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अलगाववादी नेता सईद अली शाह गिलानी ने हुर्रियत कांफ्रेंस से नाता तोड़ा, कश्मीर में कथित ‘आजादी’ पाने का आंदोलन अपनी मौत मर जाएगा?

By सुरेश एस डुग्गर | Updated: June 29, 2020 17:59 IST

अब कश्मीर में सबसे बड़ा इसलिए है क्योंकि सईद अली शाह गिलानी को ही आजादी का आंदेालन माना जाता था और अब 90 साल की उम्र में उनके द्वारा हुर्रियत से इस्तीफा दे दिए जाने के बाद यह सवाल भी उठ खड़ा हुआ है।

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ठळक मुद्देपांच अगस्त 2019 के बाद जम्मू कश्मीर में लगातार बदल रहे सियासी हालात के बीच यह अलगाववादी खेमे की सियासत का सबसे बड़ा घटनाक्रम है।वयोवृद्ध गिलानी, जो इस समय सांस, हृदयोग, किडनी रोग समेत विभिन्न बिमारियों से पीड़ित हैं, ने आज एक आडियो संदेश जारी करके इसका ऐलान किया है।खासकर वह तबका जो कश्मीर को आजाद देखना चाहता था या फिर इसे पाकिस्तान के साथ मिलाए जाने के पक्ष में था।

जम्मूः कट्टरपंथी अलगाववादी नेता सईद अली शाह गिलानी के हुर्रियत कांफ्रेंस से नाता तोड़ लिए जाने के बाद क्या कश्मीर में कथित ‘आजादी’ पाने का आंदोलन अपनी मौत मर जाएगा।

यह सवाल अब कश्मीर में सबसे बड़ा इसलिए है क्योंकि सईद अली शाह गिलानी को ही आजादी का आंदेालन माना जाता था और अब 90 साल की उम्र में उनके द्वारा हुर्रियत से इस्तीफा दे दिए जाने के बाद यह सवाल भी उठ खड़ा हुआ है। पांच अगस्त 2019 के बाद जम्मू कश्मीर में लगातार बदल रहे सियासी हालात के बीच यह अलगाववादी खेमे की सियासत का सबसे बड़ा घटनाक्रम है।

वयोवृद्ध गिलानी, जो इस समय सांस, हृदयोग, किडनी रोग समेत विभिन्न बिमारियों से पीड़ित हैं, ने आज एक आडियो संदेश जारी करके इसका ऐलान किया है। इस ऐलान के बाद कश्मीरी सकते में हैं। खासकर वह तबका जो कश्मीर को आजाद देखना चाहता था या फिर इसे पाकिस्तान के साथ मिलाए जाने के पक्ष में था और अगर सूत्रों की माने तो गिलानी की सेहत के मद्देनजर ही कश्मीर में आने वाले अगले दो तीन माह के लिए भंडारण का आदेश जारी किया गया था।

हुर्रियत कांफ्रेंस कश्मीर में सक्रिय सभी छोटे बड़े अलगाववादी संगठनों का एक मंच है

सर्वदलीय हुर्रियत कांफ्रेंस कश्मीर में सक्रिय सभी छोटे बड़े अलगाववादी संगठनों का एक मंच है। इसका गठन 1990 के दशक में कश्मीर में जारी आतंकी हिंसा और अलगाववादी सियासत को संयुक्त रुप से एक राजनीतिक मंच प्रदान करने के इरादे से किया गया था।

कश्मीर में 1990 की दशक की शुरुआत में सक्रिय सभी स्थानीय आतंकी संगठन प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रुप से किसी न किसी अलगाववादी संगठन से जुड़े थे। हुर्रियत की सियासत पर नजर रखने वालों के मुताबिक कट्टरपंथी सईद अली शाह गिलानी के खिलाफ हुर्रियत कांफ्रेंस के भीतर बीते कुछ सालों से विरोध लगातार बढ़ता जा रहा था।

इसके अलावा वह वर्ष 2017 से कश्मीर में अलगाववादी सियासत को कोई नया मोड़ देने में असमर्थ साबित हो रहे थे। वह कोई भी बड़ा फैसला नहीं ले पा रहे थे। बीते एक साल के दौरान उन्होंने लगभग चुप्पी साध ली थी।

इतना जरूर था कि कश्मीर में अलगाववादी आंदोलन की नींव रखने वाले गिलानी के इस कदम के बाद एक तबका कश्मीर में शांति के लौट आने की उम्मीद भी लगाने लगा है। यह सच है कि अब उनकी सेहत भी जवाब देने लगी है। अधिकारियों के बकौल, गिलानी की सेहत के मद्देनजर कश्मीर में स्थिति तनावपूर्ण हो सकती है। और ऐसे में हालात से निपटने की तैयारियां अभी से की जाने लगी हैं।

टॅग्स :जम्मू कश्मीरगृह मंत्रालयसैयद शाह गिलानीगिरीश चंद्र मुर्मू
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