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अर्नब गोस्वामी को जमानत, SC के जस्टिस चंद्रचूड़ बोले- 'मैं उनका चैनल नहीं देखता लेकिन..

By गुणातीत ओझा | Updated: November 11, 2020 16:56 IST

सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार अर्नब गोस्वामी को जमानत दे दी है। बुधवार को रिपब्लिक टीवी के एडिटर-इन-चीफ अर्नब गोस्वामी की जमानत याचिका पर सुनवाई के बाद उन्हें कोर्ट ने अंतरिम जमानत दी है।

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ठळक मुद्देसुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार अर्नब गोस्वामी को जमानत दे दी है। बुधवार को अर्नब गोस्वामी की जमानत याचिका पर सुनवाई के बाद उन्हें कोर्ट ने अंतरिम जमानत दी है।

अर्नब को जमानत: सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार अर्नब गोस्वामी को जमानत दे दी है। बुधवार को रिपब्लिक टीवी के एडिटर-इन-चीफ अर्नब गोस्वामी की जमानत याचिका पर सुनवाई के बाद उन्हें कोर्ट ने अंतरिम जमानत दी है। आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में अर्नब के साथ-साथ दो और आरोपियों को भी कोर्ट ने जमानत दी है। सुप्रीम कोर्ट ने जेल प्रशासन को निर्देश दिए और कहा कि वो नहीं चाहते कि रिहाई में दो दिनों की देरी हो। इससे पहले बॉम्बे हाईकोर्ट ने अर्नब की जमानत याचिका को नामंजूर कर दिया था। हाईकोर्ट से ना होने के बाद अर्नब सुप्रीम कोर्ट गए थे। 

मामले की सुनवाई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की बेंच ने की। सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि अगर कोर्ट इस केस में दखल नहीं देता है, तो वो बरबादी के रास्ते पर आगे बढ़ेगा। कोर्ट ने कहा कि 'आप विचारधारा में भिन्न हो सकते हैं लेकिन संवैधानिक अदालतों को इस तरह की स्वतंत्रता की रक्षा करनी होगी वरना तब हम विनाश के रास्ते पर चल रहे हैं। अर्नब की ओर से पैरवी कर रहे वकील हरीश साल्वे ने जमानत के पक्ष में दलील रखते हुए कहा कि 'क्या अर्नब गोस्वामी आतंकवादी हैं? क्या उन पर हत्या का कोई आरोप है? उनको जमानत क्यों नहीं दी जा सकती?'

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि 'हो सकता है कि आप उनकी (अर्णब) विचारधारा को पसंद नहीं करते। मुझ पर छोड़ें, मैं उनका चैनल नहीं देखता लेकिन अगर हाईकोर्ट जमानत नहीं देती है तो नागरिक को जेल भेज दिया जाता है। हमें एक मजबूत संदेश भेजना होगा। पीड़ित निष्पक्ष जांच का हकदार है। जांच को चलने दें, लेकिन अगर राज्य सरकारें इस आधार पर व्यक्तियों को लक्षित करती हैं तो एक मजबूत संदेश को बाहर जाने दें।'

कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश हुए वकील कपिल सिब्बल से पूछा कि 'एक ने आत्महत्या की है और दूसरे के मौत का कारण अज्ञात है। गोस्वामी के खिलाफ आरोप है कि मृतक के कुल 6.45 करोड़ बकाया थे और गोस्वामी को 88 लाख का भुगतान करना था। एफआईआर का कहना है कि मृतक 'मानसिक तड़पन' या मानसिक तनाव से पीड़ित था? साथ ही 306 के लिए वास्तविक उकसावे की जरूरत है। क्या एक को पैसा दूसरे को देना है और वे आत्महत्या कर लेता है तो ये उकसावा हुआ? क्या किसी को इसके लिए जमानत से वंचित करना न्याय का मखौल नहीं होगा?

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