं है, जब तक कि इससे स्वास्थ्य या सम्मान को स्पष्ट नुकसान न पहुंचे।

पीठ ने कहा, “जेलों को अक्सर आपराधिक न्याय प्रणाली का 'अंतिम छोर' माना जाता है, जिन्हें ऐतिहासिक रूप से सख्त अनुशासन, कठोर परिस्थितियों और न्यूनतम स्वतंत्रता के लिए तैयार किया गया है। जबकि आधुनिक दंडशास्त्रीय सिद्धांत प्रतिशोध के बजाय पुनर्वास की वकालत करते हैं,

भारत में वर्तमान जेल बुनियादी ढांचा और संचालन प्रणालियां बेहद अपर्याप्त हैं-खासकर जब दिव्यांग कैदियों की जरूरतों को पूरा करने की बात आती है।” सर्वोच्च अदालत ने 'बेकर मस्कुलर डिस्ट्रॉफी' से पीड़ित अधिवक्ता एल. मुरुगनन्थम की मद्रास उच्च न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान ये टिप्पणियां कीं, जिसमें उन्हें पांच लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया गया था। मुरुगनन्थम को सजा एक जमीन विवाद में मिली थी जिसमें उनका परिवार एक अन्य व्यक्ति के साथ उलझा हुआ था।

उन्होंने दावा किया कि कारावास के दौरान उन्हें प्रतिदिन चिकित्सा और पर्याप्त प्रोटीन युक्त भोजन, जैसे अंडे, चिकन और मेवे नहीं मिले। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि मौजूदा मामले में भले ही जेल सुविधाओं में कमियां सीधे तौर पर प्रतिवादी प्राधिकारियों के कारण नहीं हो सकती हैं, फिर भी वे जेल सुधारों, खास तौर पर दिव्यांगता-संवेदनशील बुनियादी ढांचे और प्रोटोकॉल के कार्यान्वयन की तत्काल आवश्यकता को उजागर करती हैं। 

Web Title: Supreme Court said Not providing favourite food expensive food prisoners in jail not violation fundamental rights All prisoners right to life under Article 21 but

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