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पश्चिमी मध्यप्रदेश में आदिवासियों के सबसे बड़े त्योहार भगोरिया पर कोविड-19 का साया

By भाषा | Updated: March 8, 2021 16:13 IST

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इंदौर, आठ मार्च पश्चिमी मध्यप्रदेश में कोविड-19 के नये मामलों में बढ़ोतरी के बीच आदिवासियों के सबसे बड़े त्योहार भगोरिया पर साप्ताहिक हाटों के रूप में लगने वाले विशाल मेलों के आयोजन को लेकर असमंजस बना हुआ है।

प्रशासन का कहना है कि चूंकि इन मेलों में हजारों की संख्या में लोग आते हैं। इसलिए वह महामारी की स्थिति के आकलन के बाद ही इनके आयोजन को अनुमति देने पर फैसला करेगा।

इंदौर संभाग के आयुक्त (राजस्व) पवन कुमार शर्मा ने सोमवार को "पीटीआई-भाषा" को बताया, "हम संबंधित जिलों में कोविड-19 की मौजूदा स्थिति का आकलन करेंगे। इसके बाद वहां के जिलाधिकारियों से बात कर भगोरिया के मेलों के आयोजन के बारे में उचित फैसला करेंगे।"

जानकारों ने बताया कि भगोरिया हाटों के साथ झाबुआ, अलीराजपुर, धार, खरगोन और बड़वानी जैसे आदिवासी बहुल जिलों के 100 से ज्यादा ग्रामीण स्थानों पर 22 से 28 मार्च के बीच अलग-अलग दिनों में मेले लगने वाले हैं।

इस बीच, अधिकारियों ने बताया कि बड़वानी जिले के प्रशासन ने कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने की आशंका के मद्देनजर भगोरिया हाटों को दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 144 के तहत शनिवार को आदेश जारी कर प्रतिबंधित कर दिया था।

हालांकि, भगोरिया हाटों के आयोजन के पक्ष में सामने आए जनजातीय समुदाय की मांग के चलते प्रशासन को अगले ही दिन यानी रविवार को अपने इस आदेश को निरस्त करना पड़ा।

बड़वानी के जिलाधिकारी शिवराज सिंह वर्मा ने बताया, "जनजातीय समुदाय के नुमाइंदों की मांग पर मैंने भगोरिया हाटों को लेकर अपने पुराने आदेश को निरस्त कर दिया।"

उन्होंने कहा, "जनजातीय समुदाय के नुमाइंदों का कहना है कि भगोरिया उनका सबसे बड़ा त्योहार है और इस मौके पर लगने वाले साप्ताहिक हाटों के आयोजन की अनुमति दी जानी चाहिए।"

बहरहाल, अगर पश्चिमी मध्यप्रदेश में प्रशासन भगोरिया हाटों को मंजूरी देता है, तो इन भीड़ भरे जमावड़ों में कोविड-19 से बचाव की हिदायतों का पालन कराना उसके लिए बेहद बड़ी चुनौती होगी।

जानकारों के मुताबिक होली के त्योहार से पहले हर साल भगोरिया हाटों के साथ लगने वाले विशाल मेलों में स्थानीय आदिवासियों के साथ ही जनजातीय समुदाय के वे हजारों लोग भी उमड़ते हैं जो आजीविका के लिए महाराष्ट्र, गुजरात और राजस्थान जैसे पड़ोसी सूबों व अन्य राज्यों में रहते हैं। इससे पश्चिमी मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल जिलों में उत्सव का माहौल बन जाता है।

आदिवासी टोलियां हर साल ढोल और मांदल (पारंपरिक बाजा) की थाप तथा बांसुरी की स्वर लहरियों पर थिरकते हुए भगोरिया हाटों में पहुंचती हैं और होली के त्योहार से पहले जरूरी खरीदारी करने के साथ फागुनी उल्लास में डूब जाती है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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