किताब में किया गया खुलासा : कैसे ‘ फाइबर ऑप्टिक्स के जनक’ नहीं कर पाए नेहरू की टीम में काम

By भाषा | Updated: December 12, 2021 20:37 IST2021-12-12T20:37:37+5:302021-12-12T20:37:37+5:30

Revealed in the book: How the 'Father of Fiber Optics' could not work in Nehru's team | किताब में किया गया खुलासा : कैसे ‘ फाइबर ऑप्टिक्स के जनक’ नहीं कर पाए नेहरू की टीम में काम

किताब में किया गया खुलासा : कैसे ‘ फाइबर ऑप्टिक्स के जनक’ नहीं कर पाए नेहरू की टीम में काम

नयी दिल्ली, 12 दिसंबर देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने ‘‘ फाइबर ऑप्टिक्स के जनक’ नरिंदर सिंह कपानी के नाम की अनुशंसा रक्षा मंत्रालय के वैज्ञानिक सलाहकार के तौर पर की थी, लेकिन ‘‘ नौकरशाही के जरिये फिल्टर करने ’’ की वजह से नियुक्ति प्रक्रिया में हुई देरी के कारण इस प्रख्यात भौतिकशास्त्री ने भारत की जगह अमेरिका को अपना कार्य क्षेत्र चुना।

इसकी जानकारी उन्होंने स्वयं अपने संस्मरण ‘‘ द मैन हू बेंट लाइट : नरिंदर सिंह कपानी, फादर ऑफ फाइबर ऑप्टिक में दी’’ है, जिसे रोली बुक्स द्वारा प्रकाशित किया गया है और इसकी पांडुलिपि उन्होंने दिसंबर 2020 में मौत से कुछ समय पहले तैयार की थी। कपानी को फाइबर ऑप्टिक्स का अविष्कार करने का श्रेय दिया जाता है।

इस किताब में पाठकों को विज्ञान में योगदान देने के साथ-साथ कपानी की सिख विरासत और संस्कृति के प्रति प्रतिबद्धता के बारे में भी जानने को मिलेगा ।

कपानी को इस साल की शुरुआत में मरणोपरांत पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। उन्होंने दुनिया में सिख कला के सबसे बड़े संग्रहों में से एक को संग्रहित किया था और दुनिया भर में कई प्रदर्शनी को प्रायोजित किया।

कपानी ने वर्ष 1950 के दशक में फाइबर ऑप्टिक्स में अग्रणी अनुसंधान किया, जिसने उच्च गति वाले ब्रॉडबैंड इंटरनेट, लेजर सर्जरी, इंडोस्कोपी आदि का मार्ग प्रशस्त किया और इसी दौरान नेहरू कपानी को रक्षा मंत्रालय में अपना वैज्ञानिक सलाहकार बनाना चाहते थे।

पुस्तक में कपानी याद करते हैं कि कैसे अमेरिका में उनकी कृष्ण मेनन से मुलाकात हुई, जो रक्षामंत्री के नाते उस समय देश के दूसरे सबसे अहम व्यक्ति थे और संयुक्त राष्ट्र में स्थायी प्रतिनिधि थे।

कपानी लिखते हैं कि मेनन ने उनसे कहा, ‘‘मैंने आपके करियर को देखा है और मैं चाहता हूं कि आप मेरे लिए काम करें। दिल्ली में, रक्षा विभाग में।’’ वह कुछ रुके और फिर कहा, ‘‘मैं आपको अपना वैज्ञानिक सलाहकार बनाना चाहता हूं...।’’

कपानी कहते हैं कि वह इस प्रस्ताव से बेहद खुश थे। उन्होंने लिखा, ‘‘लेकिन यह मेरी योजना का हिस्सा नहीं था, जो कहीं भी मुझे ले जा सकता था, मैं अपने अविष्कारों में दिल से विश्वास करता था, निश्चित तौर पर ऑप्टिकल उपकरणों, उनका अविष्कार, उन्हें डिजाइन करने और उनका उत्पादन में।’’

उन्होंने कहा कि मेनन ने उनके प्रस्ताव के प्रति आसन्न प्रतिरोध को भांप लिया और उन्हें सतर्क करते हुए कहा कि वह जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं लें।

पुस्तक के अनुसार, इस घटना के करीब छह महीने बाद कपानी भारत छुट्टियां मनाने आए। इस मौके पर मेनन ने उनसे कहा कि वह रक्षा सेवा सम्मेलन में संक्षिप्त संबोधन दें। उन्होंने कहा कि मेनन के रक्षा सेवा सम्मेलन के उद्घाटन वाले दिन हजारों की संख्या में लोग मौजूद थे। उस दिन के कार्यक्रम सारिणी में सुबह उद्घाटन भाषण प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का था, फिर मेनन की प्रस्तुति थी और अन्य वक्ता में होमी जहांगीर भाभा थे, जो उस वक्त भारत के परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष थे। चौथा नाम नरिंदर सिंह कपानी का था, जिसपर उन्हें भरोसा नहीं हो रहा था।

कपानी ने याद करते हुए लिखा है कि मेनन ने उन्हें बाद में बताया कि नेहरू उनके संबोधन से प्रभावित हैं और उनसे निजी तौर पर मिलना चाहते हैं।

उन्होंने लिखा है, ‘‘माननीय नेहरू के साथ बिताया गया समय बहुत ही तरोताजा करने वाला और व्यक्तिगत रूप से पुरस्कृत करने वाला था, जो मैंने कभी बिताया था। विज्ञान और मेरे जीवन में जो मैं चाहता था, उसके प्रति वह समझ और रुचि दिखा रहे थे।’’

कपानी ने लिखा है, ‘‘... कुछ देर शांत रहने के बाद मैं कृष्ण मेनन का वैज्ञानिक सलाहकार बनने पर सहमत हो गया।’’ उन्होंने बताया कि जैसे ही वार्ता सत्र समाप्त होने को था, नेहरू को आधिकारिक लेटरपैड पर संघ लोक सेवा आयोग के लिए नोट लिखा देखा, जो उच्च स्तर पर भारतीय लोक सेवकों की भर्ती के लिए जिम्मेदार है।

किताब के मुताबिक, ‘‘उन्होंने कृष्ण मेनन के वैज्ञानिक सलाहकार के पद पर मेरी नियुक्ति की अनुशंसा की और उस स्तर की सरकारी नौकरी के लिए अधिकतम वेतन का प्रावधान किया। इसके साथ ही मुझे अमेरिका में काम को समेटने और दिल्ली में काम शुरू करने के लिए छह महीने का समय दिया।’’

कपानी ने लिखा है, ‘‘उन्होंने (नेहरू) नोट पर हस्ताक्षर किया और उसे लिफाफे में रखा और पता लिखा और उसे टेबल पर पड़े कुछ अन्य लिफाफों पर रख दिया।’’ बातचीत खत्म होने पर उन्होंने कहा, ‘‘मैं आगाह करना चाहता हूं, नरिंदर, कि इन उच्च स्तर की भर्तियों में नौकरशाही द्वारा विचार करने में समय लगता है- संभवत: दो महीने या इससे भी अधिक।’’

कपानी ने अपनी पत्नी सतिंदर से कहा, ‘‘मेरे पास दो महीने में सरकारी नौकरी की पेशकश होनी चाहिए। हालांकि, प्रधानमंत्री ने आगाह किया है कि कुछ और समय लग सकता है।’’

इसके बाद उन्होंने अमेरिका में अपनी नयी योजना की जानकारी सभी को दी और बताया कि उनकी अनुशंसा किसी और ने नहीं बल्कि नेहरू ने की है।

कपानी ने लिखा है, ‘‘लेकिन दो महीना, तीन महीने में, फिर चार महीने में और फिर पांच महीने में बदल गया लेकिन नौकरी की पेशकश नहीं आई। मैं व्याकुल होने लगा। मैंने संघ लोक सेवा आयोग से संपर्क किया और उन्होंने मुझे आश्वस्त किया कि पेशकश पर लगभग काम हो गया है।’’

उन्होंने लिखा, ‘‘पांच महीने के बाद हमारे अपार्टमेंट का लीज खत्म हो रहा था और संस्थान में मेरा काम खत्म हो रहा था। सतिंदर और मैंने फैसला किया कि भारत से कोई खबर नहीं आना, किस्मत का संदेश है कि मेरा भविष्य भारत में नहीं है बल्कि अमेरिका में है।’’

कपानी ने लिखा, ‘‘इसके बाद में मैंने भारत में मिलने वाले पद के बारे में सोचना बंद कर दिया और अपनी ऊर्जा को कैलिफोर्निया के सिलिकॉन वैली पर केंद्रित किया और अंतत: उद्यमी बना।’’

उन्होंने लिखा कि नए घर में आने के एक महीने बाद और नेहरू की अनुशंसा के करीब एक साल बाद अंतत: यूपीएसएसी की पेशकश आई।

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Web Title: Revealed in the book: How the 'Father of Fiber Optics' could not work in Nehru's team

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