दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी के पूर्व सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने अपनी ही पार्टी की सरकार द्वारा चयनित निर्वाचन आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त एवं दो अन्य चुनाव आयुक्तों को नाकाबिल बताते हुए उम्मीद जताई है कि सुप्रीम कोर्ट उनकी नियुक्ति को रद्द कर देगा। मोदी सरकार को तमाम फैसलों पर अक्सर कटघरे में खड़ा करने के लिए सुर्खियों में रहने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वामी ने बतौर कानून मंत्री दिवंगत प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के समय में अपने कार्यकाल को याद करते हुए निर्वाचन आयोग में टीएन शेषन को लाने और उन्हें मुख्य चुनाव आयुक्त बनवाने के दौर को याद करते हुए कहा कि उन्होंने शेषन जैसे निष्पक्ष, निर्भिक और इमानदार मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की थी।
ट्वीटर के जरिये मोदी सरकार पर तीखा व्यंग्य करने वाले सुब्रमण्यम स्वामी ने अपने ताजा ट्वीट में चुनाव आयोग विवाद की सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के बारे में संभावना व्यक्त करते हुए कहा, "मुझे उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच मुख्य चुनाव आयुक्त और दो अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्तियों को रद्द कर देगी। जब मैं केंद्रीय कानून मंत्री था तब मैंने काफी प्रतिभा खोज के बाद टीएन शेषन को नियुक्त किया था। सुप्रीम कोर्ट जिस मौजूदा मुख्य चुनाव आयुक्त के संबंध में फैसला देने जा रहा है वो एडहॉक हैं और नाकाबिल हैं।"
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के संबंध में सुनवाई करते हुए उनकी नियुक्ति के मसले में बेहद कड़ी और प्रतिकूल टिप्पणी करते हुए कहा था कि चूंकि चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है और संविधान की धारा-324 के अंतर्गत इसे काफी महत्वपूर्ण शक्तियां प्राप्त हैं। इस कारण इसके कर्ताधर्ता यानी मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त ऐसे नहीं होने चाहिए, जो केवल एक ‘यस मैन’ की भूमिका में रहे।
सुप्रीम कोर्ट चुनाव आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के संबंध में यह भी कह चुका है कि इनकी नियुक्ति के लिए परामर्श प्रक्रिया में देश के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) को भी शामिल किया जाना चाहिए ताकि निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता और भी सुनिश्चित हो सके।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट में कुछ याचिकाएं दायर की गई हैं कि जैसे उच्च न्यायिक सेवाओं में जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम सिस्टम का सहारा लिया जाता है, ठीक उसी तरह से मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति में भी कोई प्रक्रिया का पालन किया जाए, ताकि उनकी निष्पक्षता और पारदर्शिता संवैधानिक मूल्यों के प्रति बनी रहे।
दायर याचिका में तर्क दिया गया है कि लेकिन अन्य संवैधानिक संस्थाओं की तरह चुनाव आयोग पूरी तरह स्वतंत्र और निष्पक्ष होकर अपने दायित्वों का निर्वाह नहीं कर पाता क्योंकि मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति सरकारी विभाग के अधिकारियों की तरह होती है।