Indepandence Day: ब्रिटिशराज और सामंतवाद की खिलाफत करती राजेंद्र कुमार 'अजेय' की कलम, एक कविता के लिए जिन्हें अग्रेजों ने भेजा था जेल

By अनुभा जैन | Updated: August 7, 2023 12:48 IST2023-08-07T12:48:01+5:302023-08-07T12:48:01+5:30

14 फरवरी, 1916 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में जन्मे डॉ. राजेंद्र कुमार ’अजेय’ ने कोटा में हर्बर्ट कॉलेज से स्नातक किया। अजेय और उनकी पत्नी प्रभावती सुभाष चंद्र बोस से बेहद प्रेरित थे। और जब बोस ने आजादी के बदले खून देने को कहा तो उन्होंने अपने बेटों अनिल और अखिल के खून से बोस को पत्र लिखा।

Rajendra Kumar 'Ajay' story who went to jail for his poem against british rule | Indepandence Day: ब्रिटिशराज और सामंतवाद की खिलाफत करती राजेंद्र कुमार 'अजेय' की कलम, एक कविता के लिए जिन्हें अग्रेजों ने भेजा था जेल

Indepandence Day: ब्रिटिशराज और सामंतवाद की खिलाफत करती राजेंद्र कुमार 'अजेय' की कलम, एक कविता के लिए जिन्हें अग्रेजों ने भेजा था जेल

" देख उबलेंगे इंग्लैंड वाले, कैसे होते विकट हिंद वाले, कर विदेशी सफीना रवाना, लेंगे दम हमने है दिल में ठाना। "

अगस्त 1938 में ब्रिटिश राज के विरुद्ध ’अजेय’ द्वारा लिखी गई इस कविता को 'राजद्रोह' माना गया और उन्हें एक वर्ष का कारावास दिया गया।

डॉ. राजेंद्र कुमार उर्फ ’अजेय’ द्वारा मीड़ा समुदाय के कल्याण और आरक्षण के लिए किये संघर्षों के कारण, उन्हें सामान्य नागरिक अधिकार प्राप्त हुए। अजेय ने जरायम पेशा कानून के लिए लड़ाई लड़ी और मीड़ा नेता के रूप में मशहूर हुये।

कवि, स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक, कट्टर कांग्रेसी और पत्रकार अजेय ने भारतीयों को ब्रिटिश शासन और सामंतवाद के खिलाफ खड़े होने के लिए प्रोत्साहित किया। 

पत्रकार के रूप में उन्होंने गणेश शंकर विद्यार्थी के ’प्रकाश’ और आचार्य नरेंद्र दवे के ’संघर्ष’ सहित देश भर के कई समाचार पत्रों के लिए लिखा। मोहन लाल सुखाड़िया के नवयुग, हीरा लाल शास्त्री का लोकवाणी दैनिक और जय नारायण व्यास के राष्ट्रदूत समाचार पत्रों के लिए उनका लेखन और राजनीतिक व्यंग्य त्रुटिहीन थे। 

उनकी समाचार रिपोर्टें प्रसिद्ध पत्रकार चन्द्र गुप्त वार्ष्णेय द्वारा दिल्ली के समाचार पत्रों को भेजी जाती थीं। ऐसी गतिविधियों के कारण उन पर छह अलग-अलग मामलों में आरोप लगाए गए और उन्हें अजमेर सेंट्रल जेल में 42 महीने तक रखा गया।

14 फरवरी, 1916 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में जन्मे अजेय ने कोटा में हर्बर्ट कॉलेज से स्नातक किया। मेरे साथ हुई बातचीत में उनके बेटे अतुल ने बताया, “हम बच्चे उन्हें बाबूजी कहते थे। बचपन से ही आर्य समाज की विचारधारा से प्रभावित बाबूजी और उनके तीन साथी ’विश्व बंधु’ के नाम से कोटा में प्रसिद्ध हुए जिन्होने साहित्यिक और शैक्षिक गतिविधियों के माध्यम से लोगों को ब्रिटिश राज के खिलाफ जागरूक किया।

अजेय को राजस्थान वीकली में नौकरी मिल गई जिसमें 1932-33 में कवि और क्रांतिकारी केसरी सिंह बारेठ के साथ अजेय का साक्षात्कार ’ये जरूरी नहीं कि भीगी बारूद कभी धमाका ही ना करे’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ। 

अतुल ने बताया, 'इससे बाबूजी पर नौकरी छोड़ने का दबाव पड़ा और अंग्रेजों ने लेख की जांच के आदेश दिए।'

जवाहरलाल नेहरू 1934 में राजस्थान के ब्यावर से अहमदाबाद की यात्रा कर रहे थे, तो अजेय ने उनके मार्ग को कांग्रेस के झंडे से ढक दिया और 500 किसानों की मदद से नेहरू का रास्ता रोका। रुकने पर मजबूर नेहरू ने वहां जोशीला भाषण दिया। नेहरू से प्रेरित होकर, अजेय एक कांग्रेस कार्यकर्ता के रूप में में शामिल हो पं. हरिभाऊ उपाध्याय के अजमेर के पास स्थित हटुंडी आश्रम में गए। 

कोटा से वह कांग्रेस में शामिल होने वाले पहले व्यक्ति थे और बाद में उन्होंने वहां कांग्रेस इकाई की शुरुआत की। अजेय ने अपने लेखन के माध्यम से मसूदा, अजमेर में जागीरदारी कानून और जालिया, विजय नगर में पुलिस अत्याचार के खिलाफ भी जागरूकता फैलाई।

अजेय और उनकी पत्नी प्रभावती सुभाष चंद्र बोस से बेहद प्रेरित थे। और जब बोस ने आजादी के बदले खून देने को कहा तो उन्होंने अपने बेटों अनिल और अखिल के खून से बोस को पत्र लिखा।

वर्ष 1937-38 में, अजेय ने कांधेड़ा किसान सम्मेलन का आयोजन किया और उसी वर्ष, हरिपुरा कांग्रेस के 91वें सत्र में भाग लिया जहां उन्होंने महात्मा गांधी, कस्तूरबा गांधी, सुभाष चंद्र बोस और पंडित नेहरू से मुलाकात की।

1939-40 में हरिभाऊ उपाध्याय के मार्गदर्शन में जयपुर आन्दोलन में भाग लेने वाले अजेय 1941 में मुंबई पहुंचे। अगले ही वर्ष, जब अरुणा आसिफ अली ने गोवालिया टैंक में भारतीय ध्वज फहराया और भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया, तो वह राजस्थान के एकमात्र स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने इस निर्णायक कार्यक्रम में भाग लिया। अजेय ने वहां भी अपनी रिपोर्टिंग जारी रखी और समाजवादी नेता व पत्रकार यासुप महार अली, पत्रकार सैय्यद अब्दुल्ला, डॉ. राम मनोहर लोहिया जैसी कई हस्तियों के साथ लगातार संपर्क में रहे।

1943 में कोटा में, अजय ने नाथू लाल जैन के साथ दीनबंधु वीकली की सह-स्थापना की, जिसने राज्यों में नागरिक अधिकारों और उत्तरदायी शासन के लिए सरकार पर दबाव बनाया और इंदौर-कोटा-बीकानेर बेल्ट में युवाओं के बीच एक चिंगारी भी जलाई, जो बाद में स्वतंत्रता आंदोलन में लोगों की भागीदारी की रीढ़ बन गई।

अजेय गोविंदगढ़ में खादी एसोसिएशन के सदस्य बने और गांधी की विचारधारा और खादी के अधिकाधिक उपयोग को जनता के बीच फैलाया।

सामाजिक जागरूकता और हमेशा की तरह अपने व्यंग्यों के जरिये लोगों को जागरूक करने के लिए, 1965 में उन्होंने अपना साप्ताहिक समाचार पत्र ’हमारा वतन’ की शुरूआत की। जयपुर में जमना लाल बजाज के नेतृत्व में 1947 में प्रजामण्डल द्वारा आन्दोलन शुरू हुआ। पं. हीरा लाल शास्त्री ने हरिबाहु पर जोर देकर अजेय को प्रजामंडल और मंडल गतिविधियों में शामिल करवाया।

कई सम्मानों से सम्मानित अजेय को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी सम्मानित किया। 28 अप्रैल 2015 को, राजेंद्र कुमार ने 99 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली। उनकी बेटी आभा ने याद करते हुए कहा, 'राजकीय सम्मान के रूप में और बाबूजी के अंतिम संस्कार के समय, उनके शरीर को भारतीय ध्वज में लपेट कर 21 तोपों की सलामी दी गई।'

Web Title: Rajendra Kumar 'Ajay' story who went to jail for his poem against british rule

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