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गुजरात चुनाव 2022 को लेकर समाजशास्त्री ने किया बड़ा दावा, कहा- असमंजस में है दलित वोटर्स-किसी भी पार्टी को नहीं मिलेगा फायदा

By भाषा | Updated: October 16, 2022 14:52 IST

समाजशास्त्री गौरंग जानी ने दावा करते हुए कहा कि इस बार के गुजरात चुनाव में इस विभाजन से किसी राजनीतिक दल को फायदा नहीं मिलेगा और न ही दलित समुदाय को इससे कोई लाभ होगा।

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ठळक मुद्देगुजरात चुनाव को लेकर समाजशास्त्री ने बड़ा दावा किया है। समाजशास्त्री गौरंग जानी की माने तो राज्य के दलित वोटर्स असमंजस में है। इस कारण सभी तीनों पार्टियों को इसका लाभ नहीं मिलेगा और दलित वोट बेकार जाएगा।

गांधीनगर: गुजरात की आबादी में करीब आठ प्रतिशत की संख्या रखने वाले दलित लोग भले ही आंकड़ों के हिसाब से राज्य में प्रभावशाली समुदाय नहीं हैं लेकिन आगामी विधानसभा चुनावों में उनके वोटों का सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), विपक्षी कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) के बीच बंटवारा हो सकता है। 

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि सभी राजनीतिक दल इस समुदाय को लुभाने की कोशिशों में जुट हैं क्योंकि राज्य में कुल 182 सीटों में से अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित 13 सीटों के अलावा दलित मतदाता कुछ दर्जनों अन्य सीटों पर भी असर डाल सकते हैं। 

भाजपा और कांग्रेस दलितों को कर रहे है चुनाव में टारगेट

भाजपा का कहना है कि उसे विश्वास है कि दलित इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों में उसे वोट देंगे जबकि कांग्रेस का कहना है कि वह उन सीटों पर ध्यान केंद्रित कर रही है जहां 10 प्रतिशत या इससे अधिक दलित आबादी है। आपको बता दें कि भाजपा ने 1995 के बाद से ही अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित 13 सीटों में से अधिकांश पर जीत दर्ज की है। 

उसने 2007 और 2012 में इनमें से क्रमश: 11 और 10 सीटें जीती थीं जबकि कांग्रेस ने दो और तीन सीटें जीती थीं। लेकिन 2017 में भाजपा केवल सात सीटें ही जीत पायी जबकि कांग्रेस ने पांच सीटें जीती थीं। एक सीट कांग्रेस समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार ने जीती थी। 

गढड़ा से कांग्रेस के विधायक प्रवीण मारू ने 2020 में इस्तीफा दे दिया था और 2022 में भाजपा में शामिल हो गए। भाजपा के आत्माराम परमार ने इस सीट पर उपचुनाव जीता था। 

वोट को लेकर गुजरात के दलित असमंजस में है

समाजशास्त्री गौरंग जानी ने दावा किया कि गुजरात में जहां तक राजनीतिक जुड़ाव का संबंध हैं तो दलित समुदाय असमंजस में है। अन्य समुदायों के मुकाबले संख्याबल के हिसाब से उनकी आबादी ज्यादा नहीं है और वे तीन उप-जातियों वनकर, रोहित तथा वाल्मिकी में बंटे हुए हैं। 

गुजरात विश्वविद्यालय के सेवानिवृत्त प्रोफेसर जानी ने कहा, ‘‘वे अपने आप में ही बंटे हुए हैं, भाजपा वनकर को आकर्षित कर रही है जिनकी संख्या सबसे अधिक है। वे अधिक स्पष्टवादी और शहरी हैं। लेकिन मुख्यत: सफाई कर्मी वाल्मिकी विभाजित हैं।’’ 

उन्होंने कहा कि तीन राजनीतिक दल और तीन उप जातियां हैं, दलित वोटों में बंटवारा होगा। उन्होंने कहा, ‘‘इससे उनका राजनीतिक प्रभाव कम हो जाएगा खासतौर से तब जब समुदाय के पास कोई मजबूत नेता नहीं है।’’ 

गुजरात के दलित युवा तीनों पार्टियों के बीच विभाजित है

जानी ने कहा कि डॉ. बी आर आंबेडकर की विरासत पर दावा जताने वाली आम आदमी पार्टी (आप) के इस मुकाबले में शामिल होने से दलित वोट तीन भागों में बंट सकते हैं। उन्होंने कहा, "इस समुदाय की नयी पीढ़ी असमंजस में है...युवाओं के मतदान की प्रवृत्ति तीनों दलों के बीच विभाजित होने जा रही है। इस विभाजन से किसी राजनीतिक दल को फायदा नहीं मिलेगा न कि इस समुदाय को लाभ मिलेगा।" 

जानी ने कहा, ‘‘दलितों का भाजपा के साथ लंबा जुड़ाव रहा है।’’ उन्होंने कहा कि वहीं, कांग्रेस दलित समुदाय पर अपनी पकड़ नहीं बनाए रख पायी क्योंकि वह लंबे वक्त से सत्ता से बाहर है। उन्होंने कहा, ‘‘यहां तक कि विपक्ष में भी वह उनके मुद्दे नहीं उठा पायी जिसकी उससे उम्मीद की जाती थी। कांग्रेस के कई दलित नेता भाजपा में चले गए।’’ 

दलित के लिए 'आप' पार्टी बाबासाहेब आंबेडकर को प्रोमोट कर रही है

इस पर बोलते हुए जानी ने आगे कहा, ‘‘साथ ही आप की महात्मा गांधी को दरकिनार कर बाबासाहेब आंबेडकर की विरासत पर दावा जाकर दलितों को लुभाने की रणनीति ने इस समुदाय का ध्यान अपनी ओर खींचा है।’’ गौरतलब है कि अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली आप ने राज्य में सत्ता में आने पर लोगों को कई ‘‘गांरटी’’ देने का वादा भी किया है। 

भाजपा अपने तरीके से दलित वोटरों को लुभा रही है

इस बीच, भाजपा प्रवक्ता यग्नेश दवे ने कहा कि दलित समुदाय के लिए राज्य और केंद्र सरकार की योजनाओं का प्रचार करने के अलावा वे झंझरका और रोसरा जैसे दलित समुदाय के धार्मिक स्थानों के प्रमुखों को भी अपने पक्ष में कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ‘‘2017 में भी दलित समुदाय ने भाजपा का समर्थन किया था और हमारा मानना है कि 2022 में भी हमें उनका समर्थन मिलेगा।’’ 

कांग्रेस 10 फीसदी से ज्यादा आबादी वाले दलित सीट पर जोर दे रही है

कांग्रेस के अनुसूचित जाति विभाग के अध्यक्ष हितेंद्र पिठाडिया ने कहा कि पार्टी 10 प्रतिशत या उससे अधिक की दलित आबादी वाली सीटों पर खास ध्यान दे रही है। उन्होंने कहा, ‘‘यह संभवत: पहली बार है कि कांग्रेस अपने आप को केवल आरक्षित सीटों तक सीमित नहीं रख रही है। हमने 10 प्रतिशत से अधिक दलित मतदाताओं वाली करीब 40 सीटों की पहचान की है।’’ 

टॅग्स :गुजरातचुनाव आयोगBJPकांग्रेसAam Aadmi Party
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