सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार( 10 अप्रैल) को उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड से मुगल बादशाह शाहजहाँ के हस्ताक्षर वाले दस्तावेज माँगे ताकि ताजमहल पर बोर्ड की मिल्कियत का फैसला किया जा सके। सर्वोच्च अदालत ने वक्फ बोर्ड को दस्तावेज जमा करने के लिए एक हफ्ते का विषय दिया है। द आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) ने साल 2010 में वक्फ बोर्ड के जुलाई 2005 के फैसले के खिलाप अपील की थी जिसमें वक्फ ने ताजमहल को अपनी जायदाद बताया था। अदालत ने वक्फ बोर्ड के फैसले पर रोक लगा दी थी।
आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने वक्फ बोर्ड के वकील से कहा, "भारत में कौन इस बात पर यकीन करेगा ताजमहल वक्फ बोर्ड की संपत्ति है।" सर्वोच्च अदालत ने नाराजगी जताते हुए कहा कि इस तरह के मामलों में कोर्ट का समय नहीं खराब करना चाहिए। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने वक्फ बोर्ड के वकील से पूछा, "आपको ये (ताजमहल) कब दिया गया? आप कब आए? 250 सालों तक ये ईस्ट इंडिया कंपनी के कब्जे में था। उसके बाद ये भारत सरकार के पास आया। एएसआई इसका रखरखाव करता है। उसे ही इसके प्रबंधन का हक है।"
हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार वक्फ बोर्ड के वकील वीवी गिरी ने सर्वोच्च अदालत से कहा कि मुगल बादशाह शाहजहाँ ने वक्फ बोर्ड को वक्फनामा दिया था। इस पर सीजेआई मिश्रा ने पूछा, "उन्होंने (शाहजहाँ) ने वक्फनामे पर कैसे दस्तखत किए? वो तो जेल में थे और वहाँ से ताजमहल का दीदार करते रहते थे?" एएसआई के वकील एडीएन राव ने दावा किया कि शाहजहां ने वक्फ बोर्ड को ऐसा कोई वक्फनामा नहीं दिया था। राव ने कहा कि 1948 के अधिनियम के तहत ताजमहल भारत सरकार के अधीन हो गया था।