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सांसदों ने सीवर सफाईकर्मियों की मौत पर जताई चिंता, एक साल में 613 लोगों की मौत, पीड़ित परिवार को मिले मुआवजा

By भाषा | Updated: June 28, 2019 19:04 IST

ऐसे मामलों में 613 लोगों की मौत हुई जिसमें से 438 लोगों के परिवारों को दस लाख तक का मुआवजा दिलाया गया है। 58 लोगों के मामले में आंशिक राशि दी गयी है। बाकी के 13-14 मामले विचाराधीन हैं। उन्होंने कहा कि केन्द्र ने इस कानून को लागू करने के संबंध में पिछले पांच साल में राज्यों के मंत्रियों एवं सचिवों के साथ कई बैठकें की है।

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ठळक मुद्देसीवर सफाई के दौरान स्वच्छता कर्मियों की मौत के बढ़ते मामलों पर राज्यसभा में जतायी गयी चिंताचर्चा में हस्तक्षेप करते हुए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने सरकार की ओर से यह आश्वासन दिया।

सैप्टिक टैंक और सीवर में काम करते समय सफाईकर्मियों की मौत की बढ़ती घटनाओं पर शुक्रवार को राज्यसभा में विभिन्न दलों के सदस्यों द्वारा गंभीर चिंता जताये जाने और ऐसे मामले में पीड़ित परिवारों को समुचित मुआवजा एवं सामाजिक सुरक्षा दिलवाने की मांग के बीच सरकार ने कहा कि वह ऐसे परिवारों के साथ सम्पूर्ण न्याय को लेकर संकल्पबद्ध है।

राज्यसभा में राष्ट्रीय जनता दल के मनोज झा द्वारा इस संबंध में लाये गये निजी संकल्प पर हुई चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत ने सरकार की ओर से यह आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि सरकार हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 एवं इस संबंध में आये उच्चतम न्यायालय के आदेश के तहत ऐसे प्रत्येक मामले में मृतक के परिवार को 10 लाख रुपये तक का मुआवजा दिलवाने के लिए कटिबद्ध है।

उन्होंने कहा कि ऐसे मामलों में 613 लोगों की मौत हुई जिसमें से 438 लोगों के परिवारों को दस लाख तक का मुआवजा दिलाया गया है। 58 लोगों के मामले में आंशिक राशि दी गयी है। बाकी के 13-14 मामले विचाराधीन हैं। उन्होंने कहा कि केन्द्र ने इस कानून को लागू करने के संबंध में पिछले पांच साल में राज्यों के मंत्रियों एवं सचिवों के साथ कई बैठकें की है।

उन्होंने कहा कि इस मामले में केन्द्र निगरानी का काम करता है और कानून को लागू करने का काम राज्य सरकारें करती हैं। गहलोत ने कहा कि इस काम में लगे स्वच्छता कर्मियों के बारे में राज्य सरकारें प्राय: सही और पूरी जानकारी नहीं देती हैं।

उन्होंने कहा कि 18 राज्यों के 117 जिलों में विस्तृत सर्वे कराया जिसकी रिपोर्ट आना बाकी है। उन्होंने कहा कि कानून के तहत ऐसे कार्यों में लगे लोगों को अन्य रोजगारों में जाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। साथ ही उन्हें इसके लिए 40 हजार रुपये की राशि दी जाती है।

उन्होंने कहा कि अभी तक 30,1620 लोगों को एकमुश्त चालीस हजार रुपये की राशि प्रदान की गयी है। गहलोत ने कहा कि सरकार इन्हें कौशल प्रशिक्षण भी देती है और अभी तक 13,587 लोगों को कौशल प्रशिक्षण भी दिया है। ऐसे लोगों को स्वरोजगार के लिए 15 लाख रुपये तक का कर्ज भी दिया जाता है।

इसमें पुरुषों को चार प्रतिशत एवं महिलाओं को तीन प्रतिशत की ब्याज दर पर रिण दिया जाता है। इस पर सब्सिडी भी दी जाती है। उन्होंने बताया कि अभी तक 1,007 ऐसे लोगों को स्वरोजगार के लिए रिण दिया है। 500 ऐसी महिलाओं को वाणिज्यिक वाहन चलाने और आटोमोबाइल का प्रशिक्षण दिया गया। साथ ही आत्मरक्षा के लिए जूडो का भी प्रशिक्षण दिया गया।

यह प्रशिक्षण तीन माह तक चला और उन्हें तीन हजार रूपये प्रति माह का मानदेय भी दिया गया। उन्होंने कहा कि देश में सफाई कर्मचारियों में 82 प्रतिशत लोग अनुसूचित जाति विशेषकर वाल्मीकि समाज के हैं। शेष अन्य जातियों के हैं।

उन्होंने कहा कि सैप्टिक टैंक या सीवर में काम करते समय यदि किसी व्यक्ति की मौत होती है तो कार्य करवाने वाली एजेंसी या व्यक्ति को मृतक के परिजनों को बीमा राशि दिलवाने की व्यवस्था करनी होगी। उच्चतम न्यायालय ने अपने आदेश में ऐसे कर्मियों के लिए बीमा करवाने की जिम्मेदारी नियोक्ता पक्ष को सौंपी है।

उन्होंने कहा कि अब तक सफाई कार्यों के दौरान हुई लोगों की मौत के मामलों में 37 प्राथमिकी देश भर में दर्ज हो चुकी हैं। गहलोत ने इस संबंध में सरकार द्वारा किए जा रहे कार्यों की मिसाल देते हुए झा से उनका निजी संकल्प वापस लेने का अनुरोध किया। मंत्री के उत्तर से संतोष जताते हुए झा ने अपना संकल्प वापस ले लिया। 

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