उत्तर प्रदेश का लोकनिर्माण विभाग, भारत-नेपाल सीमा पर प्रस्तावित 574.59 किलोमीटर सड़क में से पिछले 10 वर्षों में महज 132.64 किलोमीटर सड़क का निर्माण कर सका। यह जानकारी 31 मार्च, 2019 को समाप्त हुए वर्ष के लिए बृहस्पतिवार को पेश लेखा परीक्षा प्रतिवेदन में दी गई। लेखा परीक्षा रिपोर्ट पेश करते हुए प्रधान महालेखाकार बी के मोहंती ने बताया कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और बिहार में भारत-नेपाल सीमा पर सड़क का निर्माण नवंबर, 2010 में अनुमोदित किया था। उत्तर प्रदेश में परियोजना का क्रियान्वयन लोकनिर्माण विभाग कर रहा था। उन्होंने बताया कि समय से वन विभाग की मंजूरी ना लिए जाने, भूमि अधिग्रहण ना किए जाने, अनुबंध प्रबंधन में कमी और विभागों के साथ समन्वय की कमी आदि के कारण 574.59 किलोमीटर के लिए 28 विस्तृत परियोजना प्रतिवेदनों में से केवल 12 (257 किलोमीटर) को स्वीकृति मिली और दिसंबर, 2019 तक केवल 132.64 किलोमीटर सड़क बन सकी। मोहंती ने बताया कि अनुबंधों के पूर्ण होने में निर्धारित तिथियों से 16 से 66 महीने का विलंब हुआ जिससे निर्माण लागत 42 प्रतिशत बढ़ गई। उन्होंने बताया कि वहीं भूमि अधिग्रहण में देरी से इसकी लागत 164 प्रतिशत बढ़ गई। दूसरी ओर, निर्मित सड़कों से दूर स्थित बार्डर आउटपोस्ट को बिना उससे जोड़े छोड़ दिया गया। उन्होंने बताया कि लोकनिर्माण विभाग द्वारा कार्यों के निष्पादन के लिए उपयोग किए जाने वाले वाहनों के चलाने पर 2.46 करोड़ रुपये का अतिरिक्त व्यय किया गया। उन्होंने बताया कि हालांकि दो कार्यों के संबंध में इस मद का डीपीआर में प्रावधान नहीं था। लेखा परीक्षा रिपोर्ट के मुताबिक, कन्साइनी रसीद प्रमाण पत्र प्राप्त किए बिना या इसका सत्यापन किए बिना सड़क निर्माण कार्य में प्रयुक्त बिटुमिन के लिए ठेकेदारों को 38.44 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया जोकि ना केवल शासकीय आदेश का उल्लंघन था, बल्कि बिटुमिन की गुणवत्ता और मात्रा के साथ समझौता किए जाने की आशंका से भरा था।
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