नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को यूजीसी-नेट एग्जाम से जुड़ी पीआईएल पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया है। हालांकि, पीआईएल में सरकार के पेपर लीक की आशंका को देखते हुए इसे रद्द करने को लेकर चुनौती दी गई थी। गौरतलब है कि यह पीआईएल एक वकील के द्वारा दाखिल की गई थी, जबकि संवैधानिक तौर पर इसे सामूहिकता मत को लेकर दाखिल किया जाता है। ये बात सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि जनहित याचिका को खारिज करने से इसकी योग्यता पर ध्यान नहीं दिया गया, क्योंकि यह प्रभावित छात्रों के बजाय एक वकील द्वारा दायर किया गया था।
इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने अधिवक्ता से पूछ लिया कि आप क्यों यहां आए हैं, आपके बजाय अगर प्रभावित छात्र आते तो काफी अच्छा होता। इसके साथ पीआईएल को खारिज करते हुए कह दिया कि मेरिट पर कहने के लिए कुछ हमारे पास नहीं है।
पीठ ने जनहित याचिका दायर करने वाले वकील उज्जवल गौड़ को सलाह दी कि वे अन्य कानूनी मामलों पर ध्यान केंद्रित करें और इन जैसे मुद्दों को सीधे तौर पर प्रभावित लोगों पर छोड़ दें। याचिका में यूजीसी-नेट परीक्षा की अखंडता के बारे में चिंताओं के कारण रद्द करने के केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय और राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी के फैसले को चुनौती दी गई थी।
19 जून को मंत्रालय ने परीक्षा रद्द करने का आदेश दिया था और मामले को जांच के लिए सीबीआई को भेज दिया था। गौड़ की याचिका में यूजीसी-नेट की प्रस्तावित फिर से परीक्षा पर तत्काल रोक लगाने का भी अनुरोध किया गया है जब तक कि सीबीआई पेपर लीक के आरोपों की जांच पूरी नहीं कर लेती।
याचिकाकर्ता ने दावा किया है कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के हालिया निष्कर्षों को देखते हुए यह निर्णय न केवल मनमाना है, बल्कि अन्यायपूर्ण भी है। वकील रोहित पांडे ने दायर याचिका में कहा, "सीबीआई की जांच से यह तथ्य सामने आया है कि पेपर लीक का सुझाव देने वाले सबूतों से छेड़छाड़ की गई है, जिससे वह आधार रद्द हो गया है जिस पर पेपर रद्द किया गया था।"