नई दिल्ली, 26 मार्चः मुसलमानों के निकाह हलाला, बहुविवाह और मुताह पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट में वकील अश्विनी दुबे, भारतीय जनता पार्टी (नेता) अश्विनी उपाध्याय, दिल्ली निवासी नफीसा खान व समीना बेगम की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह नोटिस जारी किया है। इन याचिकाओं में मुसलमानों में एक से अधिक शादी करने को गैरकानूनी घोषित करने को लेकर मांग की गई थी।
अश्विनी उपाध्याय ने भारत के सभी नागरिकों के लिए समान कानून की वकालत करते हुए कहा कि आईपीसी की धारा 498A ट्रिपल तलाक, निकाह-हलाला को रेप की धारा 375 और बहुविवाह को धारा अपराध की धारा 494 के अंतरगत रखना चाहिए और अराधियों के लिए समान सजा का प्रावधान होना चाहिए। इस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने नोटिस जारी किया।
सोशल मीडिया में सुप्रीम कोर्ट के नोटिस को मुसलमानों निकाह-हलाला, बहुविवाह और मुताह के खिलाफ बड़े कदम के तौर पर देखा जा रहा है। यूजर्स इस इस नोटिस पर मुसलमानों को अपनी शादी को लेकर बनाए गए नियम-कानूनों पर फिर से सोचने सलाह दे रहे हैं।
मुसलमानों के एक से अधिक शादी के खिलाफ क्या हैं याचिकाकर्ताओं की मांगें
याचिकाकर्ता नफीसा की मांग है कि आईपीसी की धाराएं समान नागरिक संहिता के हिसाब से चलें। इसमें ट्रिपल तलाक के लिए बनी आईपीसी की धारा 498A सब पर लागे हो। जबकि हलाला को धारा 375 में बलात्कार के अपराध के साथ रखा जाना चाहिए। साथ ही उन्होंने बहुविवाह को आईपीसी की धारा 494 के तहत अपराध मानने की सिफारिश लगाई थी।
जबकि समीना के अनुसार साल 1999 में जावेद अनवर से उनकी शादी हुई। लेकिन दो बेटे होने के बाद उनके सौहर ने उन पर जुल्म ढाने शुरू कर दिए। जब उन्होंने थाने में इसकी शिकायत की तो सौहर ने तलाकनामा भेज दिया। इसके बाद साल 2013 में रियाजुद्दीन नाम के एक पहले से शादीशुदा शख्स से निकाह किया। लेकिन जब समीना गर्भवती थीं तभी उसने फोन पर समीना को तलाक दे दिया। इन दोनों की घटनाओं का हवाला देते हुए उन्होंने पर्सनल लॉ पर सवाल उठाए थे।
क्या होता है निकाह हलाला?
मुस्लिम धर्म में निकाह हलाला एक तरह की रस्म है। इसमें किसी भी तलाकशुदा महिला को अपने ही पति से वापस शादी करने लिए पहले किसी और से शादी कर के तलाक लेना जरूरी बताया जाता है।
कुछ मुसलमानों का कहना है कि यह मौलवियों ने लालच में आकर यह नियम शरियत में रखा था। क्योंकि हलाला के ज्यादातर मामलों में मौलवी खुद या किसी जान-पहचान के आदमी से महिला की शादी करा कर उसे तलाक दिला देते हैं।