अज़ान की सदायें सन्नाटों में खो गईं, मस्जिदों की रौनक़ वीरानों में तब्दील हो गईं, रमज़ान में मुसलमानों से सब्र की कुछ ज़्यादा ही उम्मीद, तुम्हारा इम्तिहान ही तो है रोज़ा

By नईम क़ुरैशी | Updated: April 26, 2020 22:48 IST2020-04-26T22:48:39+5:302020-04-26T22:48:39+5:30

भारतीय मुसलमानों से इस महामारी के दौरान रमज़ान में संयम की कुछ ज़्यादा ही उम्मीद हैं। इस्लाम धर्म के इतिहास में ऐसी कोई दलील सामने नही आई है, जब रमज़ान के पवित्र और इबादत के महीने में मस्जिदों के दरवाज़े बंद कर दिए गए हों, अज़ान की सदायें सन्नाटों में खो गई हों और इबादतगाहों की रौनक़ वीरानों में तब्दील हो गई हों।

Ramadan 2020 in Coronavirus Time: No azan, Mosques empty, Muslims asked for patience in Roza | अज़ान की सदायें सन्नाटों में खो गईं, मस्जिदों की रौनक़ वीरानों में तब्दील हो गईं, रमज़ान में मुसलमानों से सब्र की कुछ ज़्यादा ही उम्मीद, तुम्हारा इम्तिहान ही तो है रोज़ा

तस्वीर का इस्तेमाल केवल प्रतीकात्मक तौर पर किया गया है। (फाइल फोटो)

Highlightsइस्लाम धर्म की मान्यताओं के मुताबिक़ रमज़ान के पवित्र महीने में रोज़ा मुसलमानों का अल्लाह की तरफ़ से इम्तिहान है। भूखे रहकर ग़रीबों, भूखों का दुख दर्द समझना, बुरी आदतों से दूर होकर संयम के साथ बुरे विचारों को त्याग सच्चे मन से अल्लाह से तौबा और अपने को पवित्र करना ही रमज़ान में रोज़े का असली मक़सद है।

इस्लाम धर्म की मान्यताओं के मुताबिक़ रमज़ान के पवित्र महीने में रोज़ा मुसलमानों का अल्लाह की तरफ़ से इम्तिहान है। भूखे रहकर ग़रीबों, भूखों का दुख दर्द समझना, बुरी आदतों से दूर होकर संयम के साथ बुरे विचारों को त्याग सच्चे मन से अल्लाह से तौबा और अपने को पवित्र करना ही रमज़ान में रोज़े का असली मक़सद है।

मगर इस बार के रमज़ान बीते 1439 रामज़ानों से ज़्यादा कठिन होकर संयम और धैर्य की दोहरी परीक्षा के साथ शुरू हुए हैं। पहली बार ऐसे रमज़ान से सामना हो रहा है, जिसका उल्लेख किताबों में पढ़ा और धर्म गुरुओं से सुना था कि बेहद कड़े इम्तिहान का नाम रमज़ान है। पूरी दुनिया कोविड-19 कोरोना वायरस के कहर से दहशत में है और इस्लाम धर्म के केंद्र पवित्र क़ाबा मस्जिद ए हरम के साथ मदीना मुनव्वरा में मस्जिद ए नबवी के दरवाज़े भी अवाम के लिए बंद कर दिए गए हैं। 

भारतीय मुसलमानों से इस महामारी के दौरान रमज़ान में संयम की कुछ ज़्यादा ही उम्मीद हैं। इस्लाम धर्म के इतिहास में ऐसी कोई दलील सामने नही आई है, जब रमज़ान के पवित्र और इबादत के महीने में मस्जिदों के दरवाज़े बंद कर दिए गए हों, अज़ान की सदायें सन्नाटों में खो गई हों और इबादतगाहों की रौनक़ वीरानों में तब्दील हो गई हों।

रमज़ान का संदेश पहला ईमान, दूसरा नमाज, तीसरा रोज़ा, चौथा हज और पांचवां ज़कात। इस्लाम में बताए गए इन पांच कर्तव्य इस्लाम को मानने वाले इंसान से प्रेम, सहानुभूति, सहायता तथा हमदर्दी की प्रेरणा पैदा कर देते हैं। रमज़ान में रोज़े को अरबी में सोम कहते हैं, जिसका मतलब है रुकना। रोज़ा यानी तमाम बुराइयों से परहेज़ करना। यह ख़ुद पर नियंत्रण एवं संयम रखने का महीना होता है? मुस्लिम समुदाय का रोज़े रखने का मुख्य उद्देश्य है ग़रीबों के दुख दर्द को समझना। इस दौरान संयम का तात्पर्य है कि आंख, नाक, कान, ज़ुबान को नियंत्रण में रखा जाना। क्योंकि रोजे के दौरान बुरा न सुनना, बुरा न देखना, बुरा न बोलना और ना ही बुरा एहसास किया जाता है। रमज़ान के रोज़े मुस्लिम समुदाय को उनकी धार्मिक श्रद्धा के साथ बुरी आदतों को छोड़ने और आत्म संयम रखना सिखाते हैं।

रमज़ान की शुरुआत

रमज़ान इस्लामिक कैलेंडर के नौवें महीने में आता है। इस महीने की आख़िरी की दस रातों में क़ुरान नाज़िल हुआ और पैगम्बर ए इस्लाम मोहम्मद सल्ललाहो अलैहि व सल्लम को पवित्र क़िताब कुरआन शरीफ़ का ज्ञान हुआ। क़ुरआन शरीफ़ की सूरह बक़रा पारा नंबर 2 पर आयत नंबर 185 के मुताबिक़ सऊदी अरब के मदीना में 2 हिजरी में शाबान के महीने में अल्लाह का हुक़्म हुआ कि अब से रोज़ा मुसलमानों पर फ़र्ज़ होगा। 

मुसलमान इबादत के साथ पूरा दिन भूखा रहकर अपने संयम का परिचय देंगे और ज़रूरतमंदों की इमदाद करेंगे। इस बार सन 2020 हिजरी 1441 में 1440 वें रमज़ान के रोज़े मुसलमानों को रमज़ान की कठिन इबादत का मक़सद समझा रहे हैं। रमज़ान माह की ख़ास बात ये भी है कि इसमें सभी मसलक के मुसलमान कड़ी इबादत के साथ रोज़ा रखते हैं। बच्चों, बुजुर्गों, मुसाफ़िरों, गर्भवती महिलाओं और बीमारी की हालत में रोज़े से छूट है। जो लोग रोज़ा नही रखते उन्हें रोज़ेदार के सामने खाने से मनाही है।

विशेष नमाज़ तरावीह

पैग़म्बर मुहम्मद सल्ललाहो अलैहि व सल्लम और उनके बाद ख़लीफ़ा हज़रत अबु बक़र सिद्दीक़ रज़ि. के समय तक तरावीह की नमाज़ सामूहिक रूप में नहीं पढ़ी जाती थी। दूसरे ख़लीफ़ा हज़रत उमर बिन अल ख़त्ताब रज़ि. ने तरावीह की नमाज़ को मस्जिदों में सामुहिक पढ़ाना शुरू कराया। उसके बाद से ये पहला मौक़ा है, जब पूरे विश्व में कोरोना महामारी की वजह से मस्जिदों में सामूहिक नमाज़ और तरावीह पर पाबंदी है। इस विशेष नमाज़ में पवित्र क़ुरआन शरीफ़ हाफ़िज़ ए क़ुरआन बुलंद आवाज़ में पढ़ते हैं। दूसरी नमाज़ों से अलग 20 रक़ाअत नमाज़ पढ़ी जाती है, जिसमें क़ुरआन शरीफ़ के 30 पारों को सुनने के लिए मस्जिदों में बड़ी संख्या में मुसलमान एकत्रित होते हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा निर्देश

दुनिया भर में कोविड-19 से पैदा हुई असाधारण परिस्थितियों में मुसलमानों के पवित्र महीने रमज़ान के दौरान रोज़ा रखने और अन्य धार्मिक रीति-रिवाज़ पूरे करने के दौरान ऐहतियात बरते जाने के लिए कुछ नए दिशा-निर्देश व सिफ़ारिशें जारी की हैं। रमज़ान महीने के दौरान दुनिया भर के मुसलमान ज़्यादातर मज़हबी रीति-रिवाज़ समूहों में करते हैं, जिनमें शाम को रोज़ा पूरा होने पर इफ़्तार और नमाज़ों की अदायगी शामिल हैं। 

दिन की पाँच नमाज़ों के अलावा रमज़ान महीने के दौरान रात में भी विशेष नमाज़ अदा की जाती है जिसे तरावीह कहा जाता है। ऐसे आयोजन कम से कम वक़्त के लिए किए जाएं ताकि शिरकत करने वालों को संक्रमण के कारणों से महफ़ूज़ रखा जा सके। संक्रमितों को सलाह दी गई है कि वे मज़हबी ईजाज़तों और अपवादों का सहारा ले सकते हैं, जिनमें बीमारों को सहूलियतें दी गई है

Web Title: Ramadan 2020 in Coronavirus Time: No azan, Mosques empty, Muslims asked for patience in Roza

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