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राफेल डील विवादः दसॉल्ट के CEO का बड़ा खुलासा, 'राहुल गांधी के आरोप गलत, हमने खुद अनिल अंबानी को चुना'

By जनार्दन पाण्डेय | Updated: November 13, 2018 13:30 IST

एरिक के अनुसार, "रिलायंस अकेले राफेल विमान को नहीं बना रही है। इसके सारे पुर्जे खुद दसॉल्ट फ्रांस में तैयार कर रही है। इसके बाद रिलायंस के अलावा वह कई अन्य कंपनियों को विमान बनाने की पूरी प्रकि‌या में शामिल कर रही है।"

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राफेल विमान डील विवाद पर फ्रांसीसी कंपनी दसॉल्ट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) एरिक ट्रेपियर ने सामाचार एजेंसी एएनआई की संपादक स्मिता प्रकाश को इंटरव्यू दिया है। इसमें उन्होंने कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी के आरोपों को सिरे से नकारा है।

एरिक ने कहा, "मैं झूठ ने नहीं बोल रहा हूं। मैंने अपने बयान पहले भी दिए हैं। बतौर दसॉल्ट सीईओ मैं झूठ नहीं बोल सकता हूं। क्योंकि यह एक झूठ बोल देने जैसा पद नहीं है। इसकी अपनी एक मर्यादा है।" उल्लेखनीय है कि राहुल गांधी ने अनिल अंबानी की कंपनी से समझौते पर एरिक बयानों को झूठ बताया था।

राफेल बनाने वाली कंपनी के 51 फीसदी शेयर दसॉल्ट के पास हैंः एरिक

एरिक ने राफेल विमान के सौदे में डील में पैसों के हेरफेर पर कहा, पिछले साल हमने जेवी गठन किया। इसके तहत दसॉल्ट-रिलायंस का एक गठबंधन किया गया। ऐसा करने का फैसला हमारे 2012 की डील का हिस्सा था। लेकिन हम सौदे पर आखिरी हस्ताक्षर होने का इंतजार कर रहे थे। इसमें जेवी के पास 49 फीसदी शेयर हैं, जबकि दसॉल्ट के पास स्वतंत्र रूप से 51 फीसदी शेयर हैं।

उन्होंने कहा, हम इस कंपनी 50:50 के अनुपात एक साथ 800 करोड़ एक साथ डालने वाले थे। उन्होंने बताया, समय के साथ-साथ हम प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू कर चुके हैं। हमने शुरुआत में कर्मचारियों को 400 करोड़ रुपये दे भी दिए थे। बाकी के 400 करोड़ हम आगामी पांच सालों में खर्च करेंगे।

रिलायंस कर रही है बस 10 फीसदी काम

एरिक के अनुसार इस प्रोजेक्ट पर काम करते हुए सात साल हो चुके हैं। पुरानी डील के अनुसार शुरुआती तीन सालों में हम किसी खास कंपनी के साथ काम करने के लिए बाध्य नहीं थे। बाद में हमने 30 कंपनियों के साथ ऑफसेट काम करना शुरू किया। यह पूरे का काम कुल 40 फीसदी हिस्सा ही है। बाकी का काम दसॉल्ट खुद कर रही है। लेकिन इस 40 फीसदी में भी रिलायंस के पास महज 10 फीसदी काम ही है। 

अगले साल सितंबर में भारत आएगा पहला राफेल

सीईओ ने बताया कि डील के अनुसार अगले साल सितंबर में भारत को पहला राफेल विमान भेजा जाएगा। अभी तक सबकुछ बिल्कुल समयानुसार चल रहा है।

आपसी राजनीति के लिए बढ़ाया गया विवादः दसॉल्ट सीईओ

भारत में राफेल हो रहे विवाद पर सीईओ ने कहा, "मुझे पता है घरेलू राजनैतिक कारणों से भारत में इस डील को लेकर कुछ विवाद हुए हैं। चुनावों के समय ऐसा कई देशों में होता है। लेकिन मेरे लिए केवल यह मायने रखता है कि सच तो सच है। यह डील पूरी तरह से साफ-सुथरी है। इस डील से भारतीय वायुसेना खुश है।

भारतीय वायुसेना ने किया था समर्थन

एएनआई संपादक स्‍मिता प्र‌काश ने एरिक का यह साक्षात्कार फ्रांस के दसॉल्ट एविएशन हैंगर इस्‍त्रे-ली-ट्यूब एयरबेस पर जाकर किया है। यहां एरिक ने कहा, हमने अंबानी को खुद चुना था। हम रिलायंस के अलावा 30 और पार्टनरों के साथ काम कर रहे हैं। इस डील में हमें भारतीय वायुसेना (आईएएफ) का भी समर्थन प्राप्त था। क्योंकि उन्हें फाइटर जेट की जरूरत थी। उन्हें अपनी सुरक्षा की चिंता है।

एरिक ने बताया, अगर पुराने 18 विमानों की डील से तुलना करें तो भारत के साथ हुए 36 राफेल विमानों के सौदे में बिल्कुल भी बढ़ोतरी नहीं की गई है। असल में 36, 18 का ठीक दोगुना होता है। ऐसे में जहां तक मेरा मानना है, निश्चित तौर पर कीमतें दोगुनी होनी चाहिए। लेकिन चूंकि यह सरकार से सरकार की डील थी, इसलिए इसमें मोलभाव भी हुआ। ऐसे में हमें विमानों की कीमतों में 9 फीसदी तक की छूट देनी पड़ी।

हम रिलायंस में पैसे नहीं डाल रहे हैंः दसॉल्ट सीईओ

अपने साक्षात्कार में एरिक ने कहा, हम रिलायंस में पैसे नहीं डाल रहे हैं। पैसे दसॉल्ट-रिलायंस के गठबंधन जेवी को मिल रहे हैं। जबकि डील के अनुसार पूरे प्रोजेक्ट का नेतृत्व पूरी तरह से दसॉल्ट के इंजीनियर्स और कर्मी कर रहे हैं।

कांग्रेस से रहा है हमारा पुराना नाताः एरिक ट्रैपयर

दसॉल्ट के सीईओ का कहना है कि उनकी कंपनी का कांग्रेस पार्टी के साथ काम करने का पुराना अनुभव है। उन्होंने कहा, साल 1953 से हम कांग्रेस के साथ काम कर रहे हैं। तब तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू के साथ हमने समझौता किया था। बाद में दूसरे प्रधानमं‌त्रियों के साथ। हमने रणनीतिक तौर पर भारतीय सरकार और भारतीय वायुसेना को अपने उत्पाद दिए हैं।

इसके जवाब में एएनआई को दिए गए इंटरव्यू में उन्होंने ऐसी सभी बातों का जवाब दिया है, जिनपर भारत में इन ‌दिनों बवाल मचा हुआ है।

40 फीसदी ज्यादा पैसे में दोबारा डील होने का हुआ था खुलासा

उल्लेखनीय है कि एक हालिया खुलासे के अनुसार भारतीय सरकार और फ्रांसीसी कंपनी दसॉल्ट के बीच हुई राफेल विमानों की खरीदारी को लेकर हुई डील, पिछली डील की तुलना में करीब 40 फीसदी ज्यादा रकम में हुई है। भारतीय सरकार ने हालिया सौदा ग्लोबल टेंडर के तहत साल 2016 में 36 फाइटर विमान खरीदने का किया है। जबकि फ्रांसीसी कंपनी दसॉल्ट ने साल 2012 में भारतीय सरकार से 126 मीडियम मल्टी-रोल कॉम्बेट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) खरीदने का ऑफर 40 फीसदी कम पैसों में कर चुकी थी।

इसका खुलासा रक्षा मंत्रालय के दो वरिष्ठ अधिकारियों की फाइल से हुआ है। वे दोनों साल 2012 से ही दसॉल्ट के साथ हुए विमानों के सौदे में प्रमुख भूमिकओं में हैं। इन्होंने ने ही दसॉल्ट के साथ विमानों की कीमतों को लेकर मोल-भाव भी किया है।

वे अभी मंत्रालय से जुड़े हुए हैं। ब‌िजनेस स्टैंडर्ड ने इन्हीं अधिकारियों की कुछ फाइलों के हवाले से एक खबर प्रकाशित की है। इसमें बताया गया है कि दसॉल्ट की तरफ ऑफर की गई पिछली कीमतों की तुलना में भारतीय सरकार ने नये सौदे करीब 40 फीसदी ज्यादा कीमतों में की है।

जानकारी के अनुसार फ्रांसीसी कंपनी ने 126 एयरक्राफ्ट की कीमत करीब 19.5 बिल‌ियन यूरो रखी है। इस लिहाज से दसॉल्ट ने एक एयरक्राफ्ट की कीमत औसतन 155 मिलियन यूरो रखी है। इसमें विमान की कीमत, ट्रांसफर तकनीक, उसका देशीकरणकरना, उसे भारतीय परिस्‍थ‌ियों के अनुरूप यहां के हिसाब से ढालना, उससे संबंधित हथियार, स्पेयर और रखरखाव गारंटी भी शामिल है।

सुप्रीम कोर्ट को बंद लिफाफे में सौंपी जा चुकी है राफेल विमान की कीमत

केंद्र सरकार ने सीलबंद लिफाफे में राफेल विमान की कीमत की जानकारी सुप्रीम कोर्ट को दी है। 31 अक्टूबर को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने ये जानकारी मांगी थी। मामले की अगली सुनवाई बुधवार 14 नवंबर को होनी है। केन्द्र ने फ्रांस के साथ 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीद के सौदे की कीमत से संबंधित विवरण सोमवार को सीलबंद लिफाफे में कोर्ट में पेश किया।

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