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राफेल मामला: सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका पर आज सुनवाई, केंद्र ने की थी इसे टालने की मांग

By भाषा | Updated: April 30, 2019 10:07 IST

केंद्र सरकार ने आज होने वाली सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध सोमवार को किया था। हालांकि, न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने इसे ठुकरा दिया।

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राफेल मामले में 14 दिसंबर, 2018 के फैसले पर दायर पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट आज सुनवाई करेगा। इससे पहले केंद्र सरकार ने आज होने वाली सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध सोमवार को किया था। केंद्र ने कहा कि पुनर्विचार याचिकाओं पर अपना विस्तृत जवाब दाखिल करने के लिये और समय की आवश्यकता है। केंद्र ने यह अनुरोध प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ के समक्ष किया। हालांकि, कोर्ट ने इस मांग को ठुकरा दिया।

पीठ ने केन्द्र सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता आर बालासुब्रमणियन को सुनवाई स्थगित करने के बारे में संबंधित पक्षकारों में पत्र वितरित करने की अनुमति दे दी। केंद्र के पत्र में कहा गया है कि उसे पुनर्विचार याचिकाओं के मेरिट पर अपना जवाब दाखिल करने के लिये कुछ वक्त की आवश्यकता है। पूर्व केन्द्रीय मंत्रियों यशवंत सिन्हा और अरूण शौरी तथा अधिवक्ता प्रशांत भूषण की पुनर्विचार याचिकाएं मंगलवार को अपराह्न प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सूचीबद्ध है।

इसके अलावा आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह और अधिवक्ता विनीत ढांडा की दो अन्य पुनर्विचार याचिकायें भी मंगलवार के लिये सूचीबद्ध हैं। राफेल सौदे के बारे में शीर्ष अदालत के 14 दिसंबर, 2018 के फैसले पर ये पुनर्विचार याचिकायें दायर की गई हैं। शीर्ष अदालत ने इस फैसले में फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने के सौदे को चुनौती देने वाली सारी याचिकायें खारिज कर दी थीं। शीर्ष अदालत ने 10 अप्रैल को इस सौदे से संबंधित लीक हुये कुछ दस्तावेजों पर आधारित अर्जियां स्वीकार कर लीं और पुनर्विचार याचिकाओं पर केन्द्र की प्रारंभिक आपत्तियों को अस्वीकार कर दिया जिससे केन्द्र को झटका लगा।

केन्द्र ने इन दस्तावेजों पर विशेषाधिकार का दावा किया था। केन्द्र का तर्क था कि ये तीन दस्तावेज अनधिकृत तरीके से रक्षा मंत्रालय से निकाले गये हैं और याचिकाकर्ताओं ने 14 दिसंबर, 2018 के शीर्ष अदालत के फैसले के खिलाफ अपनी पुनर्विचार याचिकाओं के समर्थन में इनका इस्तेमाल किया है। शीर्ष अदालत ने कहा था कि ये दस्तावेज ‘‘सार्वजनिक’’ हैं और एक प्रमुख समाचार पत्र द्वारा इनका प्रकाशन संविधान में प्रदत्त बोलने की आजादी के सांविधानिक अधिकार के अनुरूप है। शीर्ष अदालत ने यह भी कहा था कि संसद द्वारा बनाया गया ऐसा कोई भी कानून उसके संज्ञान में नहीं लाया गया है जिसमें संविधान के अनुच्छेद 19(2) में उल्लिखित किसी भी आधार पर ऐसे किसी दस्तावेज का प्रकाशन विशेष रूप से प्रतिबंधित किया गया हो।

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