आरक्षण तब तक जारी रहना चाहिए जब तक इसके लाभार्थियों को लगता है कि यह जरूरी हैः संघ 

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: September 9, 2019 04:09 PM2019-09-09T16:09:27+5:302019-09-09T16:09:27+5:30

आरएसएस के संयुक्त महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने कहा कि संघ संविधान द्वारा प्रदत्त आरक्षण का पूरा समर्थन करता है। संघ की तीन दिवसीय समन्वय बैठक के अंतिम दिन संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा, ‘‘हमारे समाज में सामाजिक और आर्थिक विषमता है, इसलिए आरक्षण की जरूरत है...हम संविधान प्रदत्त आरक्षण का पूरा समर्थन करते हैं।’’

Reservation should continue till its beneficiaries feel it is necessary rss | आरक्षण तब तक जारी रहना चाहिए जब तक इसके लाभार्थियों को लगता है कि यह जरूरी हैः संघ 

केंद्र सरकार के सौ दिनों के कार्यकाल पर आरएसएस ने कहा कि सरकार ने कई अच्छे कार्य किए हैं। इसलिए दोबारा चुनी गई हैं।

Highlightsसंघ ने कहा कि वह महज इस आवश्यकता पर बल दे रहे थे कि समाज में सद्भावनापूर्वक परस्पर बातचीत के आधार पर सभी प्रश्नों के समाधान ढूंढे जाए।सात से नौ सितंबर तक चली इस बैठक में जिन विषयों पर चर्चा हुई, उनके बारे में संघ के सह सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने विस्तार से जानकारी दी।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सोमवार को यहां कहा कि समाज में सामाजिक और आर्थिक विषमता रहने के कारण आरक्षण की जरूरत है और जब तक इसके लाभार्थियों को इसकी जरूरत महसूस होती है, इसे जारी रखना चाहिए।

आरएसएस के संयुक्त महासचिव दत्तात्रेय होसबोले ने कहा कि संघ संविधान द्वारा प्रदत्त आरक्षण का पूरा समर्थन करता है। संघ की तीन दिवसीय समन्वय बैठक के अंतिम दिन संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा, ‘‘हमारे समाज में सामाजिक और आर्थिक विषमता है, इसलिए आरक्षण की जरूरत है...हम संविधान प्रदत्त आरक्षण का पूरा समर्थन करते हैं।’’

यह पूछे जाने पर कि क्या आरएसएस को लगता है कि आरक्षण अनिश्चित काल तक जारी नहीं रहना चाहिए, तो होसबोले ने कहा कि यह व्यवस्था के लाभार्थियों पर निर्भर करता है । उन्होंने कहा, ‘‘आरक्षण तब तक जारी रहना चाहिए जबतक कि इसके लाभार्थियों को इसकी जरूरत महसूस होती है।’’ 

आरएसएस ने आरक्षण पर बड़ा बयान दिया है। संघ ने कहा कि आरक्षण तब तक जारी रहना चाहिए जब तक इसके लाभार्थियों को लगता है कि यह जरूरी है।

संघ की तीन दिवसीय अखिल भारतीय समन्वय बैठक का सोमवार को समापन हो गया। इससे पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने आरक्षण पर सरसंघचालक मोहन भागवत की टिप्पणी से पैदा हुए विवाद को सोमवार को ‘‘अनावश्यक’’ करार देते हुए खारिज कर दिया।

संघ ने कहा कि वह महज इस आवश्यकता पर बल दे रहे थे कि समाज में सद्भावनापूर्वक परस्पर बातचीत के आधार पर सभी प्रश्नों के समाधान ढूंढे जाए। आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख अरुण कुमार ने एक ट्वीट में कहा, ‘‘जहां तक संघ का आरक्षण के विषय पर मत है, वह कई बार स्पष्ट किया जा चुका है कि अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और आर्थिक आधार पर पिछड़ों के आरक्षण का (आरएसएस) पूर्ण समर्थन करता है।’’

सात से नौ सितंबर तक चली इस बैठक में जिन विषयों पर चर्चा हुई, उनके बारे में संघ के सह सर कार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने विस्तार से जानकारी दी। आरएसएस व सभी 36 संगठनों की  इस समन्वय बैठक में सीमा सुरक्षा, अनुच्छेद 370, कश्मीर में नेताओं की नजरबंदी, मदरसा, मॉब लिंचिंग, एनआरसी और आरक्षण जैसे अहम मसलों पर चर्चा हुई। मॉब लिंचिंग पर संघ ने कहा कि समाज में किसी भी प्रकार की हिंसा का हम समर्थन नहीं करते हैं। कानून को अपने हाथ में लेने का हम स्वागत नहीं करते हैं। वहीं केंद्र सरकार के सौ दिनों के कार्यकाल पर आरएसएस ने कहा कि सरकार ने कई अच्छे कार्य किए हैं। इसलिए दोबारा चुनी गई हैं।

कुमार ने ट्वीट में कहा कि दिल्ली में एक कार्यक्रम में दिये मोहन भागवत के भाषण के एक भाग पर अनावश्यक विवाद खड़ा किया जा रहा है। गौरतलब है कि भागवत ने रविवार को कहा था कि जो आरक्षण के पक्ष में हैं और जो इसके खिलाफ हैं, उन लोगों के बीच इस पर सद्भावपूर्ण माहौल में बातचीत होनी चाहिए। कांग्रेस और बसपा जैसी विपक्षी पार्टियों ने भागवत की इस टिप्पणी को लेकर भाजपा और इसके वैचारिक संगठन आरएसएस पर प्रहार किया है।

कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि भागवत की टिप्पणी ने आरएसएस-भाजपा का ‘‘दलित-पिछड़ा विरोधी’’ चेहरा बेनकाब कर दिया है। वहीं, बसपा प्रमुख मायावाती ने ट्वीट किया, ‘‘आरएसएस का एससी/एसटी/ओबीसी आरक्षण के सम्बंध में यह कहना कि इस पर खुले दिल से बहस होनी चाहिए, संदेह की घातक स्थिति पैदा करता है जिसकी कोई जरूरत नहीं है। आरक्षण मानवतावादी संवैधानिक व्यवस्था है जिससे छेड़छाड़ अनुचित एवं अन्याय है।

संघ अपनी आरक्षण-विरोधी मानसिकता त्याग दे तो बेहतर है।’’ गौरतलब है कि भागवत ने 2015 में आरक्षण की समीक्षा किये जाने का सुझाव दिया था, जिस पर बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले एक बड़ा राजनीतिक विवाद छिड़ गया था। 

 

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