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शादी को अस्वीकार करना आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं: सुप्रीम कोर्ट

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: January 26, 2025 16:06 IST

न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की एक शीर्ष अदालत की पीठ ने एक महिला के खिलाफ आरोपपत्र खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। महिला पर एक अन्य महिला को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप है, जो कथित तौर पर उसके बेटे से प्यार करती थी।

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ठळक मुद्देशीर्ष अदालत की पीठ ने एक महिला के खिलाफ आरोपपत्र खारिज करते हुए यह टिप्पणी कीकहा- विवाह को अस्वीकार करना IPC की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने के समान नहीं

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक विवाह को अस्वीकार करना भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसाने के समान नहीं है। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की एक शीर्ष अदालत की पीठ ने एक महिला के खिलाफ आरोपपत्र खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। महिला पर एक अन्य महिला को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप है, जो कथित तौर पर उसके बेटे से प्यार करती थी।

रिपोर्ट के अनुसार, आरोप आत्महत्या करने वाली महिला और आरोपी के बेटे, जिसने उससे शादी करने से इनकार कर दिया था, के बीच विवाद पर आधारित थे। जिस महिला के खिलाफ आरोपपत्र दाखिल किया गया था, उस पर विवाह का विरोध करने और उस महिला के खिलाफ “अपमानजनक” टिप्पणी करने का आरोप लगाया गया था, जिसने यह चरम कदम उठाया। शीर्ष अदालत ने कहा कि भले ही आरोपपत्र और गवाहों के बयानों सहित रिकॉर्ड पर मौजूद सभी सबूतों को सही माना जाए, लेकिन अपीलकर्ता के खिलाफ “एक भी सबूत” नहीं है।

शीर्ष अदालत की पीठ ने कहा, "हमें लगता है कि अपीलकर्ता के कृत्य इतने दूरगामी और अप्रत्यक्ष हैं कि वे धारा 306, आईपीसी के तहत अपराध नहीं बनते। अपीलकर्ता के खिलाफ इस तरह का कोई आरोप नहीं है कि मृतक के पास आत्महत्या के दुर्भाग्यपूर्ण कृत्य के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था।" 

अदालत ने कहा कि "रिकॉर्ड से यह पता चलता है कि अपीलकर्ता और उसके परिवार ने मृतक पर उसके और अपीलकर्ता के बेटे के बीच संबंध खत्म करने के लिए कोई दबाव डालने की कोशिश नहीं की।" पीठ ने कहा, "वास्तव में, मृतक का परिवार ही इस रिश्ते से नाखुश था। भले ही अपीलकर्ता ने बाबू दास और मृतक की शादी के प्रति अपनी असहमति व्यक्त की हो, लेकिन यह आत्महत्या के लिए उकसाने के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष आरोप के स्तर तक नहीं पहुंचता है।" 

पीठ ने कहा, "इसके अलावा, मृतका से यह कहना कि यदि वह अपने प्रेमी से विवाह किए बिना जीवित नहीं रह सकती तो वह जीवित न रहे, जैसी टिप्पणी भी उकसावे की श्रेणी में नहीं आएगी। एक सकारात्मक कार्य की आवश्यकता है जो ऐसा माहौल बनाए जहां मृतका को धारा 306, आईपीसी के आरोप को कायम रखने के लिए किनारे पर धकेला जाए।"

टॅग्स :सुप्रीम कोर्टरिलेशनशिप
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